



रूंख भायला.
राजी राखै रामजी! ‘हेत री हथाई’ में आज आपां बात करस्यां गाळां री….!, हैं……..! हैं क्यांरी, जे ताबै लागसी तो काड’र ई देखस्यां ! आ के जची ? भई, जद आखै देस में अबार सड़क सूं संसद तंई, खबरिया चैनल्स अर सोसियल मीडिया पर लोग गाळो-गाळ हो रैया है, ओछी राजनीति रै इण कोझियै बगत में देस रै परधान नै मा री गाळ काड रैया है तो पछै बात तो करणी ई पड़सी, नीं पछै हथाई में सार ई के।

कांई होवै ‘गाळ’ अर क्यूं लागै है दोरी ? साची बूझो तो गाळ लोक चेतना रो अेक महताऊ तत है, देस दुनिया री हर भासा में गाळ लाधै, घर सूं गवाड़, खेत सूं खळा, बजार सूं मंडी, चौफेर तका लेवो, गाळां रा अणूता भंडार भर या है। गाळ कैबतां में लाधै, ओखाणां में लाधै, बातां में लाधै, हथाई में लाधै, गाळ बिना दुनिया रो कोई सबदकोस कोई, बोली, कोई भासा पूरी नीं होवै। जद आपणै लोक में गाळ है तो पछै इण बाबत बात करतां क्यारो संको ! क्यां री रीस !! गाळां रो तो अेक अनूठो सगपण है मिनख रै ब्यौहार सूं। हंकारणो चाहीजै, गाळां आपणी संस्कृति रो अेक महताऊ पख है जिण पर भोत कम बात होवै, पण आज आपां करस्यां।

गाळ रा दो रंग है, अेक अंतस में भरीजी रीस सूं निपजै अर दूजी हांसी मजाक, छेड़छाड़ सूं जलमै। आपणै लोक में दोनूं रंगां में रंगीजी धपाऊ गाळां है जिकी मूंडै आवताई आपरा रंग दिखा देवै। पैलड़ै रंग में बै गाळां है जिकी राड़ करावै, गदीड़ घलावै, सिर फुड़ावै, जिकी मिनख मरावै, घमसाण करा देवै। दूजोड़ी बै है, जिकी लोकगीतां में गाइजै, जिण सूं सग्गा परसंग्यां रिझाइजै, हंसा-हसां’र बक्खी दुखाइजै, जिकी अपणायत अर हेत में बधेपो करै। है दोनूं गाळ ई, पण अेक मरावै, दूजी हरखावै।

दुनिया भांत-भंतीली है तो बठै गाळयां ई न्यारी-न्यारी ! दुनिया री हर भासा अर बोली में गाळां रो ठरको अलायदो। आपां मा बैन री गाळ नै मोटी मानां, तो दागिस्तान में सैं सूं मोटी गाळ है, ‘जा थारा टाबर मा बोली भूल जावै !’ अंग्रेजी में तो ‘गैट लोस्ट’/गो टू हैल/फक ऑफ/शिट/बुलशिट आद गाळां मूंडै में आवता ई जूत बाज जावै। आपणी भासा में कहीजै, रांड सूं बत्ती गाळ कोनी, बा काड्यां पछै लारै फेर बचौ ई के….। रांगड़ नै तो रैकारै री ई गाळ घणी, घमसाण मचा देवै बो।

सिर फुड़ावणी आं गाळां री बात करां तो बाळपणै में टाबर दूजी सैंग बातां साथै गाळ रा संस्कार ई सीखै। घर, गळी, गवाड़ में लोगां नै गाळ काडते देख उण रै कौतक जागै अर बो ई बां सबदां नै बरतणै री खेचळ करै, मतलब तो कद जाणै बो! आ न्यारी बात, कै इण गाळ अभ्यास रा सबद जे कदेई मा का बापू रै कानां में पड़ जावै तो गदीड़ घलतां देर ई नीं लागै। कुटाई रो ओ अणचाइजतो परसाद मिल्यां ई टाबर नै ठाह पड़ै, कै ओ सबद भोत माड़ो है, बेटै कुटा दियो, पछै कीं सावचेती राखे बो..।

