किसानों को भी ‘गारंटी’ दीजिए न मोदीजी!

शंकर सोनी.
देश फिर आंदोलन की जद में है। नागरिकता संशोधन कानून और पिछले किसान आंदोलन के समय हमने देखा है कि ऐसे आंदोलन किन्ही कारणों से हिंसक प्रदर्शन में बदल जाते हैं। सरकारी नीतियों या कानून के विरुद्ध शांति पूर्ण असहमति व्यक्त करने का अधिकार सब को है। परंतु इसके साथ-साथ अन्य नागरिकों का आवागमन बंद करने, बाजार बंद करवा देने, रास्ते बंद करने, सरकारी या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का अधिकार किसी को नहीं है। इससे सामान्य व्यक्तियों का सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है। सर्वाेच्च न्यायालय डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में 16 अप्रैल 2009 को फैसला सुनाते हुए संसद को इस संबंध में कानून बनाने के निर्देश दिए हुए है और तब तक के लिए निर्देश दिए हैं कि किसी हड़ताल, बंद या विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है, तो इसकी क्षतिपूर्ति दोषी व्यक्ति या संगठन से की जाएगी।
प्रिवेंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट 1984 के अंतर्गत तहत भी हिंसक आंदोलन के दोषियों को 6 महीने से 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा हिंसा, दंगा, आगजनी और बलवा करने वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता अंतर्गत भी कार्रवाई की जा सकती है। आंदोलनों में हिंसा और नुकसान को गंभीरता से लेते हुए सर्वाेच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से न्यायमूर्ति केटीथॉमस व एफएसनारिमन की अध्यक्षतायता में समितियों का गठन हुआ। दोनों समितियों ने स्वतंत्र रूप से अपनी रिपोर्टें प्रस्तुत कीं। दोनो समितियों की रिपोर्टों पर विचार करने के बाद सर्वाेच्च न्यायालय ने थॉमस समिति की रिपोर्ट के सुझावों को स्वीकार योग्य माना है।
निष्कर्ष के रूप में मेरा यह मानना है कि आज देश को आजाद हुए 76 वर्ष से अधिक समय हो चुका है। प्रथम तो सरकारों को आम नागरिकों के चाहे वो किसान हो, व्यापारी हो या मजदूर हो, या कर्मचारी के अधिकारों और आवश्यकताओं के प्रति इतना संवेदनशील होकर ऐसी कानून व्यवस्था स्थापित करनी चाहिए थी कि नागरिकों को अपनी ही चुनी हुई सरकार के विरुद्ध आंदोलन करने की जरूरत ही न पड़े। अगर आंदोलन की नौबत आए तो आंदोलन आयोजक अपने शांतिपूर्ण प्रदर्शनी के बारे में सरकार को सूचित करें और फिर सरकार इसकी अनुमति देने हेतु बाध्य हो। ऐसे आंदोलन और प्रदर्शनों की पुलिस और मीडिया के माध्यम से वीडियोग्राफी की जाए और फिर कोई हिंसा या नुकसान हो तो दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाए और आंदोलन की इजाजत लेने वाले व्यक्तियों पर इसका मूल दायित्व रखा जाए। विरोध प्रदर्शन में सभी हथियारों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। सरकार को इस संबंध में राज्य नागरिक अधिकारों को दृष्टिगत्य करते हुए कानून बनाना चाहिए। सरकार को राजनीतिक कारणों से विपक्ष के वाजिब प्रदर्शन को असहमति के रूप में स्वीकार करते हुए सहिष्णु रुख अपनाना चाहिए। विपक्षी दलों के भी केवल सत्ता पक्ष का अकारण ही विरोध करने के उद्देश्य से प्रदर्शन, हड़ताल, बंद का आहवान नहीं करना चाहिए।
अब दो दिन से किसान आंदोलन को लेकर राजस्थान पंजाब हरियाणा दिल्ली तक सरकार ने जिस रूप से आंदोलन के विरुद्ध मोर्चाबंदी कर रास्ते बंद किए है इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? किसनो की एमएसपी आदि मांगों को लेकर पूर्व में 2020 में आंदोलन हो चुका है और अब तक सरकार इसका कोई समाधान नहीं खोज सकी, तो सरकार की नीति पर सवाल उठना लाजिमी है।
सरकार को लघु एवं मध्यम श्रेणी के काश्तकारों की समस्त फसल एमएसपी पर खरीद के लिए घोषणा अविलंब करनी चाहिए इसमें सरकार पर भार भी नहीं बढ़ता। मोदीजी जिस विश्वास से आज गारंटी पर गारंटी दे रहे हैं, एमएसपी और स्वतंत्र व्यापार पर किसानों के हितों के लिए गारंटी देने से क्यों बच रहे हैं? किसानों को भी उनकी मांगों पर समुचित गारंटी दीजिए न मोदीजी!
-लेखक नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता हैं

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