जन, गण, मन: धर्मस्थलों को पूजा योग्य बनाएं, कैसे ?

शंकर सोनी.
न्यायालयों में धार्मिक स्थलों से संबंधित विवादित मामले बढ़ते जा रहे हैं। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च सहित सभी धार्मिक स्थलों के प्रबंधन पर पुनर्विचार की व्यवस्था है। धार्मिक स्थलों से जुड़े विवादों के संबंध में 13 दिसंबर, 2024 को सर्वाेच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए सिविल न्यायालयों को किसी भी धार्मिक स्थल के स्वामित्व या शीर्षक को चुनौती देने वाले नए मुकदमे दर्ज करने और विवादित धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण को प्रतिबंधित किया है। आइए इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की योजना का शिलान्यास करते हुए 13 नवंबर 1947 को सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा-हमारे पूर्वजों ने जिन मूल्यों और आदर्शों को स्थापित किया, वे इस मंदिर में सन्निहित हैं। यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है। हमें इसे उसी गौरव के साथ पुनर्स्थापित करना है।’ पटेल ने इसे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में यह कहते हुए प्रस्तुत किया कि भारत में हर समुदाय को अपनी विरासत के प्रति सम्मान रखना चाहिए।
सर्वाेच्च न्यायालय ने 2019 में सांप्रदायिक सौहार्द्र को बनाए रखने के उद्देश्य से बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद का निर्णय दिया। अभी वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के पास स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर मामले न्यायालय में लम्बित है। कानूनी पहलू देखें तो इस सम्बन्ध में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 बना है। जिसके अनुसार धार्मिक स्थलों की स्थिति को उसी रूप में बनाए हुए रखा जाएगा जिस रूप में वो 15 अगस्त 1947 को थे।
परंतु इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता को भी 2021 में कुछ याचिकाओं के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह अधिनियम न्याय तक पहुंचने के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 32) और धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) का उल्लंघन करता है।
गौर से देखते पर 15 अगस्त 1947 की स्थिति के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण स्पष्ट है कि धार्मिक स्थलों की स्थिति को अपरिवर्तनीय माना जाए। और किसी भी नए विवाद को जन्म न दिया जाए। हमारे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का गंभीरता से अध्ययन करें तो धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के अधीन है। इसका मतलब यह है कि धार्मिक स्थलों के प्रबंधन या उपयोग में स्वतंत्रता के अधिकार को सामुदायिक शांति और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए नियंत्रित किया जा सकता है।


भारतीय संविधान के तहत धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हुए राज्य को धर्म से अलग रहना चाहिए, लेकिन कुछ ऐतिहासिक और कानूनी कारणों से तिरुपति बालाजी (आंध्र प्रदेश), पद्मनाभस्वामी मंदिर (केरल), जगन्नाथ मंदिर (ओडिशा) जैसे बड़े मन्दिरों सहित लगभग 2 लाख से अधिक मंदिर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य सरकारों के अधीन हैं।
भारत में मुस्लिम धार्मिक अजमेर शरीफ दरगाह (राजस्थान), दिल्ली की जामा मस्जिद सहित लगभग 6 लाख से अधिक मस्जिदें, दरगाहें, कब्रिस्तान और अन्य संपत्तियां वक्फ बोर्ड के अधीन आती हैं। वक्फ बोर्ड एक स्वायत्त निकाय है, लेकिन यह सरकार द्वारा विनियमित होता है।
सिख धर्म के धार्मिक स्थलों का प्रबंधन ज्यादातर स्वतंत्र निकायों द्वारा किया जाता है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) प्रमुख गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीएमसी) दिल्ली के गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है। इनमें सरकार का सीधा हस्तक्षेप बहुत कम है।
ईसाई धर्म के चर्च और उससे जुड़े संस्थानों का प्रबंधन पूरी तरह से चर्च के अपने संगठन, कैथोलिक या प्रोटेस्टेंट बोर्ड्स द्वारा किया जाता है। सरकार का इनमें कोई नियंत्रण नहीं है।
महाबोधि मंदिर (बोधगया) का प्रबंधन राज्य सरकार और बौद्ध संगठनों के संयुक्त प्रयास से होता है परंतु अधिकांश बौद्ध स्थल बौद्ध धर्म के स्वतंत्र संगठनों द्वारा प्रबंधित हैं। जैन मंदिरों में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक), ऐतिहासिक महत्व के कारण राज्य के संरक्षण में हैं। शेष सभी जैन मन्दिरो का प्रबंधन जैन समुदाय द्वारा किया जाता है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण, धार्मिक स्थलों की संपत्ति के संरक्षण, सामाजिक शांति, भ्रष्टाचार और वित्तीय दुरुपयोग को रोकने के लिए सभी धार्मिक स्थलों के प्रबंधन में एकरुपता लाना आवश्यक है। मेरी राय में धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांत को मजबूत करने के लिए सरकार को चाहिए कि वह इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श करे और सभी धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के लिए समान और पारदर्शी व्यवस्था लागू करे। सभी धार्मिक स्थलों का प्रबंधन एक समान बनाया जाए जिसमें सभी धर्मों के स्थलों पर समान नियम लागू हों।
धार्मिक स्थानों में पूजा, अर्चना आदि अपने-अपने धर्म के अनुसार हो पर सभी धर्मों के पूजा स्थलों की आय को सीधे जन स्वास्थ्य, शिक्षा और सार्वजनिक कल्याण के लिए उपयोग किया जाए। इससे समाज के आर्थिक और सामाजिक उत्थान में बड़ा योगदान मिलेगी। यह न केवल संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखेगा, बल्कि भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का भी समुचित संरक्षण करेगा।
धार्मिक स्थलों की आय का उपयोग राजनीतिक गतिविधि, धार्मिक प्रचार, या निजी स्वार्थ के लिए न हो। इससे भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है। यह न केवल धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करेगा, बल्कि धार्मिक स्थलों की विशाल संपत्ति और आय का उपयोग समाज के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए होगा। यह व्यवस्था धार्मिक स्थलों को केवल पूजा का केंद्र न मानकर समाज सेवा का केंद्र बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास बन सकता है।
-लेखक नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष व पेशे से वरिष्ठ अधिवक्ता हैं

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