चेतो करो दिखाण, बाळपणै में सैं सूं चावी गाळ ही, ‘साळा कुत्ता !’ अब कोई बूझै, ‘साळा तो सांपां नै ई प्यारा होवै’ पछै उण नै गाळ में क्यूं बरतीजै ? थे कैय सको, घर में ‘साळा, भींत में आळा’ इण रिस्तै री सावळ ओळखाण करावै, सो कोई हरज कोनी ! पण म्हूं बूझूं, बापड़ो कुतियो, झोळी-बायरो जीव, उण कांई बिगाड़्यो है आपरो, क्यूं डंडीज्यो बो…? कुतियै री ठौड़ जे इण गाळ में मिनकी ले लेवता तो ई बात ओपती, कै बा छागटी मौको लागतांई चोरी सूं दूध मळाई चट कर जावै। पण नंई, आपां तो ‘खावै सूर कुटीजै पाडा’ री परम्परा रा हां, आपां नै कुण रोकै ! बाळपणै में इसी घणी छोटी-मोटी गाळां सुणता-बरतता आपां आगै बधां। गाळ री कुबाण बातां में आप मतई कद आय जावै, ठाह ई नीं पड़ै। म्हानै चेतै आवै, इस्कूल रै दिनां इण कुबाण नै छुडावण सारू म्है भायला ‘‘गाळी मुक्का’’ खेल्या करता। नियम ओ हो कै बंतळ करती बेळा जे मूंडै सूं कोई गाळ निसरै तो भायला दे गदीड़ पर गदीड़…। कूट खावणै रै डर सूं बोलती बेळा सावचेत रैवणो पड़तो। अेक सरदार भायलो बलजीत, जिण नै आ कुबाण कीं जादा ई पड़गी, लाई भोत कुटीजतो। डूक पड़ते ही मूंडै सूं आप मतैई गाळ निसरती, अर भळै डुक त्यार !

गाळ रै दूजै रंगां री बात करां तो बठै हरख अर आनंद निपजै। कहीजै, ‘गावतां रा सीठणा अर लड़तां री गाळां’। ब्याव-एढै रै मौकै सग्गै-परसंग्यां नै गाळ गावण री जूनी परम्परा है आपणै। लोक में अेक बात लाधै, जद स्वयंवर रै पछै भगवान राम, सीता माता नै गाजै-बाजै साथै ल्यावण पूग्या तो बठै सीताजी रै पी’र पख सूं बान्नै झीणी-झीणी गाळां गाइजी, अर हरख मनाइज्यो। गाळां सूं हरखीजणै री आ परम्परा अजेस ई लगोलग चाल रैयी है। आओ, आं गाळां रा रंग देखां, जिकां नै सुण-सुण थाळी जीमता जवांई भाई, सग्गा परसंगी रूसणै री ठौड़ पाट-पाट हांसै अर हरख मनावै। ल्यो अेक राजस्थानी बानगी बांचो दिखाण-जवांई रै भाया सारू-
मांज्या धोया थाळ परूस दिया भात जी/आओ आओ फलाणारामजी,
थे बाणै घालो हाथ जी
बाप थारो साटियो, मां बिणजारी जी/भुवा थारी भगतण मोडियां रै लारी जी….
चारूं भाई चोरटा, भैन उदाळ जी/काकी थारी कुतड़ी मुत्तै चूल्है मांय जी…
मांज्या धोया थाळ परूस दिया भात जी…

