बात करो बात, पाणी री भांत…!

रूंख भायला.
राजी राखै रामजी ! कह रे चकवा बात, रात कटै ज्यूं !! ‘हेत री हथाई’ में आपां बात ई तो करां। अठै री बात, बठै री बात, कीं घरबीती, कीं परबीती, देस-दुनिया री, थारी-म्हारी, आं री-बां री, क्यां री-क्यां री…। बातां री हथाईगारां कन्नै कमी कठै ! ताऊ शेखावाटी रै अेक सोरठै सूं बात नै आगै बधावां-
मायड़ माटी गंध, मिलणी चाये मिनख में
मटको कणां सुगंध, बिसरावै निज ‘बावळा’

ताऊ भोत गैरी बात नै बडी सोरपाई सूं मांड’र कैयदी, बात में तत है। लोक में आपां सदांई सुणां, बातां सूं पेट नीं भरीजै ! पण साची बूझो, जेकर बात सिरखी बात होवै तो बा आपां नै पेट भरण रो मारग बता सकै…। बात में कीं सार होवणो चाइजै, नीं पछै बा तो ग्यास है, बाढो धपाऊ री। बात भोत अणमोल है, जे कोई कन्नै होवै ई तो। आपणै तो कैबत ई है, ‘बात रा टक्का लागै’। राजा-महाराजा, सेठ-साहूकार अर पारखी लोग बात सुणनै सारू पइसा खरचणै में संको नीं करता। फगत अेक बात लारै कोट-कंगूरा सूं लेय’र समची रियासतां तंई सूंपीजणै री बातां आपणै लोक में लाधै। राज दरबारां में तो बातपोस लोग आपरी स्याणप अर बात सूं फांसी चढतोड़ै नै छुडाय लेवता, जणां ई बां री खासा कदर होया करती। तेनालीराम, आफंदी, बीरबल जेड़ा लोग बातां रै पाण ई अमर होग्या। बात री महिमा रै पेटै चावा-ठावा कवि ओम पुरोहित ‘कागद’ री अेक कविता चेतै आवै-
‘बात करो बात
पाणी री भांत
ज्यूं पाणी चालतो रैवै
बात चालती रैवै
ज्यूं पाणी थम्या कादो बणै
बात थम्या मिनख दूजां रो प्यादो बणै
इण सारू बात करो बात
पाणी री भांत…!’

पण आज घड़ी चौफेर तकावां तो लागै, बातां निवड़गी है। लोगां कन्नै बात है ई कोनी। होवै कियां, आखै दिन हाऊजफ्फो करणो, अठै सूं बठै, बठै सूं बिन्नै, इयां करां तो पइसो आवै, इयां करां तो पइसो जावै, टांग अठै नीं तो बठै जरूर अड़ावणी…जियाजूण में घरळ-मरळ तो घणी बधगी पण बातां गमगी। कोढ में खाज इसी होई कै आदमी सणै हथाळी आपरा आंख, नाक, कान मोबाइल रै अडाणै और मेल्ह दिया। अबै किन्नै ई बकार’र देखलो, रामरमी रै पछै इत्ती बात बची है-
‘‘-के हाल है…. ?
-ठीक है ! थे सुणावो ?
-ठीक है !
-और बताओ ?
-थे सुणावो, कियां चलै ?
-बस, चलै…!
-हीं…हीं….हें…हें….’

बस, आ लियो छेड़ो। साची बात तो आ, न तो हाल ठीक है ना ई कीं चलै। आगै बोलां के, ओ ठाह ई कोनी। धिंगाणो करां तो कीं ताळ राजनीति पर जा लागां, नीं पछै मोबाइल हाथ में झाल लेवां, फुर-फुर सागी मैसेज बांचलां का पछै उटपटांग रीलां..। इण सूं आगै कीं नीं, ठरको ओ न्यारो कै म्हे भण्या-गुण्या हां ! आछो माड़ो सो कीं जाणां !!

इस्यै भण्यै-गुण्यां सूं तो गांम रा ठोठ चोखा, जिका बात सार तो जाणै है। बस गाडी में जावती बेळा अे बातपोस मिनख सारै बैठ्यै अणजाण नै ई नै बतळा लेवै। बतळा के लेवै, बातां-बातां में बै आदमी अेक-दूजै रै गांम रा अेनाण, फसल-बाड़ी, धीणो-धापो, बिरखा, काळ, जमानो, रिस्ता सूं सगपण तंई जा पूगै। घंटै-दो घंटै री जातरा रै बतरस में तिरता-डूबता अे भोळा स्याणा बोलाक अणजाण आदमी सूं इसी सैंध काड लेवै कै बूझो ना ! पण जे स्याणै-सोतां री बात करां तो रेल-बस में सारै बैठ्यै नै बतलाणो तो दूर, उण सूं निजर ई नीं मिलावै। आपरी करड़ावण में इस्या करड़ा हो’र बैठै जाणै आं सूं स्याणो तो धरती पर जलमियों ई कोनी ! कानां में डूजा सा दियां मोबाइल पर अंगूठो अर आंगळी चलाबो करै, पण के मजाल सारै बैठी सवारी सूं कोई बात ई कर लेवै। सवारी किसी घाट है फेर, है तो सागी चलण री ! मिनखपणै रा पोत चौड़ै आयोड़ा है, दोनां कन्नै बात कोनी !

बात लाधसी थान्नै बूढियां कन्नै। नानै-नानी कन्नै, दादै-दादी कन्नै, काकै-बाबां कन्नै, थे बां कन्नै दो घड़ी बैठो तो सरी। झिंतरियै री बात, स्याळियै री बात, न्यौळियै राजा री बात, दो ठगां री बात, राजा राणी री बात, राधा किरसण री बात और ई कांई ठाह कित्ती-कित्ती। राजस्थानी रा चावा-ठावा सिरजक विजयदान देथा ‘बातां री फुलवारी’ में लोक कथावां अर बातां रो गजब संकलन कर मेल्यो है, मोकौ पड़ै तो बांचो दिखाण ! बाळपणै में नानाणै जावता, जणा नानी सा भोत सी बातां सुणाया करता। अेक बात आप ई बांचो दिखाण-
‘इत्ती बात
इत्ती चींत
पाछलै घर री पछींत
पछींत बांध्या घोड़ा
घोड़ा किन्ही लीद
लीद लेयग्या कुम्हार
कुम्हार घड़िया माटा
आवती जावती गायां फोड़ै
गुवालियो गायां सामों क्यूं नीं रे
मा रोटी नीं दे ज्यूं
मा रोटी क्यूं नीं दे अे
पोवूं कियां, चूल्है मेह बरसै
मेह क्यूं बरसो रे
मोरिया नाचौ ज्यूं
मोरियो क्यूं नाचो रे
बिजळी चमकै ज्यूं
बिजळ्यां क्यूं चमको अे
कै थारी बातां रा टमरका सुणां ज्यूं…!’

बातां रा टमरका सुणां तो उग्यै बिसूंज्यै रो ठाह ई नीं लागै, जाणै सुण ई बोकरां।बातपोस मिनख इण धरती री हेमाणी है, बां री कदर होवणी ई चाइजै। जे चार कोस अळघा जाय’र ई बां री बात सुणनै रो मौको मिलै तो जावणो चाइजै।

आज री हथाई रो सार ओ है, बात करणी चाइजै। जे नीं आवै तो स्याणां री बात सुणनी का भणनी चाइजै। लाख टकां री बात आ है, ‘बात सूं ई बात बणै !’ तो घर, गळी अर गवाड़ में बात सरू करो…। बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बसो….।
-लेखक राजस्थानी और हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं

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