राजकुमार सोनी.
आजादी की लड़ाई में सबसे छोटी उम्र में शहीद होने वाले क्रांतिकारी में से दो क्रांतिकारियों का नाम विशेषतौर पर आता है। 18 साल की उम्र में बंगाल के खुदीराम बोस और 19 साल की उम्र में पंजाब के गांव सराभा के करतार सिंह सराभा। ‘गदर पार्टी’ और ‘गदर पत्रिका’ के संस्थापक और संचालक महान क्रांतिकारी लाला हरदयाल के सम्पर्क में रहे सराभा ने ‘गदर पत्रिका’ जो कि उस समय अनेक भाषाओं में छपता था उसका गुरुमुखी का एडिशन शुरू किया। जिसमें ब्रिटिश राज को खुली चुनौती दी गई। आग उगलते लेखों ने पंजाब में विद्रोह की ज्वाला को और अधिक भड़का दिया।
तब अंग्रेजों के मुखबीर कृपाल सिंह के इशारे पर उनके गदरी साथी हरनाम सिंह टुंडीलाट और जगत सिंह के साथ गिरफ्तार कर लिया और उन्हें ‘लाहौर षडयंत्र’ के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई।
सराभा की दिलेरी देखिए कि उन्हें फांसी की सजा होने के बाद रहम की अपील को ठुकराकर हंसी के साथ फंदे को चूमना स्वीकार किया। उन्होंने फांसी के फंदे पर चढ़ते हुए कहा था ‘वाहे गुरु जी अगर पुनर्जन्म होता है तो सच्चे पातशाह मेरी बेनती है कि मैं भारत में उस समय तक जन्म लेता रहूं जब तक भारत माता अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त ना हो जाए और मुझे मिली प्रत्येक जिंदगी को मैं भारत माता की आज़ादी के लिए कुर्बान कर दूं।’
शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह करतार सिंह सराभा को अपना गुरु मानते थे और हमेशा अपनी जेब में उनकी तस्वीर रखते थे। सराभा की दिलेरी देखिए कि जब उनके खेलने खाने के दिन थे तब उन्होंने हथियार चलाना और बम बनाना सीखने के साथ-साथ छोटी सी उम्र में हवाई जहाज चलाना भी सीख लिया था।
करतार सिंह सराभा की बहादुरी और बलिदान से प्रभावित होकर पंजाबी उपन्यासकार नानक सिंह ने उनके जीवन पर आधारित ‘एक म्यान-दो तलवारें’ उपन्यास लिखा, जिसे मैंने पढ़ा था। पंजाब के इस नन्हे लाडले सपूत और बहादुर क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा के जन्मदिन पर उन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
‘यही पाओगे महशर में जबां मेरी बयां मेरा
मैं बंदा हिंद वालों का हूं, है हिंदोस्स्तां मेरा’