एमएल शर्मा.
चाहे रात का सन्नाटा हो या निर्जन स्थल। आप अकेले हो और पास में रखा 3 क्विंटल अनाज ऊंट पर लादना असंभव प्रतीत हो तब एक शख्सियत आए, वह अकेले ही लदान कर दे तो इस पर यकीन करना जरा मुश्किल हो जाता है। बड़ी बात तब बनती है जब सूने स्थान पर सहायक बनने वाला कोई इंसान नहीं बल्कि भूत हो तो आज के समय अविश्वास होना लाजमी है। आमतौर पर कहा जाता है की भूत इंसान को क्षति ही पहुंचाते हैं पर यह भूत भलाई का पर्याय माना जाता रहा।
हनुमानगढ़ जिले के रावतसर उपखंड के गांव केलनिया में यह किंवदंती विख्यात है। जनश्रुतियों की माने तो जयपुर मार्ग पर पल्लू से 12 किलोमीटर आगे 700 साल पुराना केलनिया गांव बसा हुआ है। तत्कालीन समय में जाट जाति का केला देदड़ गांव का मुखिया था। उसके खानदान में श्यामा देदड़ हुआ जिसकी आजीविका पशुपालन थी। एक बार मुगल आक्रमणकारियों ने उसकी गाएं छीननी चाही तो आपसी संघर्ष में आतंकियों ने श्यामा देदड़ की गर्दन तलवार से काट दी। गर्दन कटने के बावजूद भी बलिष्ठ कद काठी के श्यामा की धड़ बिना सर के ही लड़ती रही। संघर्ष की तीव्रता से घबराए हमलावरों ने गाय के रक्त के छींटे धड़ पर डाले जिससे धड़ शांत होकर गिर गया। कहते हैं कि श्यामा भूत बनकर क्षेत्र में विचरण करने लगा। एकबारगी भयाक्रांत ग्रामीणों ने उस स्थान को छोड़कर थोड़ी दूरी पर गांव बसा लिया। उधर, श्यामा का भूत आम राहगीरों की सहायता करता, छाया पानी, विश्राम का इंतजाम करता। वह भलाई के कई काम करता। ऊंट पर लादने वाले अनाज के बड़े थैले जिन्हें छांटी कहते है, पल भर में लदान कर देता। यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा। जिससे केलनिया का भूत दूर-दूर तक प्रसिद्धि पा गया।
दंत कथा प्रचलित है कि एक दफा पूलासर (सरदारशहर) से बारात आ रही थी जिन्हें राणासर गांव में सांझ ढल गई। राणासर के वासिंदों ने बारात को खाना पानी देने से इनकार कर दिया। मजबूरी में चलते हुए बारात केलनिया पहुंची तो वहां पसरे सन्नाटे को देखकर सहम गई। बताते हैं कि तब श्यामा भूत ने अपने ख़ौफ से राणासर के लोगों से बारात की आवभगत करवाई। ऐसे ही सहायता के कई किस्से इतिहास में दर्ज हो गए। इतिहास के जानकार संतलाल बिजारणिया ‘ग्राम सेतु’ से कहते हैं ‘16वीं शताब्दी में भयंकर अकाल के चलते श्यामा के परिवार वालों ने नहरी क्षेत्र में रोजगार हेतु जाने का मानस बनाया। परिजनों की सहायता के आशय से श्यामा भूत भी साथ गया। रोजी-रोटी के जुगाड़ में श्यामा भूत किसी धनाढ्य के शरीर में प्रवेश कर जाता तथा परिजन झूठ-मूठ का झाड़ फूंक कर दक्षिणा ले लेते और श्यामा उस शरीर को छोड़ देता था। बगैर कुछ किए आर्थिक लाभ होते देख परिवार वालों का लालच बढ़ने लगा और श्यामा की परोपकारी वृति कम हो गई। ऐसे में श्यामा भूत ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। कहा जाता है कि तब परिजनों ने साजिशाना तरीके से श्यामा के भूत को मिट्टी की हांडी में बंद कर दफन कर दिया। उस समय श्यामा भूत ने परिजनों को देदड़ वंश खात्मे का श्राप दे दिया। तब खरताराम पुत्र हुनताराम देदड़ जाति में अंतिम व्यक्ति था जिसके कोई संतान नहीं थी। उसके बाद से केलनिया गांव में देदड़ जाटों का अस्तित्व समाप्त हो गया।’
( ग्राम सेतु इस तरह की कहानियों की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं करता बल्कि यह आलेख जनश्रुतियों पर आधारित है )