पत्रकार अदरीस खान ने भ्रष्टाचार पर किया ऐसा व्यंग्य कि हर कोई कह उठा वाह-वाह….

ग्राम सेतु साहित्य डेस्क.
कागद फाउंडेशन व अखिल भारतीय साहित्य परिषद हनुमानगढ़ के तत्वावधान में जिला मुख्यालय स्थित दुर्गा मंदिर धर्मशाला परिसर स्थित कागद पुस्तकालय में ओम पुरोहित कागद स्मृति काव्य गोष्ठी हुई। इसमें कागद की कविताओं का पाठ किया गया। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया। गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. महेश व्यास ने की। मुख्य वक्ता दीनदयाल शर्मा व मरुधरा साहित्य परिषद के सचिव नरेश मेहन ने कागद से जुड़े संस्मरण सुनाए। मुख्य अतिथि डॉ. धर्मपाल शर्मा ने काव्य गोष्ठियों के नियमित आयोजन पर जोर दिया।
इसके बाद गुरदीप सिंह सोहल ने ‘माफ करना मैं घर में नहीं हूं’ कविता के जरिए गोष्ठी का आगाज किया। वीरेन्द्र छापोला ‘वीर’ ने ‘कई दिनों से परिन्दा मेरी छत पर आता है’, कविता के जरिए प्रकृति प्रेम को बयां किया। चैनसिंह शेखावत ने ‘जंदगी के संघर्ष, गम और खुशी के भेद को रोचक ढंग से अपनी कविता ‘इतना खुश कैसे हो सकते हो तुम’ और ‘उम्र एक बोझ है’, के माध्यम से पेश किया। रजनी शर्मा ने ‘आगे बढ़ते जाना है’ कविता से जीवन को सकारात्मक ढंग से जीने का संदेश दिया। पवन बजाज ने ‘खुद को भुलाया मैंने’ कविता पढ़ी। वरिष्ठ पत्रकार व संजीदा शायर अदरीस खान ‘रसहीन’ ने ‘बेईमानों से तंग आके डूब के मर गया है, नदी ठहरी रही और पुल गुजर गया है’ के जरिए भ्रष्टाचार पर करारा व्यंग्य किया तो हर कोई खुद को ‘वाह-वाह’ कहने से रोक नहीं पाया।
शायर डॉ. प्रेम भटनेरी ने ‘हाथ से रेत सी फिसलती है, जिंदगी जब जरा सी मिलती है’ गजल पढकऱ वाहवाही बटोरी। सुरेन्द्र शर्मा ‘सत्यम’ ने ‘हे न्याय, तुम कहां हो’ कविता सुनाकर दाद पाई। डॉ. राजवीर सिंह ने ‘टूट तो कब का चुका हूं, बिखरना अभी बाकी है’ गजल पढ़ी। बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा ने ‘सुपणो’ शीर्षक कविता पढ़ी। साथ ही बाल कविताएं सुनाकर गुदगुदाया। नंदलाल गुप्ता ने भी काव्य पाठ किया।

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