




रामेश्वर लाल वर्मा.
हमारे देश की धरती अपने वीरतापूर्ण शौर्य के लिए जानी जाती है। चाहे हम चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम लें या पृथ्वीराज चौहान और महाराणा प्रताप जैसे महान शासकों को पढें। इन सभी का योगदान बहुत ही शौर्यपूर्ण रहा है। किंतु आज हम अपने इस लेख में उस महान वीरांगना के बारे में पढेंगे जिसके शौर्य को राजस्थान व गुजरात के इतिहास में भुलाया नहीं जा सकता।
भारत के इतिहास में यदि किसी महान वीरांगना का नाम लें तो हमारे सामने झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का नाम बङा उल्लेखनीय है। लक्ष्मी बाई की तरह भारत के इतिहास में महान वीरांगना नायिका देवी का नाम भी उनके अद्वितीय शौर्य के कारण जाना जाता है। बचपन से युद्ध कला में निपुणता हासिल करने वाली राजकुमारी नायिका देवी सोलंकी एक कुशल कूटनीतिज्ञ भी थी। इनका विवाह गुजरात के महाराजा अजयपाल से हुआ था। अजयपाल सिद्धराज जयसिंह के पौत्र तथा कुमारपाल के पुत्र थे। अंगरक्षक द्वारा वर्ष 1175 ई. में अजयपाल की हत्या के बाद राज्य की बागडोर महारानी नायकी देवी के हाथ में आ गई थी।

महारानी नायिका देवी सम्राट अजयपाल सोलंकी की विधवा महारानी व मूलराज द्वितीय व भीमदेव द्वितीय की माता थी। उनके पुत्र मूलराज द्वितीय व भीमदेव द्वितीय अभी बाल अवस्था में थे।
मोहम्मद गोरी का पहला आक्रमण मुल्तान के किले पर था। मुल्तान पर कब्जा करने के बाद वह दक्षिण की ओर राजपुताना और गुजरात की ओर मुड़ गया। अब वह अनहिलवाड़ा पाटन का समृद्ध किला जितना चाहता था। जब गोरी ने पाटन पर हमला किया, तो यह मूलराज द्वितीय के शासन में था, जो अपने पिता अजयपाल के निधन के बाद 10 वर्षीय उम्र में सिंहासन पर बैठे थे। हालांकि वास्तव में शासन को उनकी मां नायिकी देवी संभाल रही थी, जिन्होंने राजमाता के रूप में राज्य की बागडोर संभाली थी।

दिलचस्प बात यह है कि इस तथ्य ने गोरी को अन्हिलवाड़ा पाटन पर कब्जा करने के बारे में आश्वस्त कर दिया था। युद्ध से पूर्व मोहम्मद गोरी ने एक दूत गुजरात भेजा और कहलवाया कि राज्य की समस्त नारियाँ नायिका देवी सहित मोहम्मद गोरी के पास चली जाएं नहीं तो पाटन की दीवारें रक्त से नहायेंगी। नायिका देवी ने उतर दिया और कहा कि जाओ गोरी से कह दो हमें यह प्रस्ताव मंजूर है। दूत के निकलने के बाद नायिका देवी हाथ में तलवार लेकर अश्व पर सवार होकर निकल पङी युद्ध भूमि की।
1178 ई. में आबू/कायन्द्रा के युद्ध में गुजरात के चालुक्य शासक मूलराज द्वितीय की संरक्षिका नायिका देवी के नेतृत्व वाली सेना ने मोहम्मद गोरी को प्रथम बार बुरी तरह पराजित किया। घायल अवस्था में दर्द से कांपता हुआ मोहम्मद गौरी युद्ध मैदान से भाग निकला। इतिहासकार लिखते हैं कि महान वीरांगना नायिका देवी ने मोहम्मद गोरी को निर्वस्त्र करके भगा दिया था।
मेरूतुंग के द्वारा लिखी गई “प्रबंध चिंतामणि” नामक पुस्तक और अन्य इतिहासकारों के अनुसार मोहम्मद गौरी इतना डर गया कि मुल्तान पहुंचने के बाद ही वह अपने घोड़े से नीचे उतरा। मुल्तान पहुंचने के पश्चात मोहम्मद गोरी ने देखा कि वह नपुसंक बन गया। इस घटना के बाद मोहम्मद गोरी ने आगामी 13 वर्षों तक भारत की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखा।
इतिहास के पन्नों में नायिका देवी का नाम तक नहीं है। भारत के इतिहास की सबसे महान महिला योद्धाओं में से एक राजमाता नायिका देवी की अदम्य साहस और अदम्य भावना झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, मराठों की रानी ताराबाई और कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के बराबर हैं। फिर भी, इतिहास की किताबों में उनकी अविश्वसनीय कहानी के बारे में बहुत कम लिखा गया है ।
-लेखक पेशे से इतिहास के व्याख्याता हैं
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