

ग्राम सेतु ब्यूरो.
दीपावली के पांच दिवसीय पर्व का चौथा दिन गोवर्धन पूजा या अन्नकूट उत्सव कहलाता है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि मनुष्य और प्रकृति के गहरे संबंध का प्रतीक है। गोवर्धन पूजा हमें यह सिखाती है कि जब मनुष्य अपनी अहंकारपूर्ण भक्ति छोड़कर प्रकृति का सम्मान करता है, तभी उसका जीवन संतुलित और समृद्ध होता है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, ब्रजवासियों की परंपरा थी कि वे वर्षा के देवता इंद्र की पूजा करते थे, ताकि भरपूर वर्षा और अच्छी फसल प्राप्त हो। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपों से कहा कि वर्षा का स्रोत इंद्र नहीं, बल्कि प्रकृति स्वयं है, पहाड़, जंगल, नदियाँ और धरती। अतः हमें इन प्राकृतिक तत्वों का आभार मानना चाहिए। ब्रजवासी श्रीकृष्ण की प्रेरणा से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।

यह देखकर इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने भीषण वर्षा कर दी। पूरे ब्रज को जल में डुबो देने की कोशिश की। तब बालकृष्ण ने अपनी छोटी उँगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सात दिन तक ब्रजवासियों की रक्षा की। अंततः इंद्र ने पराजय स्वीकार की और श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। तब से हर वर्ष गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है, जो अहंकार पर विनम्रता और प्रकृति की शक्ति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।

यह पर्व भारतीय जीवनदर्शन के उस मूल भाव को उजागर करता है जिसमें प्रकृति ही परमात्मा मानी गई है। गोवर्धन पर्वत, जो धरती, जल, वायु और वनस्पति का संगम है, वास्तव में पर्यावरण संरक्षण का प्राचीन प्रतीक है। श्रीकृष्ण ने यह संदेश दिया कि सच्ची पूजा देवताओं की नहीं, बल्कि उस प्रकृति की है जो हमें जीवन देती है।

गोवर्धन पूजा कृषक संस्कृति का भी उत्सव है। यह दिन नई फसल और पशुधन के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर देता है। गाय, बैल, और अन्य पशुओं को सजाकर उनकी पूजा की जाती है, क्योंकि वे मानव जीवन के सहचर और अन्नदाता हैं। इसीलिए यह दिन ‘अन्नकूट’ के नाम से भी प्रसिद्ध है, जहाँ विविध व्यंजन बनाकर गोवर्धन भगवान को अर्पित किए जाते हैं।

सुबह स्नान कर घर और आँगन को साफ किया जाता है। गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर उस पर फूल, जल, धूप और अन्न अर्पित किया जाता है। फिर परिवारजन मिलकर अन्नकूट तैयार करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के अनाज, सब्जियाँ, मिठाइयाँ और पकवान शामिल होते हैं। पूजा के बाद यह प्रसाद सभी में बाँटा जाता है, जिससे सामूहिकता और समानता का भाव प्रकट होता है।

गायों को नहलाकर, हार-फूलों से सजाकर, उनकी आरती उतारने की परंपरा है। अनेक स्थानों पर श्रीकृष्ण-गोवर्धन की झांकियाँ सजाई जाती हैं और सामूहिक भजन-कीर्तन से वातावरण भक्तिमय बनता है। गोवर्धन पूजा केवल पूजा-पाठ का उत्सव नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है, जो हमें सिखाता है कि प्रकृति का संरक्षण ही वास्तविक भक्ति है। जब हम धरती, जल, वायु, अन्न और पशुधन की कद्र करते हैं, तभी जीवन में समृद्धि और संतुलन बना रहता है। यही गोवर्धन पूजा का शाश्वत संदेश है, अहंकार नहीं, आभार से ही जीवन महकता है।

