राजा खुद वसूलते थे टैक्स
बीकानेर सियासत के महाराजा गंगासिंह का दौर बेहद अच्छा था। सरदार जोरासिंह बताते हैं ‘गंगासिंहजी से मिलना थोड़ा मुश्किल था लेकिन जो उनके पास पेश हो गया तो उसकी फरियाद पूरी होती। वे अफसरों के प्रति सख्त थे। काम नहीं करने वाले अफसरों को दंडित करते थे।’ टैक्स की परंपरा उस दौर में भी थी। जोरा सिंह के अनुसार, राजा खुद अफसरों के साथ प्रवास पर आते। सेठ-साहूकारों से चंदे के रूप में टैक्स वसूलते। इसमें भी ध्यान रखा जाता कि सेठ की आमदनी से अधिक तो वसूली नहीं की जा रही।
ऐसे थे तब के नेता
पन्नालाल बारूपाल: श्रीगंगानगर संसदीय क्षेत्र के पहले सांसद। चंग बजाकर वोट मांगते थे। कहीं ले जाओ हाथ पकड़कर, चले जाते थे। साधारण व्यक्तित्व था उनका।
रामचंद्र चौधरी: सबकी सुनते थे। विरोधियों का भी काम करते थे। खूब पढ़े लिखे थे।
बृजप्रकाश गोयल: अधिक पढ़े लिखे होने के कारण समस्या की तह तक जाते थे। समझ रखने वाले नेता थे।
कुम्भाराम आर्यः सबकी सुनवाई करने वाले नेता थे। फोन पर अपना परिचय नाम लेकर नहीं बल्कि कहते ‘मैं राजस्थान सरकार बोल रहा हूं।’ अफसर समझ जाते कि कुम्भाराम जी बोल रहे हैं।
चौधरी आत्माराम: एक ‘रंग’ के नेता थे। मुंह पर बोलने वाले। जातिवाद से कोसों दूर। अपनों पर पूरी ‘मेहरबानी’ रखते थे।
कॉमरेड शोपत सिंह: दिखावा नहीं था उनमें। इसलिए सब दिल से इज्जत करते।
किस्सागोई: श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ के तत्कालीन नेताओं के बारे में बता रहे हैं ……सरदार जोरा सिंह
हनुमानगढ़ जंक्शन निवासी सरदार जोरा सिंह के पास 86 साल का अनुभव है। उन्होंने आठ दशक में हर दौर को निकट से देखा है। यूं कहिए, अपनी आंखों के सामने शहर को आबाद होते देखा है। वे कहते हैं ‘ईश्वर एक शक्ति है। जो जिस रूप में उसे पाना चाहता है, वह मिलता है। ईश्वर ने खुद से संुदर इंसान को बनाया है। खुद ‘तगड़ा’ है इसलिए सब कुछ खुद पर ले लेता है। लेकिन हम ईश्वर को भी नहीं समझ पा रहे। धर्म के नाम पर पाखण्डी हो गए। पहले पंच परमेश्वर का युग था। इसलिए कि पांच का न्याय कभी गलत नहीं होगा। सिक्ख धर्म में भी पंच प्यारे का प्रमाण है। गुरु गोबिंदसिंहजी दुनिया के पहले समाजवादी हैं। जिन्होंने पहले पंगत और फिर संगत की नींव रखी। एक पंगत में बैठकर प्रसाद ग्रहण करने से मन से बड़े-छोटे का भेद मिट जाता है। फिर आदमी सत्संगी बन पाता है।’ धर्म के नाम पर आपसी झगड़े की बात से जोरा सिंह आहत हैं। कहते हैं ‘मौत तो सबकी निश्चित है। हम अच्छे कामों के लिए क्यों न मरें।’