मिट्टी दी खुशबू: मानस की जात सभै एकै पहचानबो

राजेश चड्ढ़ा.
दशमगुरु श्रीगुरुगोबिंद सिंह जी दा वचन,
‘मानस की जात सभै एकै पहचानबो’
एही सँदेश दिंदा है कि सारे मनुख इक ही जाति दे हन अते उन्हाँ नूँ इसे तरहाँ मानता दिती जाणी चाहीदी है। एह विचार जाति ते आधारित किसे वी तरहाँ दे भेदभाव नूँ रद्द करदा है। एह सँदेश सारे मनुखाँ विच एकता, समानता अते भाईचारे नूँ उत्साहित करदा है। जाति दी प्रथा नूँ आम तौर ते हिंदुआँ नाल जोड़ेया जाँदा है, पर भारतीय उपमहाद्वीप विच दूजे पँथा दे पैरोकार वी इस प्रथा दे शिकार सन, जिस विच मुसलमानाँ अते ईसाइयाँ दे कुज समूह वी शामिल सन।


बीसवीं सदी दी शुरुआत विच साढे देश विच न सिर्फ़ आज़ादी लयी सँघर्ष चल रेहा सी सगों सामाजिक सुधार लयी वी वढियाँ-वढियाँ लड़ाइयाँ चल रहियाँ सन। इन्हाँ सारियाँ सामाजिक लड़ाइयाँ विचों इक लड़ाई शिक्षा दा बराबर अधिकार सी।


प्रसिद्ध समाज सुधारक स्वामी दयानँद ने अपणे अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश विच ऐलान कीता सी कि राजा दे पुत्तर तों लैके गरीब आदमी दे बच्चे तक हर किसे नूँ शहर दे बाहर गुरुकुल विच भोजन अते होर सहूलताँ दे नाल सही शिक्षा मिलनी चाहीदी है अते उसदी जात उसदी शिक्षा ते आधारित होणी चाहीदी है। जेड़ा अपणी सँतान नूँ शिक्षा लयी ना भेजे उस नूँ राजदँड दिता जाणा चाहीदै। इस तरहाँ छोटी जाति तों लैके उच्चियाँ जातियाँ तक सारे बच्चेयाँ नूँ बराबरी नाल शिक्षा देणा अते उस समाज दा इक जिम्मेदार नागरिक बनौणा शिक्षा दा मूल मकसद सी।


स्वामी दयानंद दे इँकलाबी विचाराँ तों प्रेरित हो के बड़ौदा दे राजा सयाजी राव गायकवाड़ ने अपणे राज विच दबे कुचले लोकाँ नूँ उच्चे चुकण दा फैसला कीता। आर्यसमाज दे स्वामी नित्यानँद, जदों प्रचार करण लयी बड़ौदा आये ताँ महाराज ने स्वामी जी नूँ अपणी इच्छा प्रगट कीती कि उन्हाँ नूँ किसी ऐसे आदमी दी लोड़ है जेड़ा शिक्षा सुधार कारज नूँ कर सके।


उन्हाँ दिनाँ विच पँडत गुरुदत विद्यार्थी तों प्रेरित हो के आत्माराम अमृतसरी जिन्हाँ ने हुणे-हुणे ही बीए कीती सी, स्वामी नित्यानंद दे हुकम ते उन्हाँने अध्यापक दी नौकरी छड दिती अते बड़ौदा जा के जाति दे आधार ते पीड़ित विद्यार्थियाँ नूँ शिक्षा देण दा फैसला कीता। इक पक्की सरकारी नौकरी नूँ छड के गुजरात दे पिंडाँ विच वंचिताँ नूँ उच्चे चुकण दा फैसला लैण वाले अते अमृतसर विच जन्मे पले आत्माराम जी मूल रुप विच राजस्थानी माहेश्वरी परिवार तों सन।


पँडत जी भाँवे गुजरात दे रँग विच रँग के पक्के गुजराती बण गये पर नाँ दे नाल आत्माराम अमृतसरी ही लिखदे रहे। जदों पंँडत आत्माराम अमृतसरी बड़ौदा दे राजा नाल मिले ताँ पँडत जी नूँ उन्हाँ ने दलित पाठशालावाँ खोलण दे विचार बारे दसेया अते उन्हाँ नूँ ही सुपरीडैंट बणा दिता। मास्टर जी जगहा लभण लयी निकल पये। जिंवें ही मास्टर आत्माराम जी नूँ कोई जगहा पसंद औंदी दलित पाठशाला दा नाँ सुण के कोई वी उस नूँ किराये ते नहीं दिंदा सी। अखीर विच मास्टर जी नूँ इक भूत बँगले विच पाठशाला स्थापित करण लयी मजबूर होणा पेया।


गायकवाड़ महाराज ने कुज समाँ दे बाद अपणे अफसर शिंदे जी नूँ भेज के पाठशाला दा हाल चाल पता करवाया। शिंदे जी ने आ के केहा-महाराज मैं अजेहा नजारा वेख के आ रेहा हाँ जिसदी कोई कल्पना वी नहीं कर सकदा। नींवीं समझनण वाली जाति दे मुण्डे वेद मंत्राँ नाल रब दी स्तुति कर रहे सन अते कुड़ियाँ भोजन बणा रहियाँ सन जिस नूँ सारियाँ उच्चियाँ-नीवियाँ जातियाँ बिना किसे भेदभाव दे ग्रहण कर रहियाँ सन। एह सुण के महाराज नूँ तसल्ली होयी। पर एह कारज ऐवें ही संभव नहीं सी होया।
मास्टर जी खुद अपणे परिवार दे नाल किराये ते रहँदे सन, जिंवें ही मकान मालिक नूँ पता लगदा की मास्टर जी वँचिताँ दे उत्थान विच लगे होये हन, मकान मालिक उन्हाँ नूँ झिड़कदे सन अते मकान खाली करवा लैंदे सन।


