मिट्टी दी खुशबू: देह शिवा बर मोहे इहै

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राजेश चड्ढ़ा.
इतिहासिक मनुख कदे वी राजसत्ता, ज़मीन-जायदाद, दौलत या प्रसिद्धि हासिल करन लयी लड़ाईयां नहीं लड़दे। श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी इक अजेहे इतिहासिक मनुख सन, जिन्हां ने सारी उम्र अन्याय, अधर्म अते ज़ुल्म दे खिलाफ लड़ाईयां लड़ियां। गुरू जी दियां तिन पीढ़ियां ने देश अते धर्म दी राखी लयी महान कुर्बानी दिती।
दशम गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी इक महान दार्शनिक, प्रसिद्ध कवि, निडर योद्धे, युद्ध कला विच निपुण, महान लेखक अते संगीत दे माहिर सन। उन्हां दा जन्म 1666 में पटना साहिब विच होया । गुरूजी नौवें सिख गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर अते माता गुजरी दे इकलौते पुत्तर सन, जिन्हां दा बचपन दा नाम गोबिंद राय सी।
1699 ईस्वी दी बैसाखी वाले दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ दी स्थापना कीती अते पंज व्यक्तियां नूं अमृत छका के श्पंज प्यारेश् बनाये। इन्हां पंज प्यारेयां विच हर वर्ग दे लोक सन। इस तरहा उन्हां नें ज़ात-पात मिटौन दी वजहों सब नू अमृत छकाया। बाद विच आपने अमृत छकेया अते गोबिंद राय तों गोबिंद सिंह बन गये। गुरु गोबिंद सिंह ने एक खालसा वाणी ‘वाहे गुरुजी का खालसा, वाहे गुरुजी की फतेह’ दी स्थापना कीती। उन्हां ने इक आदर्श जीवन ज्यौन अते अपने आप नू काबू करन लयी खालसा दे पंज मूल सिद्धांत वी स्थापित कीते। जिस विच केस, कंघा, कड़ा, कछ, किरपाण शामिल हन। इहे सिद्धान्त चरित्र निर्माण दा मार्ग सन। उन्हां दी सोच सी के व्यक्ति चरित्र रख के ही माडे़ हालातां अते ज़ुल्म दे खिलाफ लड़ सकदा है।
गुरू गोबिन्द सिंह जी दी बहादुरी अते प्रसिद्धि कारण आस पास दे पहाड़ी राजे उन्हां नाल नफ़रत करन लगे पये, जिस कारण बिलासपुर दे राजा भीमचन्द समेत गढ़वाल, कांगड़ा दे राजे मुगलशासक औरंगज़ेब कोल गये अते गुरु गोबिंद सिंह जी नाल लड़न लयी फौजी मदद मंगी अते केहा कि बदले विच उह सालाना लगान अदा करनगे।
भीम चंद दी माता चम्पादेवी ने गुरु गोबिंद सिंह जी दे खिलाफ जंग दा विरोध करदेयां केहा के गुरु गोबिंद सिंह जी इक महान संत हन, उन्हां नाल कोई जंग नहीं होणी चाहीदी, सगों उन्हां नू घर बुला के सम्मानित करना चाहिदा है। जदों औरंगज़ेब दी फौजां दे जनरल सैयद खान ने जंग शुरू कीती अते आनंदपुर साहिब जान लग्गा तां रस्ते विच साधुरा नामक स्थान ते अपनी बहन नसरीना नाल मिलेया। उसदी बहन ने सैयद खान नू गुरू गोबिन्द सिंह जी दे खिलाफ लड़न तों रोकेया अते केहा के उह पहलां ही गुरु जी दी पैरोकार है अते गुरु गोबिंद सिंह इक धार्मिक अते आध्यात्मिक संत हन। उसने सैयद खान दी हार दी, पहलां तों ही भविखवाणी वी कर दिती। नसरीना खान ने अपने पति अते पुतरां नू गुरू गोबिन्द सिंह जी दी फौज विच भर्ती करवा दिता। जदों श्री गुरू गोबिन्द सिंह नीले घोड़े ते सवार हो के मैदान ए जंग विच मुगल सिपाहियां नू मौत कदे घाट उतार रहे सन तां सैयद खान गुरू जी दे सामने आ गया, उस वक्त गुरू जी आप घोड़े तों हेठां उतर गये अते सैयद खान नू मारन लयी तैयार नहीं होये। सैयद खान गुरू जी दी आभा अते प्रतिभा तों प्रभावित हो के जंग दा मैदान छड के योग, सिमरण अते शान्ति प्राप्त करन लयी पहाड़ां ते चला गया।


