मुद्दा गरम है : एमएल शर्मा.
पहले तल्ख टिप्पणी। जांच। तीखे तेवर। सुनवाई और फिर ऐसा आदेश जो जनतंत्र के इतिहास की नई इबादत लिख गया। बेशक, चंडीगढ़ मेयर चुनाव में हुए गड़बड़झाले के बाद भारत के प्रधान न्यायाधीश ने लोकतंत्र के सार्वभौमिक मूल्यों को निश्चित रूप से संजीवनी प्रदान की है। समूचे देश ने देखा कि किस तरह चुनाव अधिकारी एक दल विशेष के पक्ष में डाले गए मत पत्रों को क्रॉस कर चुनावी पारदर्शिता की धज्जियां उड़ा रहा है। इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद हार्स ट्रेडिंग का खेल भी खेला गया पर सुप्रीम पावर के आगे कमल दल के मंसूबे कामयाब नहीं हुए।
उधर आप पार्टी प्रत्याशी कुलदीप ने सुप्रीम कोर्ट में न्याय की गुहार लगाई। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने तुरंत सुनवाई आरंभ की तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। इतना ही नहीं रिटर्निंग अधिकारी की हिमाकत देखिए, सुप्रीम कोर्ट में गलत बयानी कर बैठे। नतीजन, सर्वाेच्च न्यायालय ने निर्वाचन अधिकारी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने के आदेश देते हुए दोबारा चुनाव की मांग ठुकरा कर आप कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी को विजयी घोषित कर दिया। खास बात यह रही कि बैंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 के विशेषाधिकार के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए निर्णय दिया जिसे कोई चुनौती नहीं दी जा सकती। हालांकि, हॉर्स ट्रेडिंग के चलते आप पार्टी से जीते 3 काउंसलर भाजपा खेमे में आ गए थे जो इस आदेश के बाद सकते में है। सीजेआई डी.वाई, चंद्रचूड़ ने रिटर्निंग अधिकारी पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित कर नियम विरुद्ध कार्य करने का दोषी माना।
देखा जाए तो मौजूदा समय में राजनीति में ‘सर्वमान्यता’ सबसे दुर्लभतम शब्द बन गया है और व्यावहारिकता का कोई सरोकार नहीं रहा है। यह हालात मौलिक होते हैं जब कोई लोकतंत्र के मूल्यों को बनाए रख सके। ऐसा ही सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश माना जा सकता है जिसके बूते पीड़ित कह सकता है कि ‘आई विल सी यू इन द कोर्ट।’
आज राजनीति में सत्तालोलुपता इतनी चरम सीमा पर पहुंच गई है कि कुर्सी के लिए नित नए छद्म रचे जा रहे हैं। भाषणों में वक्तत्व कला का स्थान शाब्दिक ‘प्रपंचों’ ने ले लिया है। हालांकि, विकासशील प्रजातंत्र में नेता के वक्तव्य सार्वभौमिक आवाज के रूप में परिलक्षित होने चाहिए पर विगत एक दशक से यह परिपाटी दम तोड़ती नजर आ रही है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कही तो जमीर जिंदा है।
-लेखक पेशे से अधिवक्ता हैं