आज भी बोलता है, हनुमानगढ़ का 5000 साल पुराना विज्ञान!

आरके सुतार.
हनुमानगढ़ की धरती सिर्फ सभ्यताओं का साक्षी नहीं, बल्कि प्राचीन विज्ञान की जीवित प्रयोगशाला भी रही है। आज जब आधुनिक विज्ञान भारतीय वास्तुशास्त्र की वैज्ञानिकता को सिर झुकाकर स्वीकार कर रहा है, तब यह जानना और भी दिलचस्प हो जाता है कि यही सिद्धांत हनुमानगढ़ क्षेत्र में 5000 वर्ष पूर्व ही जीवन का हिस्सा बन चुके थे। हड़प्पाकालीन कालीबंगा की बसावट, उसकी दिशा, जल निकासी, पूजा स्थलों की स्थिति, यहां तक कि श्मशान भूमि की दिशा कुछ इस बात के प्रमाण हैं कि उस युग के नगर नियोजन में वास्तुशास्त्र का गहरा प्रभाव था। यह आलेख न केवल सिंधु घाटी की एक अत्यंत समृद्ध शाखा, कालीबंगा में वास्तु सिद्धांतों के अनुपालन की रोचक पड़ताल करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जैसे-जैसे इस ज्ञान परंपरा की उपेक्षा हुई, भटनेर जैसे वैभवशाली दुर्ग भी अपने वैभव से वंचित होते चले गए। आज हनुमानगढ़ के वर्तमान शहर का भूगोल, उसका सामाजिक-आर्थिक वितरण और विकास की दिशा भी इस प्राचीन विज्ञान की अनुपस्थिति या अनुपालन की कथा कहता है। हनुमानगढ़ की इस वास्तु-यात्रा को समझना केवल अतीत को जानना नहीं, बल्कि भविष्य के लिए दिशा चुनना भी है।
इससे अधिक सुखद आश्चर्य क्या होगा कि आधुनिक विज्ञान जिस भारतीय वास्तुशास्त्र की वैज्ञानिकता के आगे नतमस्तक हो गया है, उसी वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों का पालन हनुमानगढ़ क्षेत्र में करीब 5000 वर्ष पहले ही हो चुका था। वर्तमान में हनुमानगढ़ के लोगों के लिए वास्तुशास्त्र चाहे नया-नया या प्रतीत होने वाला हो पर हड़प्पाकालीन कालीबंगा में वास्तुशास्त्र के नियमों का यथासंभव पालन किये जाने के प्रमाण मिले हैं।


कालीबंगा में पूजा अनुष्ठान के लिए निर्धारित स्थान, ईषान दिशा यानी उत्तर पूर्व में था। वास्तुशास्त्र के मुताबिक, ईशान दिशा में पूजा करने को सर्वाेत्तम माना जाता है। वास्तु शास्त्र में नैऋत्य दिशा (दक्षिण-पश्चिम) को यम की दिशा माना जाता है तथा श्मशान इसी दिशा में बनाने के लिए कहा गया है। कालीबंगा में भी श्मशान उत्खनन स्थल से 300 मीटर नैऋत्य दिशा में पाया गया है। इतना ही नहीं मृतकों के सिर भी सनातन परंपरा के अनुसार (जो कि वास्तुपरक है) उत्तर दिशा की ओर रखने के प्रमाण मिले हैं। शासक वर्ग के निवास से पूर्व दिशा की ओर जन सामान्य की बसावट वास्तुविज्ञान के प्रमुख सिद्धांतों का अक्षरशः पालन करती है। इस प्रकार से सरस्वती यानी आज की घग्घर नदी के दक्षिणी तट पर कालीबंगा का स्थित होना भी महज संयोग नहीं है। ग्रीड आयन पैटर्न पर कटी हुई सड़कें तथा सड़कों और नालियों का उत्तर और पूर्व की ओर से ढलान कालीबंगा की ऐसी वास्तुगत विषेषताएं थीं जिन्होंने कालीबंगा को इतिहास में अमर कर दिया।


अगर शासक वर्ग और प्रजा के निवास स्थलों की किलेबंदियां समांतर चर्तुभुज के बजाय पूर्ण आयताकार होती व इन दोनों किलेबंदियों के नदी की ओर वाले द्वार उत्तरी वायव्य के स्थान पर उत्तरी ईशान भाग में बनाए गए होते और साथ ही साथ शासक वर्ग वाला टीला यदि प्रजा के निवास वाले टीले से उंचा होता तो आज हमें कालीबंगा के अवशेष नहीं देखने पड़ते बल्कि कालीबंगा आज भी बनारस की तरह आदिकाल से जीवंत शहरों की श्रेणी में होता।
कालीबंगा के अवसान के साथ ही कालांतर में इस क्षेत्र में वास्तुशास्त्र की समझ भी लुप्त हो गई। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण भटनेर का किला है। घग्घर के किनारे 1700 साल पूर्व राजा भूपत द्वारा बनवाए भटनेर की किले की चारदिवारी का उत्तरी और पूर्व इशान घटा हुआ है। जबकि वायव्य अग्रेत है। और किले के अंदर भी नैऋत्य, पश्चिम और दक्षिण भाग विपरीत दिषाओं से नीचे और अधिक खुले हैं। इन वास्तुदोषों के कारण ही भटनेर का शासक वर्ग अस्थिरता और निरंतर संघर्षों से जूझता ही रह गया। तथा आज उनका नामलेवा भी अवशेष नहीं है। भटनेर किले को संयोगवश मिली एकमात्र वास्तु विशेषता उसकी उत्तर की ओर घग्घर नदी का स्थित होना है। परंतु जैसे-जैसे घग्घर किले से धीरे धीरे दूर खिसकती गई और सूखती गई, भटनेर किला भी खंडहर में तब्दील होता चला गया।


हनुमानगढ़ टाउन में पुराना नगर कोई जमाने में किसी भटनेर किले के नैऋत्य यानी दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर से हुआ करता था। तथा वास्तुााशास्त्र के नियमानुरूप होने के कारण पॉश एरिया था। टाउन के विस्तार के साथ ही आज वही पुराना नगर टाउन के वायव्य दिशा में स्थानांतरित हो गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, श्रमिक वर्ग के लिए वायव्य और आग्नेय दिशाएं अनुकूल होती हैं। परिणामस्वरूप कभी पॉश इलाका रहा पुराना नगर आज निम्न व मध्यम वर्ग श्रमिक कॉलोनी बनकर रह गया है। हनुमानगढ़ टाउन जंक्शन से न केवल प्राचीन है, बल्कि तुलनात्मक रूप से अधिक वास्तुनुरूप है।
-लेखक देश के सुविख्यात वास्तुविद् हैं, इन्होंने भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के पाठकों के लिए खासतौर पर यह आलेख लिखा है

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