शंकर सोनी.
आजकल अधिकांश बुद्धिजीवी राजनितिक दलों द्वारा चुनावी बॉन्ड से लिए गए चंदो पर चिंतित है। सवाल यह है चुनावी बॉन्ड से लिए गए चंदो से राजनीतिक पार्टियों पर कौनसा पहाड़ टूटेगा ? इस लेख में हम चर्चा करेंगे इन चंदों से पार्टियों का क्या बिगड़ेगा या क्या बिगड़ सकता है ?
अगर हम बात करें नैतिकता या ईमानदारी की तो, सभी पार्टियों का नैतिकता या ईमानदारी से दूर का भी संबंध नहीं है। नैतिकता के आधार पर पार्टियों का कुछ भी नहीं होने वाला। सभी पार्टियां कम या ज्यादा चंदा लेती रही है।
अब बात करें कानून में इन के खिलाफ किया जा सकता है। संविधान या अन्य किसी भी कानून के अंतर्गत चंदा लेने के कारण उस पार्टी की मान्यता या पंजीकरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बताते चलें कि राजनीतिक पार्टियों का हमारे संविधान में कहीं भी उल्लेख नहीं है। राजनितिक पार्टी से संविधान परिचित ही नहीं है।
राजनीतिक पार्टियों का पंजीकरण जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत निर्वाचन आयोग में किया जाता है। एक बार राजनीतिक पार्टी का पंजीकरण होने के बाद उसका पंजीकरण निर्वाचन आयोग द्वारा रद्द किया जा सकता है यदि पार्टी के विधान के अनुसार इसकी इकाईयों का गठन नहीं हुआ हो या पार्टी अस्तित्व में नहीं रही हो।
चंदों के लिए क्या हो सकता है ? अब इसे समझिए कि जन प्रतनिधित्व अधिनियम की धारा 29 (बी) के अंतर्गत राजनीतिक दल अंशदान स्वीकार करने के हकदार हैं। इस अधिनियम की धारा 29(सी) के अनुसार राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त चंदे की घोषणा चुनाव आयोग को करनी पड़ती है। राजनीतिक दल के कोषाध्यक्ष या राजनीतिक दल द्वारा इस संबंध में अधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष में, उस वित्तीय वर्ष में किसी भी व्यक्ति से ऐसे राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त बीस हजार रुपये से अधिक का योगदान और उस वित्तीय वर्ष में सरकारी कंपनियों के अलावा अन्य कंपनियों से प्राप्त बीस हजार रुपये से अधिक के समस्त योगदान का उल्लेख एक विहित प्रारूप में करना होता है।
ऐसी घोषणा की रिटर्न प्रस्तुत करने की नियत तारीख से पहले प्रस्तुत की जानी जरूरी है। अन्यथा आयकर की छूट प्राप्त नहीं हो सकती। राजनीतिक दल पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी आयकर अधिनियम के अंतर्गत आयकर की बन सकती है।
आपको यह भी बता दंे कि आयकर अधिनियम धारा 13 (ए) के अनुसार चंदे में प्राप्त राशि पर राजनीतिक दलों को आयकर कर नहीं देना पड़ता बशर्ते
राजनीतिक दल द्वारा अपनी आय लेखजोखा ऑडिट करवाकर पेश किया गया हो।
आयकर की यह छूट तभी मिलेगी जब पार्टी का कोई अधिकृत व्यक्ति या कोषाध्यक्ष चंदे का समस्त हिसाब चुनाव आयोग के सामने घोषित करे। सनद रहे, यह घोषणा आयकर रिटर्न पेश करने की अंतिम तिथि से पहले की गई हो।
यदि किसी राजनीतिक दल की आय आयकर अधिनियम की धारा 13 (ए) में विहित छूट की सीमा से ज्यादा होती है तो राजनीतिक दलों को भी आयकर रिटर्न फाइल करना अनिवार्य हो जाता है। यह बात आपसे छिपी नहीं है कि चुनावी बॉन्ड के संबंध में सर्वाेच्च न्यायालय का निर्णय आते ही कांग्रेस के बैंक खातों से आयकर वसूली कर ली गई है। निष्कर्ष में चुनावी बांड से प्राप्त चंदों के लिए पार्टियों के विरुद्ध आयकर अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई की जा सकती है।
अब बात करें चंदा देने वाले या बॉन्ड खरीदने वालों के विरुद्ध क्या कार्यवाही की जा सकती है ? यह खुला राज है कि राजनीतिक चंदा सेल कंपनियों की मार्फत लिया जाता है और ऐसी कंपनियों के मालिक पर्दे के पीछे होते हैं। ऐसे लोगों का पता लगाकर उनके खिलाफ भी ज्यादा से ज्यादा आयकर अधिनियम के अंतर्गत ही कार्रवाई की जा सकती है इससे अधिक नहीं।
-लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता व नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष हैं