गोपाल झा
सियासत में सत्ता ही सर्वोपरि है। सत्ता हासिल करने के लिए ‘कुछ भी करने‘ से नहीं हिचकिचाना चाहिए। मोदी युग की भाजपा का यही मूलमंत्र है। पार्टी प्रत्याशी को मंत्री बनाकर भाजपा ने बची-खुची नैतिकता को भी तार-तार कर लिया था। देश के 75 साल के लोकतांत्रिक इतिहास में यह पहली घटना थी। राजस्थान में पाकिस्तान सीमा पर स्थित श्रीकरणपुर विधानसभा सीट पर चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी को मंत्री बनाना और उनका चुनाव हारना कई अर्थों में खास है। जिस प्रत्याशी को जिताने के लिए मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधायकों व पार्टी दिग्गजों की फौज ने श्रीकरणपुर में डेरा डाल दिया हो, उस भाजपा प्रत्याशी की हार के सियासी मायने खोजे जाएंगे।
राजनीति में ताकत और कमजोरी का आकलन करने के लिए कोई अलग से पैरामीटर नहीं है। बेशक, वक्त की मेहरबानी मायने रखती है। राजस्थान को छोड़िए, पूरे देश में वक्त भले भाजपा का हो लेकिन हर जगह वह ‘मेहरबान’ हो, इसकी कोई गारंटी नहीं। साल 2024 मोदी युग के लिए खास है। मोदी अपनी लोकप्रियता के रथ पर सवार होकर तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की जुगत में हैं। राजस्थान में मोदी-शाह का तीन दिवसीय प्रवास का अपना मतलब है। वे नए चेहरों को आगे कर कमान अपने हाथों में रखना चाहते हैं। वसुंधराराजे के बिना भाजपा को स्थापित रखना चाहते हैं। ब्यूरोक्रेसी के सहारे वे सत्ता का संचालन करना चाहते हैं। दिल्ली व गुजरात से पसंद के ब्यूरोक्रेट्स आयातित किए जा रहे हैं। राजस्थान की जनता सब कुछ देख रही है। तो क्या, सारे जतन के बावजूद श्रीकरणपुर की हार भाजपा के लिए साल 2024 के हिसाब से ‘अपशगुन’ है?
श्रीकरणपुर सीट से भाजपा प्रत्याशी सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को मतदान से चंद दिनों पहले मंत्री बनाया जाना जनता को रास नहीं आया। बेशक, इसे ‘जनता का अपमान’ माना गया। शायद, मोदी-शाह को इस हार का मतलब समझ में आ जाए।
देखा जाए तो यह जीत कांग्रेस की नहीं है। कांग्रेस प्रत्याशी रुपिंद्र सिंह कुन्नर की भी नहीं। यह जीत दिवंगत गुरमीत सिंह कुन्नर के व्यक्तित्व की है, जनता ने रुपिंद्र सिंह को वोट देकर कुन्नर के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की है। भाजपा को सचेत किया है कि वह जनता को ‘नासमझ’ मानने की भूल न करे। अहंकार पालने का शौक न रखे। लोकतंत्र की आत्मा जनता ही है। जनता सर्वोपरि है। उसके सम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश न करे।
चूंकि भाजपा का पैंतरा पस्त हो गया है। पार्टी प्रत्याशी सुरेंद्र पाल सिंह टीटी चुनाव हार गए हैं। बेशक, यह असाधारण हार है। इसेे पचाना आसान नहीं। लेकिन टीटी को समझना होगा कि यह उनकी अकेले की हार नहीं है। आलाकमान की हार भी है। हां, टीटी की हार से श्रीकरणपुर क्षेत्र को विकास के दृष्टिगत नुकसान हो सकता है। सरकार की उपेक्षा का दंश झेलना पड़ सकता है। गर, टीटी चुनाव जीत जाते तो यकीनन श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिले को फायदा होता। लेकिन जनता ने अपना लाभ-हानि न देख स्वाभिमान की रक्षा को प्राथमिकता दी। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस परिणाम को भाजपा सबक के तौर पर लेगी और टीटी की जगह हनुमानगढ-श्रीगंगानगर जिले के दो में से एक विधायक को कैबिनेट में जरूर शामिल करेगी। ताकि नहरी बेल्ट को सरकार में प्रतिनिधित्व मिल सके। सनद रहे, चार महीने बाद फिर चुनाव है।
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के एडिटर इन चीफ हैं