सग्गा नै गाइजै-
जीम्या जाय भई जीम्या जाय/मूंछ्यां चावळ लियां जाय/म्हारा चावळ म्हानै देवो/मूंछ्या आगै ढेहरा देवो/
जीम्या जाय भई जीम्या जाय/ढुंगां गादी लियां जाय/म्हारी गादी म्हानै देवो/ढूंगा हेठै ढेहरा देवो…अक्खड़ हरियाणवी रा रंग ई बांचल्या। बै तो सग्गै नै लुगायां बिच्चाळै बिठा’र इस्या-इस्या सिठणा गावै जाणै सुण ई बो करै-
मैं तन्नै समधी बरज रही, ज्वार मत बीजै……
गंडासे पै समधी तै रेती लगवा ल्यो रै समधी तै….
समधी पै पाणी भरा ल्यो रै समधी पै/फोडैगा टोकणी, मारूंगी फूकणी, तोड़ूगी कूणी…
पंजाबी सीठणा में तो और ई खुल्ला बोलै। चावा-ठावा पंजाबी लोक गायक कुलदीपसिंग अर बांरी जोड़ायत बीबी जगमोहन कौर रो गीत ‘पूदना’ (पुदीना) सुणो, गाळां सुणनै में आनंद नीं आवै तो म्हानै कैय देया।
सचीमुची पूदने नाळ मूं ठरया/ नीं तू खसम तेरहवां करयां/तेरा इक दो नाळ नीं सरया/नीं साडा बड़ा करारा पुदना….
सचीमुची पूदना मरे हरियाई/नीं तेरी भैण ने कर लया नाई/सारे पींड से मची दुहाई/ नीं साडा बड़ा करारा पुदना….
सचीमुची पुदना मेरा कुम्ळाया/तेरी मा की चन्न चढाया/छड्ड तेरा प्यौ ते कर लया ताया/ नीं साडा बड़ा करारा पुदना….
सचीमुची पूदना तेरी खुराक/नीं तू जमके चार जवाक/हजे वी करदी व्या दी झाक/साडा बापु नीं लैंदा साख/ नीं साडा बड़ा करारा पुदना….
सचीमुची पूदना मसालेदार/तेरी भुवा कित्ता कुम्हार/तड़के गधे नूं थापी मार/तेरी बेबे कढदी धार नीं साडा बड़ा करारा पुदना…./

यूपी बिहार में समधी नै इण भांत गाळां गाइजै-
आज हमारी समधन बिके है, कोई ले लो/अठन्नी नहीं है तो चवन्नी में ले लो
समधी जी की जोरू का घाघरा/धोबी धोवै रे छिनाल हाय दैया
समधी जी तो बैठे-बैठे मूंछां ताव लगाते है/सुबह सवेरे चाय बनाकर समधन को पिलाते हैं
मारवाड़ में होळी री फागणिया गीत, जिका सग्गा-सग्गी नै गाइजै, जे आप सुणलो तो कानां रा कीड़ा झड़ जावै। पण के मजाल आं भूंडी गाळां सूं कोई सगो सगी रूस्या होवै। साची बात तो आ कै गाळां अपणायत अर प्रीत प्यार में बधेपो करै, अे माड़ी कियां हो सकै ! ‘मा री गाळ, घी री नाळ’ आपणी ही तो बात है।

आज री हथाई रो सार ओ है, गाळां धपाऊ काडो, पण प्रेम अर हरख री। जे रीसां बळता काडस्यो तो गदीड़ का फदीड़ त्यार है। चेतै राखणो, काळजै लाग्योड़ा बोल आदमी कदेई नीं भुला सकै, इण सारू बस पूगतां किणी नै माड़ो नीं बोलणो, किरोध री अगन मे बळती गाळ नीं काढणी। हां, जे कणाई भूलचूक सूं कोई माड़ी बात मूंडै सूं नीसर ई जावै तो स्याणप इणी में कै माफी मांगणै में लारै नीं सिरकणो, पग पकड़लो भलंई, देर नीं करणी ! बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बस्सो….।
-लेखक राजस्थानी व हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं


