मिट्टी दी खुशबू: कूक फरीदा कूक तू

राजेश चड्ढ़ा.
पंजाबी साहित्यिक परँपरा दी शुरुआत 1173 ई विच मुल्तान (पाकिस्तान) दे नेड़े कोठीवाल पिंड दे शेख़ परिवार विच जन्मे बाबा फ़रीद तों शुरू हुँदी है, जिन्हाँ दियाँ सूफ़ी रचनावाँ 1266 विच उन्हाँ दे इस फ़ानी दुनिया तों जाण दे बाद आदि ग्रंथ गुरुग्रँथ साहिब विच शामिल कीतियाँ गईयाँ। फ़रीदुद्दीन गंजशकर मध्ययुगी काल दे सब तों सत्कारयोग रहस्यवादी सन। उन्हाँ नूँ फ़रीद अल-दीन मसूद गंज-ए-शकर बाबा अते शेख फ़रीद दे नाम तों वी जाणेया जाँदा है।
बाबा शेख फ़रीद इक महान बुद्धिजीवी, इक सँपूर्ण तपस्वी अते इक महान भगत सन। विनम्र आत्मा, सूफी संत बाबा शेख फ़रीद दी सारी मनुखता प्रति हमदर्दी सी। बाबा फ़रीद दियाँ वाणियाँ, उन्हाँ दी बोली विच अपणे प्यारे प्रीतम परम आत्मा नाल मिलन दी इच्छा, नम्रता, सादगी अते मिठास वजहों उन्हाँ नूँ सब लोकाँ विच सत्कारयोग अते हरमन प्यारा बणौंदी है।
असा तुसाडी सजणों अट्ठो पहर समाल॥
डीहें वसो मने मे राती सुपने नाल॥
आध्यात्मिक सिद्धाँत ते विचार करदे होये प्रीतम नाल इक मिक होण वजहों प्रेम नूँ सब तों वड्डा मरतबा दिंदे होये शेख़ फ़रीद कहँदे हन-‘हे मेरे प्यारे ! मैं दिन-रात तेरी याद विच रहँदा हाँ। दिन वेले तेरे बारे सोचदा हाँ अते रात नूँ तेरे सुपने लैंदा हाँ।’
सकर खंड निवात गुड़ माख्युं माझा दुध।।
मिठड़ियां हभे वसतूआं सांयी न पुजन तुध॥


प्रीतम दी महानता अते उसदी चाहत नूँ बयान करदे होये फ़रीद कहँदे हन कि सबतों मिट्ठी अते कीमती चीज़ाँ वी प्रीतम दी साधना करण लयी काफी नहीं हन। खँड, घ्यो, मक्खन, मावा अते दुध वरगियाँ मिट्ठियाँ चीज़ाँ वी उसदी स्तुति करण दे योग नहीं हन।
साजन पतियां तउ लिखो जे किछु अंतरि होइ॥
हम तुम जियरा एकु है देखनि कउं है दोइ॥
अद्वैत दी भावना नूँ प्रगट करदे होये शेख़ फ़रीद कहँदे हन कि मैं अते मेरा प्रीतम इक ही हाँ, सिर्फ़ बाहर तों दो दिखदे हन। हे मेरे प्यारे ! मैं तैनूँ इक चिट्ठी लिखणा चौहँदा हाँ, जेकर मेरे अंदर कुज शब्द होवण।
शेख फ़रीद कहे कलि मै मिठा पीव॥
इक मुवा अरु जालि मै को नूं रखां जीव॥
शेख फ़रीद कलयुग दियाँ मुश्किलाँ अते विरोधाभासाँ दा बयान करदे होये बुद्धि अते सहनशीलता नूँ अहमियत दिंदे हन। फ़रीद कहँदे हन कि इस युग विच मिट्ठा बोलना अते सहनशील होणा ज़रूरी है, क्योंकि भाँवे कोई वी इक नूँ मार देवे अते दूजे नूँ साड़ देवे, फेर कोई वी किस लयी जीवेगा?


कनक मोल कागद भया अरु मसु भई हीरे मोल॥
लिखनी भई जु लिख थके ए दोउ पिय के बोल॥
फ़रीद कहँदे हन कि जेकर कागज़ सोने दा अते स्याही हीरे दी होवे, तद वी प्रीतम दे बारे कुज लिखना मुश्किल है, क्योंकि उसदी महिमा अते ढूँगायी नूँ शब्दाँ विच बयान नहीं कीता जा सकदा।
कन्नां दन्दां अखियां सभना दिती हार ॥
वेख फरीदा छड गए मुढ कदीमी यार ॥
शेख़ फ़रीद कहँदे हन कि हालात दे मुताबिक मेरे कान, दाँद अते अक्खाँ ने वी हार मान लयी है। हे फरीद! वेख, पुराणे मित्र वी छड के चले गए हन। इस दा मतलब है कि जीवन अस्थायी है अते समय दे नाल बदलाव अटल हन।
तन समुन्द मनसा लहरु अरु तारू तरह अनेक॥
ते बिरही क्युं जीवते जि आहे न करते एक॥


प्रेमी दे विरह भाव नूँ बयान करदे होये बाबा फ़रीद कहँदे हन शरीर समुद्र है, मन दियाँ इच्छावाँ अते विचार ढेर सारियाँ लहरा हन। जदों प्रेमी इक दूजे बगैर नहीं रह सकदे ताँ दोवें बचे किवें रह सकदे हन?
पलका सो पग झारती जो घर आवै पीउ।।
अउर बधावा क्या करो मैं पल पल वारे जीउ॥
प्रेमिका दे ढूँगे भाव नूँ बयान करदे होये फ़रीद ने केहा है कि अपणे प्रीतम दे औण ते प्रेमिका ही है जो सब तों वध खुश हुँदी है। उस वेले प्रीतम दे चरणाँ ते डिगण लयी तैयार हो जाँदी है अते अपणा जीवन तक उस नूँ समर्पित करन लयी तैयार हो जाँदी है।
कूक फ़रीदा कूक तू, ज्युं राखा जुआर।।
जब लग टांडा न गिरै तब लगि कूक पुकार।।
शेख फ़रीद ज़िंदगी विच कोशिश अते लगन दी सच्चाई दिखाँदे होये कह रहे हन कि जिस तरहाँ जुआर दा पौधा अपणे बीज पकण तक चीखदा रहँदा है, उसे तरहाँ प्रीतम नूँ अपणे सच्चे प्यार लयी कोशिश करणी ही पैंदी है।
-लेखक आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक और जाने-माने शायर हैं

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