सचमुच, बदलेगी जातिगत वोट राजनीति की केमिस्ट्री!

एडवोकेट शंकर सोनी.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सर्वाेच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1 अगस्त 2024 को 6-1 के बहुमत से निर्णय दिया है कि राज्य सरकार को प्रवेश और सार्वजनिक नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है।
सात सदस्यीय संवैधानिक पीठ का निर्णय है, जिसकी वैधता पर आम आदमी कोई टीका टिप्पणी नहीं कर सकता। यह बात अलग है कि इस सात सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने पूर्व की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के निर्णय को बदला है।
इस लेख में हम इस निर्णय पर इसके व्यवारिक प्रभाव के दृष्टिकोण से विचार करेंगे।
निर्णय में कुछ यूं भी
मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर सहमति जताई कि सभी अनुसूचित जातियाँ एक ‘अविभाज्य एकाश्म’ सभी जातियों के सभी लोग एक जैसे नहीं हैं। इसलिए इन जातियों को आगे भी उप-वर्गीकृत किया जा सकता है। पीठ के सात न्यायाधीशों में से चार ने अपने अलग-अलग निर्णय में मुख्य न्यायधीश द्वारा सुनाए गए निर्णय कुछ आगे बढ़ते हुए यह भी कहा है कि सरकार को अन्य पिछड़ा वर्ग की तरह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए भी “क्रीमी लेयर सिद्धांत” लागू करना चाहिए। उन्होंने माना है कि संपन्न व्यक्तियों और अधिकारियों के बच्चों की तुलना गांव और कस्बों में रहने वाले आम अनुसूचित जातियों के बच्चों से नहीं की जा सकती है।
असमनो में असमानता
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि “वास्तविक समानता” लाने के लिए असमान लोगों के साथ असमान व्यवहार किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति गवई ने तर्क दिया, ‘यह राज्य का कर्तव्य है कि वह नागरिकों के पिछड़े वर्ग को प्राथमिकता दे, जिनका अब तक पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।’
यह मामला पंजाब सरकार द्वारा बाल्मीकि और मजहबी सिखों को अलग से वर्गीकृत किए जाने हेतु बनाए गए कानून को लेकर इस पीठ तक पहुंचा। इस निर्णय पर सामाजिक दृष्टिकोण से विचार करे तो यह स्वागत योग्य है। जैसे संपूर्ण समाज में तथाकथित सवर्ण जातियों से अनूसूचित जातियों को अलग किया गया है ठीक इसी तरह से अनुसूचित जातियों में से भी कुछ जातियों अधिक पिछड़ा माना जा सकता है।
संविधान के अनुसार आरक्षण व्यवस्था मात्र दस वर्ष के लिए की गई और इस दस वर्ष की अवधि में समस्त पिछड़ी जातियों को 10 वर्ष में सामान्य धारा तक लाना था। पर आरक्षण व्यवस्था को 10-10 करके बढ़ाया जा रहा है।
सात दशक से अधिक समय हो चुका है पर कभी इस विषय पर मंथन नहीं किया गया कि वास्तव मे आरक्षण का लाभ सही रूप से मिल भी रहा है या नहीं ? सबसे पहले यह तथ्यात्मक रिपोर्ट ली जानी चाहिए कि आज तक आरक्षण का लाभ किस वर्ग और जाति के लोगों द्वारा किस सीमा तक उठाया गया है। इस निर्णय के परिप्रेक्ष्य में वाल्मीकि समाज पर विचार करें तो पाएंगे कि यह आज भी विकास के अंतिम छोर पर खड़ा है। वाल्मीकि समाज या ऐसे अन्य समाज या जातियों को आरक्षण का लाभ प्रभावी रूप से दिया जाता है, इससे बाबा साहब की आत्मा को सुकून मिलेगा। अब इस निर्णय को लेकर जातिगत वोट राजनीति की केमिस्ट्री बदलेगी।
-लेखक पेशे से कानूनविद् और नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक हैं

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