जब पीलीबंगा से आगे सिर्फ एक बार गई थी घग्घर!

शंकर सोनी.
प्राचीन सरस्वती नदी मूल रूप से हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों से शिमला के पास से निकलती है। इसी सरस्वती को हम अब घघर या हकरा नदी के नाम से भी जानते हैं। इसका बहाव क्षेत्र पंजाब, हरियाणा व राजस्थान से होते हुए पाकिस्तान तक है। पिछले 100 वर्षों में घग्घर भटनेर यानी हनुमानगढ़ तक अपने पुराने बहाव क्षेत्र को संभालने आती-जाती रही पर वर्ष 1955 से पहले यह पीलीबंगा से आगे केवल एक बार गई थी।
सन 1955 के बाद घग्गर में पानी की मात्रा में वृद्धि हुई। साल 1958 के मानसून के समय घग्गर का पानी हनुमानगढ़ से 19 मील आगे तक चला गया। घग्गर का पानी 1959 में हनुमानगढ़ से 41 मील तक, 1960 में 63 मील दूर तथा 1961 में 36 मील नीचे उतर की ओर गया था। साल 1962 में घग्गर का पानी हनुमानगढ़ से 94 मील दूर पाकिस्तान की सीमा तक गया और वर्ष 1964 में पाकिस्तान तक पसर गया था पानी।


घग्घर में 1988 में मानसून के समय जुलाई, अगस्त और अक्टूबर महीने में तीन बार बाढ़ की स्थिति बनी। घग्गर के इस तीसरे दौर ने सरकार के आपदा रोधी उपायों को अपर्याप्त साबित कर दिया। सिंचाई विभाग के अनुसार 1988 में
आरडी 629 इंदिरा गांधी फीडर पर साइफन से 32000 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। हरियाणा के ओट्टू हेड से 19 जुलाई 1993 को 40763 क्यूसिक पानी छोड़ा गया था। उस समय घग्गर डायवर्सन चैनल डाउन स्ट्रीम आरडी 42 में 14160 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। सन 1995 में घग्घर में पानी की आवक ज्यादा नहीं थी पर बहाव क्षेत्र कम होने के कारण ही बंधा टूटा और हनुमानगढ़ जंक्शन डूब गया था।


सिंचाई विभाग के अभिलेख के अनुसार घग्गर नदी में हर 5 वर्ष बाद 18966 क्यूसेक हर 10 वर्ष बाद 25282, क्यूसेक, हर 25 वर्ष बाद 33281 क्यूसेक, हर 50 वर्ष बाद 39118 क्यूसेक और हर 100 साल बाद 44969 क्यूसेक पानी का प्रवाह होता है। गत वर्षाे में रही स्थिति के आधार पर घग्गर में 40000 से क्यूसेक पानी आने की संभावना है। अब हमें देखना यह है कि इस परिस्थिति में राजस्थान सरकार के पास जल निकासी का प्रबंधन क्या है ?
इंदिरा गांधी नहर परियोजना के आरडी 629 पर बने सायफन से पानी के निकास हेतु जीडीसी, नाली और इंदिरा गांधी नहर तीन व्यवस्थाएं है। घग्घर डायवर्जन चैनल (जीडीसी ) की क्षमता आरडी 0 से आरडी 24 तक 18,000 क्यूसेक (जहां दो एस्केप स्थित हैं) और आरडी 24 से टेल तक 12,000 क्यूसेक है। जीडीसी में अधिकतम 20000 क्यूसेक पानी डाला जा सकता है। आईजीएनपी को खाली करवानें के बाद इसमें 5000 क्यूसेक पानी डाला जा सकता है।
नाली में कम से कम 15000 क्यूसिक पानी डालना ही पड़ेगा। परंतु वर्तमान में घग्गर बहाव क्षेत्र बहुत कम रह गया है और जल निकासी हेतु चौड़ाई कहीं एक बीघा है तो कहीं इससे भी है। जिसके कारण नाली में बने अवैध बांधों का टूटना निश्चित है।
इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि जैसे-जैसे घग्गर नदी के पानी के कारण क्षेत्र में कृषि विकास के साथ-साथ औद्योगिक विकास हुआ है। यह नदी घग्घर पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के लिए वरदान से कहीं अधिक है।
घग्घर अपना रास्ता मांग रही है।
दोष घग्गर नदी में नहीं है, हमारी नीयत खराब है। हम लोगों ने घग्गर नदी के स्वच्छंद जल बहाव को संकुचित करने का दुस्साहस किया। बहाव क्षेत्र में तटबंध बनाकर इसे संकरा कर दिया। इसके बहाव क्षेत्र में उद्योग लगाए, आवासीय कालोनियां बनाई है। हमने घघर नदी के जल प्रवाह हेतु पर्याप्त स्थान नहीं छोड़ा है।
कानूनी पहलू की बात करें तो राज्य सरकार अधिसूचना संख्या एफ 28(2) सिंचाई/73, दिनांक 6 जून, 1973 के द्वारा घग्घर नदी के तल में चक 18 सीडीआर के पत्थर नंबर 198/272 से चक 94 जीबी से आगे भारत पाक सीमा तक प्रवाह में अवरोध के निर्माण पर रोक है तथा इस सीमा के अन्दर कोई अवरोध है तो उन्हें हटाया जाना चाहिए।
सच तो यह है कि स्वयं सरकार ने भी अपने आदेशों की पालना नहीं की और बहाव क्षेत्र में ईंट भट्टे, उद्योग और कॉलोनी निर्मित किए जाने की अनुमति दी।
अगर घग्गर बहाव क्षेत्र से अवैध अतिक्रमण हटाकर घग्गर को रास्ता नहीं दिया गया तो घग्गर अपना रास्ता बनाएगी। और रास्ता बनाने की जिद विध्वंस की तरफ जाती है। हनुमानगढ़ जंक्शन के लोग इसका दंश झेल चुके हैं। याद है न ?
-लेखक पेशे से वरिष्ठ अधिवक्ता और नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक हैं

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