मरयै अर मुकरयै रो इलाज कोनी!

रूंख भायला.
राजी राखै रामजी ! देस होवै भाऊं समाज, घरबिध होवै चायै राजनीति, आं दिनां बात कैय’र मुकरणै री बेमारी खासा बधी है। म्हूं तो ओ कैयो ई कोनी ! म्हारै कैवण रो बो मतलब नीं हो ! म्हारी बात सावळ नीं अरथाइजी ! म्हारै कैवणै रा गळत माइना काडीज्या ! आद बातां आपां आये दिन सुणां। पण मरयै अर मुकरयै रो कोई इलाज कोनी।

हेत री हथाई में आज आपां बात करस्यां बां लोगां री, जिका बात-बात पर पाणी चकण री बात करै, आखड़ी लेवै, सोगनां खावै। आपरो काम काढण सारू कित्ता कित्ता कौल करै। बां री बात सुणां तो लागै साखात राजा हरीसचंद ई आ ढुक्या है। बातां सुणो दिखाण-
‘बात में फरक आ जावै तो मन्नै कै देई !’’
‘‘के बात करै ! म्है कैय’र मुकरूं कोनी !’’
‘‘थारी सोगन, कठैई हंकरा लेया !’’
‘‘मा कसम, काल ई पाछा दे देस्यूं !’’
‘‘म्हारी बात लो’ह री लकीर….’’
‘‘बाई फादर, म्हैं इयां कैयो ई कोनी !’’

कोई के कर ल्यै ! आज रा मिनख घड़ी-घड़ी आपरी बात सूं फुरबो करै, जद कै आपणै देस में तो ‘तिरिया तेल हमीर हठ चढै नै दूजी बार’ री पिछाण ही कदेई। फगत बात राखण सारू हमीर आपरो राज गमा दियो। आदमी ई क्यूं, इण धरा री लुगायां किसी लारै रैयी, बात सटै हंसते हंसते सीस सूंपण आळी हाडी राणी चेतै करो दिखाण ! आ ई रीत तो जुगां सूं आपणी पिछाण है। सतजुग में तो पग पग छेड़ै कौल निभावणियां रा चरित लाधै, जिकां आपो आपरो सो कीं गमाय’र बात री पत राखी। त्रेताजुग में आ रीत और सवाई होई। जणाई रघुवंस्यां सारू तुळसीदास लिख्यो-
रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाये पर वचन न जाहीं’

द्वापर में तो देवव्रत रा कौल ई उण नै भीस्म बणा दियो। बां कौलां रै कारण ई उण नै कबाणां री सेजां सोवणो पड़्यो। सोचो दिखाण ! देवव्रत रै कांई अड़ी पड़ी ही जिको बाप सांतनु नै बचन दे बैठ्यो, अर जे दे ई दियो तो बान्नै मुकरणै सूं कुण रोकै हो ! पण बात तो बात ही, दे दी सो दे दी। कौल री बात सूं चेतै आवै, अेक चावी कविता मेघनाद, जिण में गिरधारीसिंग पड़िहार भोत सांतरी बात लिखी है, जठै समरभौम में मेघनाद लिछमण सूं कैवै –
’‘अे माथा नीचौ झुकै नहीं कटसी तो उपर कट जासी
पण म्हां जीते रघुवंस्यां नै सीता रा तो सुपनां आसी’’

पण आजकलै माणस री बात में तत रैयो ई कोनी। कैवै कीं अर करै कीं ! बतावै कठैई, लाधै कठैई ! कूड़ रा धंधा करतो मानवी कौल री बात तो बिसारै ई कोनी। थाणा, कचेड़्यां में तो धंधा ई कूड़ रा चलै। ब्यौपार में ई अबार कूड़ घणो बध्यो है। ऑनलाइन खरीददारी में बेजां ठगी हो रैयी है। रीलां अर विज्ञापनां में दिखावै कीं अर देवै कीं…। गारंटी अर वारंटी रै चक्करां में इस्या घालै कै माथो फोड़बो करो, पण बां री अेक ई रट- ’आपके समझने में भूल हो गई साहब, हमारा वो मतलब नहीं था।’
रूंख भायलै रै अेक गीत में बात आवै-
’‘बात-बात पर फुरता माथा, सिर पर पागां सजै कियां
काच सरीखो आंख में पाणी, नैण निसाणां सधै कियां’’
बात सूं फुरणियां नै कुण धारै ! नेतियां री तो बात करां तो लखावै, कैय’र मुकरणै में बां री पी.एचडी करेड़ी होवै। कुड़तियां दांई पारट्यां बदळता अे धौळपोसिया आपरी बात सूं नटता देर ई कोनी लगावै। काल तंई जिका कुतियै बिलड़ी दांई अेक दूजै नै खावूं बाढूं रैवता, भेळै रळता ई बयान देवण लागै-’मेरे कहने का वो मतलब नहीं था ! थारा मतलब म्हां सूं छान्ना थोड़ी है, पण म्हे ई पड़ां किस्यै दरड़ में…। धूमिल थारै डोळबायरां सारू ई तो कैयो है –
‘‘जिसको भी पूंछ उठाकर देखा, मादा पाया !’’
सो बातां री अेक बात। मिनख नै आपरी बात सूं नीं मुकरणो चाइजै भलंई कीं होवै। मोबाइल जुग में बात अखरावण सारू लोगड़ा रिकार्डिंग ई कर रैया है, ऑडियो सूं लेय’र विडियो तंई, पण उण रै पछै ई मुकरणिया मुकर रैया है। बेटी रा बापो, कूड़ रा पग कद होवै, कोई बात कैयी है, का होई है तो हंकारो भरो ! जे सोनो है तो काट कदेई को लागै नीं। पण ग्यास बाढ्यां सूं कूड़ तो साच होवण सूं रैयो, आपरो कद क्यूं घटावो !! कुणी कैयो है-‘मोटो आदमी बणनो चोखी बात है, पण चोखो आदमी बणनो मोटी बात होवै !’ चोखो बणनै सारू आपरी बात तो राखणी ई पड़सी।
हथाई में बातां जद गेड़ चढै ठमै ई कोनी, पण बगत रो कैवणो है, बगत रैवता चेतो ! आज री हथाई रो सार ओ है, का तो कौल करणो नंई, का पछै उण नै जी जान सूं निभावणो। आ ई भावना मिनख नै मिनख बणावै। रूंख भायलै री सीख आ है-
‘‘मुकरणिया तो मुकरसी, कर कर कूड़ा कौल
थारी पत है थारै हाथां, जचौ जियां ई बोल’’
बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बस्सो….।
-लेखक राजस्थानी और हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार हैं

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