युवा पत्रकार राजेश कुमार की कहानी : ‘वीआईपी रोटी’

राजेश कुमार.
राहुल! ओ राहुल!
आवाज सुन मैं गहरी नींद से चौंक कर जागा। फिर कानों में आवाज पड़ी। राहुल, अब उठ जा?
मैंने देखा तो मेरे कमरे की खिड़की से सूरज झांक रहा था। दरअसल, आज घर में मेहमान आने वाले थे और उनके आने से पहले मां खाना बनाने की तैयारी में जुटी थी। मां सुबह के सभी कामों को निपटा चुकी थी। मैं रोज की तरह देरी से उठा। आंखें मसलते हुए कहा-‘आ रहा हूं मां, 2 मिनट रुक जाओ’
मां बोली-‘क्या 2 मिनट रुक जाओ, कोई भी काम कहो। इनके 2 मिनट ही पूरे नहीं होते। आज कल के औलादें सुनती ही कहां है। जा बाजार से जाकर सब्जी ले आ, मेहमान आने के बाद सब्जी लेने जाएगा तो अच्छा नहीं लगेगा। मैं जल्दी से आटा गूंथ लेती हूं।’


‘ओफ्फो इतनी सी बात थी क्या, ला देता हूं अभी’। तभी मेरी नजर रसोई में पड़ी जहां मां मिट्टी के चूल्हे में पड़ी लकड़ियों के धुएं से बचते हुए फूकणी से बार-बार हवा देते हुए आग जलाने की कोशिश में लगी थी। मैंने देखकर कहा- मां! ‘ये चूल्हा ही बेकार है, मैं कब से कह रहा हूं कि अपने गैस वाला चूल्हा लेकर आते हैं। उसमें न लकड़ी लगती है और न ही फालतू की मेहनत’।
मां ने मुझे दिलासे भरे स्वर में कहा-‘हां-हां ठीक है। लाएंगे’ जा पहले सब्जी लेकर आ’। मैंने फिर हताश भरे अंदाज में कहा-मां… मान भी जाओ। अपने इस बार थोड़े पैसे बचाकर नया गैस सिलेंडर वाला चूल्हा लेकर आएंगे। फिर आपको दिक्कत नहीं होगी। मैंने आधे घंटे तक बहस कर मां को नए गैस चूल्हे के लिए मना ही लिया।
ऐसा हमेशा से होता आया है। चाहे किसी भी तरह की ख्वाहिश हो मां ने कभी मना ही नहीं किया। ऐसा इसलिए कि उनमें मां और पिता दोनों के गुण एक साथ ही भरे थे। पिताजी तो हमें कबका छोड़कर एक अलग ही दुनिया में चले गए थे। इसके बाद मां ने मां के साथ साथ एक पिता की जिम्मेदारी बखूबी निभाई। उन्होंने मुझे और मेरी बहन को पढ़ाया-लिखाया, काबिल बनाया। मां ने ही अपने सभी सपनों को दरनिकार रखकर हमारे जीवन को सोने की तरह बनाया। ये बातें सोचते हुए मैं सड़क पर चल रहा था। तभी, हॉर्न सुनते ही सचेत हुआ और सब्जी लेकर मैं घर आ गया।


(समय बीतता गया। लाइफ स्टाइल भी बदलता रहा। समय के साथ साथ मोबाइल, वाशिंग मशीन से लेकर घर में गैस वाले चूल्हे ने भी बहुत पहले ही रसोई में अपनी जगह बना ली थी। एक समय था जब मां बैठकर आराम से रोटी बना लिया करती थी, अब उसे रसोई में खड़े खड़े ही रोटी बनानी पड़ती है। खैर…गैस वाले चूल्हे के लिए इतना बलिदान तो करना ही पड़ेगा। आज का समय ही देख लो सभी के घरों में सिर्फ और सिर्फ गैस वाले चूल्हे ही दिखाई पड़ेंगे। सरकार की योजनाओं के कारण अब तो गरीब से गरीब के घर सिलेंडर और गैस वाले चूल्हे ने अपनी जगह बना ली है। इन गैस चूल्हों ने रोटी बनाना भले ही आसान कर दिया हो लेकिन इन्होने हमारी जिन्दगी से रोटी की खुशबू और स्वाद छीन लिया है। कभी कभार मां छत पर बनाये हुए मिट्टी के अस्थाई चूल्हे से इन दोनों चीजों की कमी पूरी कर देती थी। चूल्हे के पास बैठे बैठे पता ही नहीं चलता था कि कितनी रोटियां खाई जा चुकी हैं। अब तकनीक हावी हैं, अब गैस चूल्हे के अलावा इलेक्ट्रिक तवों पर भी रोटियां बन जाती हैं। टेक्नोलॉजी के कारण समय तो बच गया लेकिन रोटियों की खुशबू और स्वाद से हाथ धो बैठे)
राहुल… ओ राहुल…
मां. पुकार रही थी.. आवाज सुन मैं नींद से जागा। आज फिर हमारे घर में मेहमान आने वाले थे। घर की घंटी बजी। मेहमानों का स्वागत हुआ। चाय पीते-पीते हम सभी ने खूब गपशप भी की। मां थोड़ी देर हमारे साथ बैठीं, फिर हर बार की तरह किचन में खाने की तैयारियों में जुट गई।
रसोई में से आती शाही पनीर की खुशबू की वजह से सभी को भूख भी लग आई। हमेशा की तरह मैं शाही पनीर टेस्ट करने के लिए किचन चला गया। मां ने पूछा- ठीक बन गई क्या? मैंने हाँ में जवाब दिया और बोला सब्जी तो शाही बनी है। लेकिन आज इस चूल्हे पर रोटी मत पकाइए।
मां ने चौंककर मेरी तरफ देखा तो मैंने कहा-गैस चूल्हे पर बनी रोटियां तो सभी खाते हैं, आज हमारे घर वीआईपी मेहमान आए हैं। इनके लिए गैस चूल्हे वाली नहीं, मिट्टी के चूल्हे पर आपके हाथों से बनी हुई ख़ास रोटियां बनाएंगे। ऐसी रोटियां आजकल मिलती ही नहीं है, ये तो नसीब वालों को ही मिलती हैं।
मां-आप जल्दी से आटा ऊपर छत पर ले आओ. बाकी सामान में उठा लाउंगा। इतना कहकर मैं भागकर छत पर गया और बिखरी हुई लकड़ियों को इकठ्ठा कर फूंकणी से बार-बार हवा देते हुए आग जलाने की कोशिश में जुट गया।

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