डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रुंख’
(लोक री आर्ट ऑफ लिविंग)
रूंख भायला चौक. चौक माथै पाटो. पाटै पर हथाई. चाणचकै ई छड़छड़ीली सी चैटिंग आ ढुकी. इण बतरस रो आनंद पाठकां सारू-
चैटिंग: ‘कियां हो ?’
हथाई: ‘कियां होवणो हो’
चैटिंग: ‘म्हूं तो बूझ्यो ई है।’
हथाई: ‘तो म्हूं ई उथळो दियो है‘
चैटिंगः ‘कदे तो सावळ बोल्या करो !’
हथाई: ‘थूं ई कदे सावळ बूझ्या कर’
चैटिंग: ‘हालचाल बूझणो कांई कावळ है के ?’
हथाई: ‘सो क्यूं जाणता थकां बूझणै में कांई स्याणप’
चैटिंग: ‘चलो छोड़ो, लीव इट, कांई चल्लै ?’
हथाई: ‘गोडा नै छोड सो कीं चल्लैै’
चैटिंग: ‘ऊं हूं……..म्हारो मतलब है, अबार आप कांई कर रैया हो ?’
हथाई: ‘ग्यास बाढां’
चैटिंग: ‘म्है ग्वार तो सुण्यो है, आ ‘ग्यास’ कांई होवै?’
हथाई: ‘इत्ती ताळ सूं थूं जिकी म्हां साथै बाढै’
चैटिंग: ‘पण बाढण सारू तो चक्कू का तलवार चाइजै, बै कठै ?’
हथाई: ‘मूंडै में लपलपावै’
चैटिंग: ‘नां ओ, लाई जीभ रो कांई दोस ?’
हथाई: ‘जीभड़ल्यां इमरत बसै, जीभड़ल्यां विस होय,
कागा किण रो धन हरै, कोयल किण नै देय’
चैटिंग: ‘आ जबरी ठरकाई है थे !’
हथाई: ‘ठरकाइजै तो मांचौ री ईस का पछै पागो, बात तो सरकाइजै है’
चैटिंग: ‘कीं दो-चार और सरकाओ नीं’
हथाई: ‘रैवण दे, सरकायां थारै चौसरा चाल जासी’
चैटिंग: ‘ओ हो, म्हूं बियां सरकावण री बात नीं करी।’
हथाई: ‘पण म्हूं तो बियां ई करी’
चैटिंग: ‘थे रिसाणा बेगा हो जावो’
हथाई: ‘थूं घोचो करै ई क्यूं’
चैटिंग: ‘म्हूं तो बात कर रैयी हूं’
हथाई: ‘बात स्यार थूं जाणै ई कोनी’
चैटिंग: ‘बात पछै और किसी’क होवै ?’
हथाई: ‘बात में तत होवणो चाइजै, सार होवणो चाइजै’
चैटिंग: ‘बो कियां आवै ?’
हथाई: ‘पटीड़ खायां’
चैटिंग: ‘थे सदांई कूटीजणै कुटाणै री बात क्यूं करो ?’
हथाई: ‘मिनख अर अदरक में कुटीज्यां ई तंत बापरै’
चैटिंग: ‘तो पछै कूट खाणी सरू करां’
हथाई: ‘करो, कुण पालै है !’
चैटिंग: ‘म्हारी बातां में तत तो आ जिसी के ?’
हथाई: ‘थारो तो आयोड़ो ई पड़्यो है’
चैटिंग: ‘बो कियां ?’
हथाई: ‘थूं फगत कूड़ अर धूड़ रो ब्योपार करै’
चैटिंग: ‘कांई मतलब ? म्हूं कूड़ बोलूं ?’
हथाई: ‘थारै हियै नै बूझ….थूं बोलै कठैई लाधै कठैई, कैवै कीं, करै कीं’
चैटिंग: ‘इयां थोड़ो घणो तो करणो ई पड़ै’
हथाई: ‘कोई अड़ी है के’
चौटिंग: ‘समचो सांच बोल्यां लोग रिसाणा हो जावै’
हथाई: ‘पछै थारो नांव ‘लपोसियो’ राख लै’
चैटिंग: ‘हं…हं…आ म्हानै गाळ है’
हथाई: ‘अं….है….थारी दाळ में बाळ है’
चैटिंग: ‘थे सावळ बताओ, बात में वजन कियां ल्यावां’
हथाई: ‘बात गोडां को घड़ीजै नीं, मोढां ढोवणी पड़ै’
चैटिंग: ‘ढो लेस्यां, कदास पार पड़ै ई तो….!’
हथाई: ‘पैली कूड़ छोड़नो पड़सी’
चैटिंग: ‘बो कोनी छूटै’
हथाई: ‘पछै अड़ी कांई है, बगाओ जित्ती बगाइजै’
चैटिंग: ‘लोगां लपेटणी बंद करदी’
हथाई: ‘लटाई भरीजगी व्हैला, दूजा सोधो, कमी कठै’
चैटिंग: ‘सोधण ई तो आयी….’
हथाई: ‘झोटै आळै घरै लस्सी कोनी लाधै लाडी’
चैटिंग: ‘हीं…हीं…माड़ी होयी आ तो….’
हथाई: ‘हथाई सामीं तो पोत उघड़्यां ई सरै’।
-रूंख भायला