एम.एल शर्मा.
मंत्री बने जुम्मा-जुम्मा 9 दिन ही बीते थे कि भजनलाल के ‘वजीर’ के लिए श्रीकरनपुर की जनता ने मात देकर घर वापसी की राह खोल दी। सिस्टम की राजनीति शायद जनमानस को रास नहीं आई। तभी तो नव निर्वाचित सरकार से इतर विपक्षी पार्टी को जीत की जयमाल पहना दी। बेशक, मतदाता हुक्मरानों के इरादे पहले ही भांप चुकी थी। नतीजतन, भाजपा की करारी हार संभावनाओं के नए द्वार खोल रही है। हालांकि टीटी को प्रत्याशी रहते मंत्री बनाकर भाजपा ने अपना तुरूप का इक्का फेंका। पर यही निर्णय बीजेपी के ताबूत में अंतिम कील साबित हुआ है। इस चुनाव को जीतने की जुगत में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री सहित अधिकांश मंत्रियों व बड़े नेताओं के धड़ाधड़ दौरे करवाए गए, खूब भाषण बाजी, जुमलाबाजी हुई। पर नतीजा आशा के अनुरूप नहीं आने के चलते भाजपाई फिलहाल कुछ कहने की स्थिति में नहीं है।
उधर चुनाव परिणाम आते ही सोशल मीडिया पर मीम्स के व्यंग्य बाण चलमे लगे हैं। एक यूजर ने लिखा-‘सरकार मंत्री तो बना सकती है, पर विधायक नहीं।’ वहीं एक ने लिखा-‘आरएएस परीक्षा का मुख्य प्रश्न राजस्थान के पहले ‘अग्निवीर मंत्री’ का नाम बताइए ?’
भाजपा की सत्ता के भरोसे सीट पाने की जिद आखिर में जिद ही बनी रह गई, पूरी नहीं हो पाई। जनता झांसे में नहीं आई और विपक्ष में रहना मंजूर किया। बेशक, जनता जनार्दन का फैसला ही प्रजातंत्र की धुरी होता है। राजनीतिक दृष्टिकोण से यह हार भाजपा को आईना दिखाने वाली होगी इसमें कोई संदेह नहीं है। यहां जरूरी है कि सरकार एवं आलाकमान आत्ममंथन करे। क्योंकि जल्द ही लोकसभा चुनाव होने हैं। पर वोटर के रुख का सही तरीके से आकलन करने में फिसड्डी रहने वालों के लिए लोकसभा चुनाव में जीत की राह तलाशना इस दफा तो कम से कम आसान नहीं होगा। कहावत है कि कुत्ता, बिल्ली पाल लो पर भ्रम मत पालो। शायद अब आवाम रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास जैसे मुद्दों पर जनमत प्रदान करें। इसलिए समय रहते संभलना ही श्रेयस्कर होगा।
-लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व पेशे से अधिवक्ता हैं