




राजेश चड्ढ़ा.
अठारहवीं सदी दा दौर मशहूर पँजाबी कवि वारिस शाह दा दौर सी। वारिस अजेहे कवि हन जेड़े हीर राँझा वरगी प्रेम कहाणी दे महाकाव्य वजहों जाणे जाँदे हन। हालाँकि वारिस शाह इस नूँ कहण वाले पहले आदमी नहीं सन, पर फेर वी उन्हाँ दा केहा, पँजाबी साहित्य विच प्रामाणिक अते सब दा प्यारा बण गया।

एह इक विरोधाभास है कि इक कवि, जिसने नाँ कदे व्याह कीता, नाँ ही उसदी ज़िंदगी विच कदे कोई औरत रही, एसे वारिस ने इक अजेही कहाणी रची जो हीर राँझा दे नाँ तों इक प्रतीकात्मक प्रेम कहाणी बण गयी।

हीर राँझा दे अलावा वी वारिस शाह ने पँजाब खिते विच खास तौर ते राजनीतिक अते सामाजिक उलट-फेर दे दौर दियाँ रचनावाँ कीतियाँ। उन्हाँ दियाँ कवितावाँ प्रेम,विछोड़ा, सामाजिक दबाव अते मनुखी रिश्तेयाँ दियाँ गुँझला वरगे विश्वयापी विषयाँ दी पड़ताल करदियाँ हन। उन्हाँ दी लेखनी दी खासियत सरल पर भावनात्मक भाषा वरतों दर्शायी गयी है, जो हर किसे नूँ अपणी तरफ खिचदी है।

वारिस शाह दी इक कविता है-
‘मेरे दिल दी पहली कहानी पढ़’
‘किसे होर नूँ यार बनावीं ना,
मैनूँ सोच समझ के दिल देवीं,
मेर नाल मज़ाक बनावीं ना,
इस प्यार विच रोले हुँदे ना,
दिल क़ैम रखीं घबरावीं ना,
जे तूँ मँगे ते मैं जिंद देसाँ,
पर किसे होर नूँ यार बनावीं ना,
वैरी जग सारा इस प्यार दा ए,
बे कदरे नूँ दर्द सुनावीं ना,
ऐ दुनिया बड़ी ही जालिम ए,
ऐनूँ कदी वी दुख सुनावीं ना,
हर इक नई हुँदा प्यार दे काबल,
ऐ गल मेरी वी भुलावीं ना,
श्वारिसश् जे मिल जावे तैनूँ दोस्त सच्चा,
उस दोस्त नूँ कदी गवावीं ना…!!’

वारिस शाह दी एह कविता प्रेम अते वफ़ादारी दी जटिलताँवा दी पड़ताल करदी है अते जल्दबाज़ी विच कीतियाँ गइयाँ वचनबद्धतावाँ अते बेवफ़ाइयाँ विरुद्ध चेतावनी दिंदी है। एह कविता हर किसे नूं अपणे प्रीतम नूँ समझदारी नाल चुनण अते बाहरी विरोध दे नाल मुसीबताँ दे बावजूद अपणी भक्ति विच अडिग रहण दी ताकीद करदी है। इस कविता विच सरल अते सिद्धी भाषा दा इस्तेमाल कीता गया है। एह कविता सजावट या बहुत ज़्यादा काविक प्रगटावे तों बचदी है। एह उस समय दियाँ साहित्यिक अते सभ्याचरक परंपरावाँ तों प्रभावित जापदी है। प्रेम दे इक वखरे पहलू दी पड़ताल करदे होये सादगी अते भावनात्मक ढूँगाई नूँ दर्शाैंदी है। एह वफ़ादारी दी महता अते बेवफ़ाई दे नतीजेयाँ ते ज़ोर दिंदी है अते रिश्तेयाँ विच सामाजिक उम्मीदाँ दियाँ जटिलतावाँ नाल जूझ रहे लोकाँ दी अँदरुनी तकरार अते भावनावाँ नूँ दर्शाैंदी है।

वारिस शाह अपणी इक होर कविता विच आखदे हन-
‘की मुक्क जाणा सी वारिस शाह दा,
लिखी राँझे नाम जे हीर हुँदी।
नशा अक्ख दा इक वारी चढ़ जावे,
पूरी इश्क दी फेर तासीर हुँदी।
झूठा रब्ब नू तुस्सी कहने वालेयो,
निगाह मेरी नाल जे देख लवो,
झूठ अख कदे नी कह सकदी,
निगाह यार दी निगाहे-ए-पीर हुँदी।
तेरी अक्ख तो ओहले मैं हुँदा ना,
माड़ी एन्नी जे ना तकदीर हुँदी।;

वारिस शाह दी एह कविता प्रेम नूँ, प्रेम दी ताकत वजहों पेश करण दा एलान है। बुलारा प्रेम दे परिवर्तनशील स्वभाव दा बखान करदा है, जो दो रूहाँ नूँ किसे वी चीज़ नालों ज़्यादा ढुँगाई नाल जोड़ सकदा है। एह कविता सरल पर ताकतवर शैली विच लिखी गयी है। वारिस दियाँ दूजियाँ रचनावाँ दी तुलना विच, एह कविता ज़्यादा सरल है। एह कविता उस समय दे प्रचलित प्रेम अते समर्पण दे विषयाँ नूँ वी दर्शाैंदी है जिस विच एह लिखी गयी सी।
-लेखक आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक और जाने-माने शायर हैं



