मिट्टी दी खुशबू: रब्ब इक्क गुंझलदार बुझारत

राजेश चड्ढ़ा.
नवीं पँजाबी कविता विच नवेंपन दा प्रवेश मोहन सिंह अते उन्हाँ दे कुज समकालियाँ दी सृजनात्मकता नाल शुरू होया। 10 अक्टूबर, 1905 नूँ लायल पुर पँजाब विच जन्मे मूढी कवि मोहन सिंह ने नवियाँ संवेदनावाँ नूँ ठोस रूप देण लयी अपणी कवितावाँ विच विषय अते शैली नूँ तकरीबन पूरी तरहाँ बदल दिता।
उन्हाँ ने अपणे जीवन दे शुरुआती साल, रावलपिंडी विच अपणे जद्दी पिंड धामियाल विच बिताए। कवि मोहन सिंह ने फ़ारसी विच अपणी पोस्ट ग्रैजुएशन पूरी कीती अते 1930 दे शुरू विच अमृतसर दे खालसा कॉलेज विच फ़ारसी दे प्रोफेसर बण के अपणा करियर शुरू कीता। 1939 विच मोहन सिंह एह नौकरी छड के लाहौर चले गए जित्थे उन्हाँ ने पँजाबी मासिक मैगज़ीन ‘पँज दरिया’ छापनी शुरू कर दिती अते ओत्थे इक छापाखाना वी खोल लेया। एही समय सी जद मोहन सिंह साहित्य दे क्षेत्र विच उच्चे शिखर ते पहुँचे अते अपणी मैगज़ीन नूँ तरक्की पसँद विचाराँ दा मुखपत्र बणा लेया।


लाहौर विच उन्हाँ दी मुलाकात अमृता प्रीतम नाल होयी अते दोवाँ ने रल के पँजाबी काव्य साहित्य नूँ खुशहाल बनौण दा अनथक जतन कीता। वँड दे बाद कवि मोहन सिंह अपणा एह पेशा अमृतसर अते बाद विच जालंधर लै गये।
वारिस शाह दी तरहा, कवि मोहन सिंह वी मूल रूप विच प्रेम दे कवि सन। उन्हाँ दी कविता रोमांस तों हकीकत दी तरफ, रवायती प्रेम तों औरत-मर्द सम्बंधां दे सुतँतर प्रगटावे तक हौली-हौली विकास नूँ दर्शाैंदी है। उन्हाँ ने विकसित हो रही नवीं कविता नूँ ताज़ी हवा दे के नवीं शक्ल दिती।


उन्हाँ दे पहले संग्रह ‘सावे पत्तर’ विच, उस समय दे पंजाबी पेंडू जीवन, उसदी धरती, वनस्पतियाँ अते जीव-जंतुआँ नाल प्रेम ते आधारित कवितावाँ सन। कवि मोहन सिंह इस सँग्रह दी कविता ‘पिआर पँथ’ विच आखदे हन-
चन्न पुन्न्आं तक हस हस वधे,
फेर घटे ते रोवे।
अध खिड़्या फुल कोई ना छेड़े,
खिड़े तां हर कोई खोहवे।
पूरी शै नूं डर घाटे दा, डर ना अद्धी ताईं,
रब्बा ! पिआर मेरे दी मंज़ल
पूरी कदी ना होवे।


मोहन सिंह ने सच्ची-मुच्ची इस विचार अते पँजाबियत दे इक हिस्से वजहों एह शुरुआत कीती सी। हालाँकि, कवि मोहन सिंह जल्दी ही मार्क्स अते फ्रायड दे पच्छमी असर हेठाँ आ गये। उन्हाँ दी पत्नी ‘बसँत’ दी जवानी विच ही मौत तों बाद बसँत सिरेलेख तों रची मोहन सिंह दी कविता उन्हाँ दे ऐसे एहसास नाल जुड़ी होयी है। कवि मोहन सिंह लिखदे हन-
वेख बसंत ख़ाब अन्दर मैं
दस्सी पीड़ हिजर दी।
हंझूआं दे दरिआ फुट्ट निकले
देख चिरोका दरदी।
पूंझ अत्थरू मेरे बोली-
‘जो रब्ब करदा चंगी,
मोहन ! किंज बणदा तूं शायर
जे कर मैं ना मरदी।’


कवि मोहन सिंह दी कविता विच जीवन दा सर्वव्यापी नज़रिया सी। अपणी इक लम्बी कविता ‘रब्ब’ विच मोहन सिंह आखदे हन-
रब्ब इक्क गुंझलदार बुझारत
रब्ब इक गोरख-धन्दा।
खोल्हण लगिआं पेच एस दे
काफ़र हो जाए बन्दा।
काफ़र होणो डर के जीवें
खोजों मूल ना खुंझी
लाईलग्ग मोमन दे कोलों
खोजी काफ़र चंगा।
कवि मोहन सिंह अपणी ज़िँदगी दे आखरी दिनाँ विच लुधियाना आ के वस गये। उन्हाँ ने इक कवि अते पँजाबी मासिक ‘पंज दरिया’ दे सँपादक वजहों पंजाबी भाषा लयी बेहतरीन काम कीता। कवि मोहन सिंह इक अजेही जगहा दी तलाश विच सन जित्थे अपणी इस ज़िंदगी विच कुज आराम पा सकन।


जदों डॉ. मोहिंदर सिंह रंधावा पंजाब खेतीबाड़ी युनिवर्सिटी दे वाईस चाँसलर सन, ताँ मोहन सिंह ओत्थे प्रोफेसर ‘एमेरिटस’ दी मानद उपाधि वजहों शामिल हो गये। उन्हाँ ने शहर दे साहित्यिक माहौल विच शानदार तब्दीली लेयाँदी। बहुत सारे लेखकाँ, कलाकाराँ, बुद्धिजीवियाँ अते विद्यार्थियाँ नूँ उन्हाँ दे ज्ञान दा फ़ायदा मिलेया। प्रोफेसर मोहन सिंह दा पँजाब नूँ साहित्यिक रँग देण विच इक खास मर्तबा है। प्रोफेसर मोहन सिंह इक तरक्की पसँद कवि सन अते आम आदमी दे भले लयी दुनिया बदलना चौंहदे सन।


प्रोफेसर मोहन सिंह दे शुरुआती सालाँ विच नवीं पँजाबी कविता दी तरक्की विच खास मददगार दूजे कवियाँ विच अमृता प्रीतम, हरभजन सिंह अते शिव कुमार बटालवी शामिल सन। प्रोफेसर मोहन सिंह दियाँ शुरूआती कवितावाँ रूमानी अते गीताँ दी शक्ल विच सन, पर बाद विच कवि मोहन सिंह तरक्की पसँद लहर दा हिस्सा बण गये। उन्हाँ ने दबे-कुचले मजदूर तबके दे दुखाँ नूँ गाया अते उन्हाँ नूँ इँकलाब वल मोड़ेया।
साढी़ मिट्टी दी खुशबू प्रोफेसर मोहन सिंह दी कवितावाँ विच महसूस कीती जा सकदी है। 3 मई 1978 नूँ इस दुनिया तों चले जाण वाले प्रोफेसर मोहन सिंह दी गिनती 20वीं सदी दे महान पँजाबी कवियाँ विच कीती जाँदी है।
-लेखक आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक और जाने-माने शायर हैं

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