मुद्दा गरम है: स्कूल की छत में दफन भविष्य!

एमएल शर्मा.
दिन रहा 25 जुलाई 2025, शुक्रवार। यह दिन सूबे के एक स्कूली बच्चों के लिए ‘स्याह काली तारीख; बन गया। बेहद दर्दनाक, दहशत एवं दारुण क्रंदन का माहौल। मौत के खौफ से अनजान मासूम बेवक्त ही काल का ग्रास बन गए। शिक्षाशाला में नादान नन्हा बचपन ‘जमींदोज’ हो गया। दरअसल, झालावाड़ जिले में मनोहर का थाना ब्लॉक के गांव पीपलोदी स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय में जर्जर इमारत की छत कक्षा में बैठे बच्चों के ऊपर भरभरा कर गिर गई जिसके नीचे स्कूली छात्र जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ने को विवश हो गए। अकस्मात हुए हादसे के घटित होते ही चारों ओर चीख पुकार मच गई। बेहोश बच्चों को गोद में उठा परिजन व ग्रामीण चिकित्सालय पहुंचे जहां पांच बच्चों को मौके पर ही मृत बताया गया तथा तीन जिंदगियां उपचार के दौरान जिंदगी की जंग हार गई।
मंजर इतना भयावह था कि 21 घायलों में 9 बच्चों की हालत अभी चिंताजनक बनी हुई है। हादसा इतना भयानक, दिल दहलाने वाला रहा कि भविष्य के सपने बुनते, गढ़ते नौनिहाल असमय ही मौत के मुंह में समा गए। हालांकि छात्रों ने छत के कंकड़ नीचे गिरने की शिकायत अध्यापकों से की थी, लेकिन इस बात को हल्के में लेना काफी भारी पड़ गया। इतना ही नहीं तीन दिनों पहले विद्यालय में 10 दिवस का अवकाश करने की बात सामने आई लेकिन महज एक दिन बाद ही विद्यालय फिर खुल गया। बिना किसी सुरक्षा मापदंड की पूर्णता के बच्चों का अवकाश रद्द करना, उनके जीवन की छुट्टी कर गया। हैरानी की बात है कि विद्यालय का नाम जर्जर भवनों की सूची में ही दर्ज नहीं है। बकौल, जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ के यह स्कूल जर्जर भवन की सूची में नहीं था। इसलिए यहां अवकाश निरस्त किया गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जिम्मेदार समस्या के प्रति गंभीर क्यों नहीं होते है। आखिर ‘माननीयों’ की नजरअंदाजी की कीमत ‘बाल्यकाल’ को अदा करनी पड़ी। अदायगी भी ऐसी जो हर प्रबुद्धजन की आंखे नम कर गई।
हे हुक्मरानों, यह हादसा नहीं हत्या है। हादसे पर ‘सत्ताधीशों’ की वही रटी रटाई प्रतिक्रिया। हम जांच करवाएंगे, अध्यापकों को निलंबित कर दिया गया है, प्रदेश भर में जर्जर स्कूल भवनों की सूची बनवाई जाएगी, फलाना-ढ़िमकाना। अपने सपनों को लेकर कुलांचे मारने वाला बचपन शिक्षा के मंदिर की इमारत में ही दम तोड़ गया। इससे बड़ी दर्दनाक बात और क्या हो सकती है? हादसे को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने शिक्षा विभाग को आड़े हाथों लिया। घटना की सूचना पाकर चिकित्सालय पहुंची राजे ने कहा कि यदि शिक्षा विभाग के अधिकारी ऐसे जर्जर भवनों को पूर्व में चिन्हित कर लेते तो हादसे को रोका जा सकता था। राजे ने प्रदेश के सभी स्कूल भावनाओं का सर्वे करवाने की मांग की, लेकिन यह भूल गई ढाई दशक से खुद इसी क्षेत्र से विधायक व 2 दफा सीएम रही है। इससे इतर शिक्षा मंत्री ने हादसे का दोष पूर्व सरकार के माथे मढ़ना चाहा। मदन दिलावर की बानगी देखिए, बोले कि कांग्रेस ने स्कूलों की सुध नहीं ली। अरे माननीय, अब तो आपदा को अवसर का रंग देना छोड़िए। क्रूर हादसे पर सियासत, कतई, सर्वथा अनुचित है। लाशों पर राजनीति करना लोकतांत्रिक परंपरा के विपरीत है। हद हो गई। जब आवाम जवाब मांगेगी और तब आपके पास सिवाय चुप्पी साधने व बगले झांकने के कुछ नहीं होगा, कुछ भी नहीं। शिक्षा मंत्री जी आक्रोशित अभिभावकों व ग्रामीणों के गुस्से से रूबरू हो चुके है। आपको भी करीब 2 साल का समय हो चुका है। आपकी ‘विकास गाथा’ जग जाहिर है।
उधर मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर सरकार ने मृतक बच्चों के परिजनों को 10-10 लाख रुपए मुआवजे की घोषणा की है। पर सवाल उठता है कि क्या यह रकम उन घरों को दीप्त कर पाएगी, जिनके चिरागों को यह हृदय विदारक हादसा बुझा गया।
जवां होते बचपन की चीखे बहरे ‘सिस्टम’ को कब सुनाई दी है। राज्य में सरकारी स्कूलों की जीर्ण शीर्ण हालत सरकारी तंत्र द्वारा बरती जा रही घोर लापरवाही की पराकाष्ठा है। शासन, प्रशासन और सरकार, अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो गए है। और यही संक्रमण काल है। सांप गुजर जाने के बाद लीक पीटने के माफिक सूबे के वजीरे-आला ने सभी जर्जर सरकारी भवनों की रिपोर्ट पांच दिनों में तलब की है। ‘सुल्तान’ शायद भूल गए कि सूचियां कई दफा बन गई परन्तु धरातल पर कभी काम की दरकार नहीं समझी गई। आगे भी शायद यही हो। क्योंकि मौजूदा दौर में किसको, किसकी पड़ी है? सियासतदानों की सोच है कि हादसों का क्या, होते रहते है। यही कार्यशैली ले डूबेगी। मां की ममता का आंचल में निस्तेज जिगर के टुकड़े का शव। आसमान को हिला देने वाली चीखें, सीत्कार, क्रंदन! पत्थर दिल भी रो पड़े।
हे राम! यह कैसा नया भारत है। गरीब की गुजारिश केवल परमात्मा से ही है। क्योंकि सरकार की रवायत है….. हादसों से सबक नहीं लेती और ना ही कुछ सीखती है। अब निशब्द हूं… सबको सन्मति दे भगवान!
-लेखक सम सामयिक मसलों पर स्वतंत्र टिप्पणीकार व पेशे से अधिवक्ता हैं

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