इस तरहाँ मास्टर जी नूँ बहुत सारियाँ मुसीबताँ दा सामना करणा पेया पर उन्हाँ ने अपणा मिशन नहीं छडेया। महाराज दी प्रेरणा नाल मास्टर जी ने बड़ौदा राज विच चार सौ दे करीब पाठशालावाँ स्थापित कीतियाँ जिस विच बीस हजार दे करीब वँचित बच्चेयाँ ने शिक्षा प्राप्त कीती। महाराज ने मास्टर जी नूँ सम्पूर्ण राज दी शिक्षा प्रणाली दा इंस्पेक्टर बणा दिता।


अपणे बम्बई ठहराव दे दौरान मास्टर जी नूँ वँचित महार जाति दा बीए पढ़ेया इक नौजवान मिलेया जेड़ा इक दरख्त हेठाँ, अपणे पिता दी बेवक्ती मौत वजहों परेशान बैठा सी। उस नूँ पढण लयी 25 रूपए माहवार स्कॉलरशिप गायकवाड़ महाराज वलों मिली सी जिस नाल एह नौजवान बीए करण योग होया सी। मास्टर जी उसदी क़ाबलियत देख के उस नूँ अपणे नाल लै आये। कुज समाँ बाद उस नौजवान ने मास्टर जी नूँ अपणी अगे पढण दी इच्छा दस्सी। मास्टर जी ने उस नूँ गायकवाड़ महाराज दे बम्बई ठहराव दे दौरान मिलण दा वादा कीता। उन्हाँ दिनाँ विच महाराज ने 10 होशियार वँचित विद्यार्थियाँ नूँ विदेश जा के पढण लयी स्कॉलरशिप देण दा ऐलान कीता सी। उस नौजवान नूँ वी स्कॉलरशिप प्रदान कीती गयी, जिस नाल एह नौजवान अमरीका जा के अपणी पढाई पूरी कर सके।


अमरीका तों आ के उस नूँ बड़ौदा राज दी 10 साल तक सेवा करणी जरूरी सी। अपणी पढाई पूरी के एह लगनशील नौजवान अमरीका तों भारत आ गया अते महाराजा दे हुकम मुताबिक नौकरी शुरू कर दिती। पर उच्चियाँ जातियाँ दे लोकाँ वलों दफ्तराँ विच वखरा पाणी रखणा, फाईल नूँ दूरों सुट के मेज ते रखणा, इन्हाँ गल्लाँ वजहों उस दा मन खट्टा हो गया। उस ने आत्माराम जी नूँ मिल के इस नौकरी तों मुक्त करवौण लयी केहा। आत्माराम जी दे कहण ते गायकवाड़ महाराज ने उस नूँ 10 साल दे इकरारनामें तो मुक्त कर दिता।


इस दौरान आत्माराम जी दे कारज सुण के कोल्हापुर दे राजा सया जी महाराज ने उन्हाँ नूँ कोल्हापुर बुला के उन्हाँ दा सम्मान कीता अते कोल्हापुर दा कॉलेज आर्यसमाज नूँ चलौण लयी दे दिता। इस दी वजह एह सी कि आत्माराम जी दे कोल्हापुर दे राजा नाल आत्मिक सम्बन्ध स्थापित हो गये सन। आत्माराम जी दी बेनती ते कोल्हापुर दे राजा ने उस नौजवान नूँ इंग्लैंड जान अते अगे दी पढाई करण लयी स्कॉलरशिप दिती ताकि एह नौजवान पी एच डी करण तों बाद देश वापस आ सके। उस नौजवान नूँ अज दे लोक डॉ अम्बेडकर दे नाँ तों जाणदे हन। जो बाद विच वँचित समाज दे सब तों प्रसिद्ध नेता बणे अते जिन्हाँ ने वँचिताँ लयी सँघर्ष कीता। मौजूदा वँचित आगू डॉ अम्बेडकर तों लै के पंडत रमाबाई अते ज्योतिबा फुले तक दा नाँ बहोत सत्कार नाल लैंदे हन, पर मास्टर आत्माराम अमृतसरी दा नाँ नहीं लैंदे जेड़े सवर्ण समाज विच पैदा होये अते सारी ज़िंदगी जमीनी पधर ते शिक्षा राहीं वँचिताँ नूँ उपर चुकण लयी कारज करदे रहे । सोचण वाली गल है कि जेकर मास्टर जी वलों सारेयाँ नूँ शिक्षित करण लयी यतन ना कीता जाँदा अते स्वामी दयानंद दी जनतक जागरूकता ना होंदी ताँ असाधारण व्यक्ति डॉ अम्बेडकर, होर नौजवानाँ वाँग इक आम व्यक्ति ही रह जाँदे। मास्टर जी ने जो सेवा वँचिताँ नूँ शिक्षित करण लयी इस धरती ते कीती है, उसदा दूजा उदाहरण नहीं मिलदा।
-लेखक जाने-माने शायर और आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक हैं

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