





धीरेंद्र कुमार झा ‘धीरू’
मिथिलाक माटिमे सदैवसँ विद्वान, तत्त्वज्ञानी आ दर्शन शिरोमणिक उदय होइत रहल अछि। उदयन अक्षपाद गौतमसँ शुरु होइबला प्राचीन न्यायक परम्परा केर अंतिम प्रौढ नैयायिक मानल जाइत छथि। ई ओहि परंपराक अमर दीप छथि, जे समस्त आर्य सभ्यताक लेल पथप्रदर्शक सिद्ध भेलाह। अपन प्रकांड पांडित्य, अलौकिक शेमुषी आओर प्रौढ तार्किकताक कारण ई ‘उदयनाचार्य’क नामसँ प्रख्यात भेलाह।

दशम सदीक उत्तरार्ध हिनक आविर्भावकाल मानल जाइत अछि। ई मिथिलाक करियन गामक निवासी छलाह, जतय हिनक वंशज आइयो रहि रहल छथि। ई गाम बिहार राज्यांतर्गत जिला मुख्यालय समस्तीपुरसँ 28 किमी आओर दरभंगासँ 35 किमी दूर छैक। करियन सड़क-मार्गसँ नीक तरहेँ जुड़ल अछि, ई रोसड़ा बाजारसँ 12 किमी उत्तर आओर बहेड़ी (रोसड़ा-शिवाजीनगर-बहेड़ी मार्ग) सँ 12 किमी दक्षिणमे छैक।

आचार्य उदयनक जीवन केर दूटा घटना ओहि समयसँ वर्तमान पीढी धरि परम्परागत लोकक जनतबमे आयल अछि। पहिल ई जे, एकटा शास्त्रीय विचार-विमर्शमे आचार्य उदयन ‘नैषधीयचरितम’ केर ग्रंथकार श्री हर्षक पिता श्री हीराकेँ हरा देलन्हि। श्री हीरा स्वयं त’ एकर बदला नहि ल’ सकलाह परंच मरैत काल अपन पुत्र हर्षकेँ ई बात कहि गेलखिन्ह जे ओ उदयनकेँ हराबथि। मुदा एहन भ’ नहि सकलैक। ई कहल जाइत छैक जे श्री हर्ष अपन ग्रंथ ‘खण्डनखण्डखाद्यम’ मे उदयनाचर्यक मतक आलोचना केलन्हि। ओना एहि संदर्भकेँ ध्यान देला उत्तर ईहो लगैछ जे आलोचना न्याय वैशेषिक, मीमांशा आओर बौद्ध मतक अछि, उदयनाचार्यक मतक नहि।

दोसर घटना ई जे एक बेर उदयनाचार्य भगवानक आशीर्वाद आ कोनो प्रकारक त्रुटिक क्षमा हेतु पुरीमे जगन्नाथजीक मंदिरक मुख्य द्वार पर ३ दिन धरि ध्यानस्थ रहलाह। तैयो दर्शन नहि पाबि भगवानहुकेँ ललकारि, एत’ तक कहि देलखिन्ह जे अहाँ मदमे हमर अवज्ञा कए रहल छी परंच बौद्धक उपस्थिति होम’ पर अहाँक स्थिति हमरे सभक अधीन अछि।
ऐश्वर्यमदमतोेसि मामवज्ञाय वर्तते।
उपस्थितेषु बौद्धेषु मदधीना तव स्थितिरू ॥

सुनैत छियैक जे, फाटक तुरंत खुजि गेलैक आओर बौद्धावतार ईश्वर हुनका सोझाँ प्रकट भए कहलथिन्ह जे अहाँ काशी जाउ जतय एहि प्रकारक त्रुटि व शंका क प्रायश्चित सम्भव अछि। ओकर बाद उदयनाचार्य काशी आबि अपन समय बितौलन्हि।
ई प्राचीन न्यायग्रंथ आदि केर रचना सेहो केलन्हि जाहिमे हिनक मौलिक दृष्टि आओर उदात्त प्रतिभाक परिचय भेटैत अछि। उदयनाचार्य न्याय आ वैशेषिक दर्शनक सम्यक समन्वय करैत एक नव पद्धति कृ नव्य-न्याय, केर नींव रखलन्हि। एहि नवीन दृष्टिकोण मे ओ केवल वैदिक सिद्धान्त सभकेँ बचबैते नहि, बल्कि ओकरा नवीन दृष्टि आ विवेक प्रदान करैत छलाह।

‘न्यायकुसुमांजलि’ हुनकर सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रंथ, ईश्वरक अस्तित्व पर तर्कसंगत प्रमाण प्रस्तुत करैत अछि। ई ग्रंथ बौद्ध दर्शनक प्रमुख आपत्तिक खंडन करैत वैदिक विचारधाराक संस्थापन करैत अछि। ओकर अतिरिक्त किरणावली, तात्पर्यपरिशुद्धि, लक्षणावली, बोधसिद्धि, आत्मतत्वविवेक आ अन्य कइएक रचना तर्क, आत्मा, पदार्थ, ज्ञान आ विमर्शक
परिधिमे वैदुष्यक नवीन आलोक प्रस्तुत करैत अछि। उदयनाचार्य न केवल मिथिलाक, अपितु सम्पूर्ण भारतीय दर्शन परंपराक गौरव सँ मंडित नक्षत्र छथि। बौद्ध आ चार्वाक मतवाद सँ हुनकर निरंतर शास्त्रार्थ आ विजय, हुनकर असाधारण तर्कशक्ति आ आध्यात्मिक निष्ठाक प्रमाण थिक।
-लेखक मैथिली साहित्य पर मजबूत दखल रखते हैं




