एडवोकेट एमएल शर्मा.
ना दिल्ली की निर्भया पहली थी और ना ही कोलकाता की डॉक्टर मोमिता देवनाथ आखिरी। निहायत ही दर्दनाक, शर्मनाक और भी बहुत कुछ है। हे सरकार, अब तो शर्म करो। पर शायद आप नहीं करोगे। क्योंकि, जिम्मेदारों को ‘कुर्सी-कुर्सी’ खेल से फुर्सत ही नहीं है। विडंबना देखिए, संदेशखाली से जोधपुर, कोलकाता से मालदा, हैवानियत की हद, पाप की पराकाष्ठा और कोढ में खाज यह कि सियासतदान चुप्पी साधे हुए हैं।
माननीयों ने ‘मौन व्रत’ कर रखा है। विचारणीय बिंदु है कि देश में आखिर ऐसी हालत क्यों? आधी आबादी की सुरक्षा के बारे में ठोस योजना कब फलीभूत होगी। सोचनीय है कि आज बेटियों का बस में अकेले सफर करना भी सुरक्षित नहीं रहा। महीना रक्षाबंधन का चल रहा है। ऐसे में आम आदमी की एकमात्र सोच है कि राखी के इस पावन पर्व पर राक्षसों को बेनकाब किया जाए। ताजा मामला कोलकाता में सामने आया जहां एक रेजिडेंट डॉक्टर की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गई। इतना ही नहीं हत्या से पहले दरिंदों की दरिंदगी इस कदर हावी रही की एक अबला ने दम तोड़ दिया। सियासत यहां भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आई। भारतीय राजनीति में सिस्टम हो ना हो, सिस्टम में राजनीति जरूर होती है। हुक्मरान बेटियों के मामले में तो एकजुट रहे यही आशा की जाती है। परंतु क्षोभ है कि ‘अपनी रोटी अपना चिमटा’ के अलावा कुछ नहीं हो रहा है। स्वच्छ राजनीति दिवास्वपन बन कर रह गई है। सूबे की पिछली सरकार में दुष्कर्म की घटनाओं पर आक्रोश जताने वाले ‘नेताओं’ के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। भाजपा कोलकाता पर मुखर हो रही है वहीं राजस्थान पर जबान बंद। यह दोहरा चरित्र ही देश की बेटियों के लिए घातक है। ममता बनर्जी से इस्तीफा मांगा जा रहा है तो भजनलाल को ‘अभयदान’। हालांकि आरके मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल शक के दायरे में है। मीडिया में खबर चल रही है कि इस मेडिकल कॉलेज में अंगों की तस्करी, सेक्स रैकेट, नशाखोरी कुछ भी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अस्मत लुटाकर काल का ग्रास बनी बेटी की डायरी का एक पन्ना पिता को मिला जिसमें सारा वृतांत लिखा हुआ था। शक इस बात पर पुख्ता हो जाता है कि शव सेमिनार हाल में मिला और आनन फानन में सेमिनार हॉल का रिनोवेशन किया गया जबकि उसकी जरूरत नहीं थी। कांड की हकीकत निश्चित रूप से डरावनी है।
अब बेटियों को दिलेरी दिखानी होगी। सफेदपोशो को बेनकाब करना जरूरी हो गया है। हैवानियत की हद पार करने वाले दरिंदों को माकूल सबक सिखाना आवश्यक है। सवाल ज्वलंत है पर जवाब कोसों दूर। बेटियों को गुंडो से ज्यादा माननीयों से डर लग रहा है। आरोप है कि सबूत मिटते हैं। दुष्कर्म, बर्बरता व जख्म और फिर हत्या। ट्रेनी डॉक्टर के केस में यही हुआ। दिल दहलाने वाले सबूतो का जखीरा मिला। दरिंदगी के सबूत मिले। लेकिन पुलिस पर आरोपियों को बचाने का आरोप है। राजस्थान के जोधपुर में ढाई साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म जैसा जघन्य कांड हुआ। वहशीपन की इंतहा कही जाएगी कि सिरोही में 63 वर्षीय वृद्धा, जोधपुर में ढाई साल की बच्ची व सलूंबर में 12 वर्षीय बालिका के साथ दुष्कर्म व गैंगरेप की घटनाएं हो गई है। अखबारों में नित्य ऐसी घटनाएं छपती है पर एक भी आंदोलन सिरे नहीं चढा। यह हालात आखिर क्यों हो रहे हैं? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की माने तो वर्ष 2023 की अपेक्षा वर्ष 2024 में दुष्कर्म मामलों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। क्या सरकार हर मोर्चे पर विफल है? मेरे सरकार, इतना ही निवेदन कि कार्रवाई इतनी सख्त हो जिससे ऐसा घिनौना अपराध करने वालों की रूह तक कांप जाए। जरूरी हो गया है कि बेटियों को पढ़ाई के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी दी जाए। सबको सन्मति दे भगवान।