सेहत की बात: बिना तकिया के सोने से क्या लाभ होता है?

डॉ. पीयूष त्रिवेदी.
इंसान की जो रचना उस रचयिता ने बनाई हैं उसमें हमारी रीढ़ की हड्डी जिस तरह से बनी है उसमें उसने शरीर के आकार के अनुसार सीधापन रखा हैं। इस अनेक छोटे छोटे टुकड़ों के जोड़ों के बीच में से हमारी संवेदी सूचनाएं शरीर में आसानी से प्रवाहित होती हैं। यह हड्डी की विशेष संरचना हमारी सीट से लेकर हमारी दिमाग प्रणाली तक जुड़ी होती हैं। इसकी रचना इंसानी शरीर की जरूरतों अनुसार ही होती हैं। जो सूचनाओं को एक सीधे मार्ग से पहुँचा सकें। जब हम सिर के नीचे तकिया लेना शुरू कर देतें हैं तब इस रचना में काफी बदलाव आने लगता हैं और यह बदलाव तब ज्यादा रहता हैं जब शरीर को उसका सारा तनाव दूर करने की सबसे ज्यादा आवश्यकता हों। अर्थात जब हम रात में सो रहें होते हैं तब शरीर सबसे शिथिल अवस्था में होता हैं। दिन भर हम पैरों के ऊपर खड़े अवस्था में ज्यादा होते हैं जिसमें बैठे रहना भी शामिल हैं।
इस अवस्था में हमारे शरीर के सारे अवयवों का तनाव पैरों की ओर होता हैं। और जब सोतें हैं तब वह तनाव से मुक्त हो कर अपनी सही अवस्था को प्राप्त कर रहें होते हैं, जिससे हमारे थकान का सारा भार रीढ़ की हड्डियों पर आता है, जिससे वह सभी सूचनाएं सही तरीके से फैला सकें। जब हमारी गर्दन तकिए पर आ जाती हैं तब गर्दन से दिमाग तक कि इन नस नाड़ियों को पीठ की सीध न प्राप्त होते हुए ऊंचाई मिलती हैं जिससे उसका तनाव हल्का होने में परेशानी होने लगती हैं।
जब यह तनाव बढ़ता जाता है तब हमें सर्वाइकल की समस्या होनी शुरू होती है । इतना हीं नहीं बल्कि सिर में सही तरह से रक्त का आवागमन भी बाधित होने लगता है जिससे सिर दर्द, आंखे कमजोर हो जाना, सो कर जागते ही सिर भनभनाना, कुछ सेकंड के लिए चक्कर आना, सिर भारी रहना, जल्दी से कोई बात न समझ आना, सूझबूझ में कमी आदि की समस्या से भी रूबरू होना पड़ सकता हैं।
इतना ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक शास्त्र के अनुसार जब हम सो रहे होते हैं तब हमारे दिमाग में अल्फा, बीटा, और गामा तरंग बनते हैं इन तरंगों में इंसानी बुध्दि ही नहीं बल्कि इंसानी आध्यात्मिक मानसिक शक्ति की उन्नति होती है। इन्ही तरंगों से हमारी एकाग्रता शक्ति भी बढ़ती है। इन तरंगों के चलते वक्त हम प्रकृति से उस अकाट्य अद्भुत शक्ति को समझने और पाने की भी कोशिश कर सकते है।
यह सारी अतीन्द्रीय सूचनाएं हमें मूलाधार स्थित कुंडलीनी शक्ति से प्राप्त होती हैं जो उस वक्त मूलाधार से उन चमत्कारी सूचनाओं को सहस्त्रार में अर्थात दिमाग में पहुंचाता हैं।
अब ऐसे में यदि हम सिर के नीचे तकिया लेते हैं तो हम इस स्वर्णिम फायदे से भी वंचित हो जाते हैं। जब डॉक्टर कोई ऑपरेशन करता है फिर वह कोई भी हो तब जिसका ऑपरेशन हुआ होता है उसे तकिया न लेने देते हैं क्योंकि उससे मरीज को सिर दर्द की आजीवन समस्या होने लगती है ऐसा उनका मानना हैं।
तो बात साफ हैं इन सारी समस्या की जड़ तकिया लगा लेना ही है तो उन सारे लाभों को पाने का उपाय भी तकिया न लेना ही है।
-लेखक राजस्थान विधानसभा में आयुर्वेद चिकित्सा प्रभारी हैं।

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