डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’
लोक री बातां सैं सूं न्यारी। बठै बातां री कमी कठै! राजस्थानी लोक में तो पग-पग छेड़ै बातां रा सबड़का, सबड़कां भेळै जियाजूण री सीख, जे कोई लेवै तो…। ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ लोक सूं बेस्सी कुण जाणै !
‘हेत री हथाई’ में आज बांचो, लोक रै दूहां में सगपण नै लेय’र कथिजी हंस अर सरवर री बात –
भमतै-भमतै हंसड़ै,
दीठा बहु निध नीर।
पण इक घड़ी न बीसरै,
मानसरोवर तीर।
(घूमते घूमते हंस ने बहुत तालाब देखे, किन्तु एक घड़ी के लिए भी मानसरोवर के तट को वह भूल नहीं सका।)
हंसा सरवर ना तजो,
जे जळ थोड़ो होय।
डाबर डाबर डोलतां,
भला न कहसी कोय।
(अगर सरोवर में जल थोड़ा भी हो गया तो भी हे हंसों, सरोवर को मत छोड़ो क्योंकि छोटे-छोटे तालाबों में फिरते तुम भले नहीं लगोगे।)
सरवर केम उतावाळो,
लाम्बी छोळ न लेय।
आयां छा उड़ ज्यावस्यां,
पांख संवारण देय।
(हे सरोवर तूं उतावला क्यों हो रहा है, यह लम्बी-लम्बी उछालें क्यों मार रहा है ? आये हैं, फिर उड़ जायेंगे। थोड़ी-सा पंखों को विश्राम करने दे।)
जावो तो बरजूं नहीं,
रैवो तो आ ठोड़।
हंसां नै सरवर घणा,
सरवर हंस किरोड़।
(अगर आपको जाना है तो मेरी तरफ से कोई बाधा नहीं, और रहना है तो यह जगह है। अगर हंसों के लिए सरोवरों की कमी नहीं तो सरोवर के लिए भी करोड़ों हंस हैं।)
और घणा ही आवसी,
चिड़ी कमेड़ी काग।
हंसा फिर न आवसी,
सुण सरवर निरभाग।
(हे निरभागी सरोवर, तुम्हारे पास चिड़ी-कमेड़ी व काग जैसे बहुत से आयेंगे, लेकिन हंस फिर नहीं आयेंगे।)
सरवर हंस मनायले,
नेड़ा थकां बहोड़।
जासूं लागै फूटरो,
वां सूं तांण म तोड़।
(हे सरोवर, हंसों को मना ले, अभी कोई देर नही हुई है, जिनसे आपकी शोभा है, उनसे सम्बन्ध नहीं तोड़ने चाहिए।)