गुरु गोबिंद सिंह जी दे चार पुत्तर सन, जिन्हां दे नाम साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा फतेह सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह सन। उन्हां ने अपने चारों पुत्तर धर्म दी राखी लयी कुर्बान कर दिते। दो पुत्रां-जोरावर सिंह अते फतेह सिंह नू मुगल शासकां ने सरहिंद दी दीवार विच चुनवा दिता। दो पुत्तर अजीत सिंह अते जुझार सिंह, जंग विच शहीद हो गये। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने साहिबज़ादेयां दी शहादत वेले केहा सी-
सब पुत्रन के कारन वार दिए पुत चार।
चार मुुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार।।

गुरू गोबिन्द सिंह जी ने कदे वी स्वार्थ अते निजी हितां लयी लड़ाई नहीं लड़ी, सगों उन्हां ने जुल्म अते बेइंसाफ़ी खिलाफ लड़ाईयां लड़ियां। इस कारण हिन्दु अते मुस्लिम धर्मों दे लोक उन्हां दे पैरोकार सन। सितम्बर 1708 विच गुरू जी दक्खन विच नांदेड़ चले गए, औत्थे बैरागी लक्ष्मण दास नू अमृत छकाया अते जंगी हुनर विच निपुण करके बंदा सिंह बहादुर बनाया। इस दे नाल ही उस नू खालसा सेना दा कमाण्डर बनाके संघर्ष लयी पंजाब भेज दिता। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अक्तूबर 1708 नू महाराष्ट्र दे नांदेड़ साहिब विखे आखिरी साह लेया।
इस तरहा पहलां पिता गुरु तेग बहादुर सिंह, फेर चारों साहिबज़ादेयां अते बाद विच श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने धर्म दी रक्षा लयी अपना बलिदान दिता। स्वामी विवेकानंद जी द्वारा गुरू गोबिंद सिंह जी नू इक महान दार्शनिक, संत, आत्मबलिदानी, तपस्वी अते स्वानुशासित कहके उन्हां दी बहादुरी दी प्रशंसा कीती गयी। स्वामी विवेकानंद जी ने केहा सी के मुगल काल दौरान जदों हिन्दु अते मुस्लिम दोनां ही धर्मां दे लोकां ते अत्याचार हो रहे सन तद श्री गुरू गोबिंद जी ने अन्याय, अधर्म अते अत्याचारां दे विरुद्ध अते दबे कुचले लोकां दी भलाई लयी अपना बलिदान दिता सी, जो कि इक बहोत वड्डी गल है।
गुरू गोबिंद सिंह जी महान पुरुखां विचों महान सन। गीता कहंदी है-
‘अपना कर्म करो, नतीजेयां दी चिन्ता ना करो’।
ठीक ऐसे तरहां गुरु गोबिंद सिंह जी ने केहा-
देह शिवा बर मोहे इहै,
शुभ करमन ते कबहूं न टरूं’

इस दा भाव है के चंगे कम्मां तों कदे पीछे नहीं हटना चाहिदा, भांवे नतीजा कुज वी होवे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने कर्म, सिद्धान्त, बराबरी, निडरता अते आज़ादी दा संदेशा देके समाज नू इकजुट करन दा काम कीता। उन्हां ने कदी वी मनुखी अते नैतिक कदरां-कीमतां नाल समझौता नहीं कीता।
आज फेर लोड़ है कि असीं सारे उन्हां दरशाये मार्ग ते चलिये अते सारे धर्म, समाज अते भाईचारक सांझ नू मजबूत करके इक बेहतर भारत लयी काम करिये।
-लेखक जाने-माने शायर और आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक हैं

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