राजेश चड्ढ़ा.
नानक सिंह पंजाबी साहित्य दा एक वड्ढा नाम है। उस ने बहुत कुछ रचेया अते पढ़ेया वी। जित्थे इक पासे उस ने पंजाबी परिवार, समाज अते सभ्याचार नाल जुड़ियां कहानियां अते उपन्यास लिखे, उत्थे दूजे पासे फिरंगी गुलामी खिलाफ़ वी दिलेरी नाल कलम चलाई। नानक सिंह नूं पंजाबी नावलां दा का पितामह मनेया जांदा है। नानक सिंह दी वड्डी खासियत या प्राप्ति इह सी कि पंजाबी भाषा दी साहित्यिक समर्थता उस दे सृजनात्मक कारज राहीं ऐतिहासिक तौर ते सामने आयी।
नानक सिंह दा जन्म अजोके पाकिस्तान दे झेलम जिले विच इक गरीब पंजाबी हिंदू परिवार विच होया सी। उन्हां दा मुडला नाम श्हंस राजश् सी। बाद विच सिख धर्म अपनौन तों बाद उन्हां ने अपना नाम ‘नानक सिंह’ रख लेया सी। उन्हां बारे ज़िकरयोग है कि नानक सिंह ने रस्मी शिक्षा प्राप्त नहीं कीती सी। फिर वी उन्हां ने छोटी उम्र तों ही ऐतिहासिक घटनावां ते कवितावां लिखनिया शुरू कर दितियां सन। बाद विच नानक सिंह ने शबद लिखने शुरू कीते, जो काफी प्रसिद्ध होये। सन 1918 विच सतगुरु महमा’ दे नाम नाल उन्हां दी शबद-पुस्तक छपी। उस जमाने विच इस दियां इक लाख तों वध कपियाँ विक गइयाँ सन।
13 अप्रैल, 1919 नूं बैसाखी वाले दिन जलियांवाला बाग विच शांतमयी सभा कर रहे लोकां नूं ब्रितानी फ़ौजां ने गोलियां नाल भुन दिता सी। बस्तीवादी बेरहमी दी इह अजेही घटना सी, जिसने पूरे देश नूं झिंझोड़ के रख दिता सी। नानक सिंह अपने दो दोस्तां नाल ओत्थे गये होये सन, जिन्हां नूं मार दिता गया।
इस घटना ने नानक सिंह नूं विदेशी जुल्म खिलाफ दिलेरी नाल कलम चुकन लयी मजबूर कर दिता। जिस तरहां उन्हां ने श्खूनी बैसाखीश् नाम नाल लिखे महाकाव्य विच फिरंगी राज दा मज़ाक उड़ाया है, उस दी वजहों इस रचना नूं उस दी निर्भीकता कारण बहुत प्रसिद्धि मिली। हालांकि कुज दिनां दे अंदर ब्रितानी सरकार ने इस किताब नूं भड़काऊ प्रकाशन मनदेयां होयां पाबंदी लगा दिती।
इस तों बाद नानक सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम विच सरगर्मी नाल शिरकत कीती। उह अकाली अखबारां दे संपादक सन। अंग्रेज सरकार उन्हां दी गतिविधियां ते लगातार नज़र रखदी सी। उन्हां ते गैरकानूनी राजनीतिक गतिविधियों विच शरीक होन दा दोष लगाया गया अते उन्हां नूं बोरसाल जेल, लाहौर भेज दिता गया। इस समय दौरान उन्हां ने शांतिमय सिखों ते अंग्रेजां दी बेरहमी बारे काविक दखल अंदाज़ी कीती। इस तरहां उन्हां दा दूजा कविता संग्रह ‘जख्मी दिल’ सामने आया। इह जनवरी, 1923 विच प्रकाशित कीता गया सी, पर प्रकाशन दे दो हफ्तेयां दे अंदर ही इस ते पाबंदी लगा दिती गयी। नानक सिंह नूं 1962 विच नावल, ‘इक म्यान अते दो तलवारां’ उपन्यास लयी साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलेया।
उन्हां दा लिखेया नावल ‘पावित्र पापी’ बहुत मशहूर होया। 1968 विच प्रसिद्ध फिल्मसाज़ बलराज साहनी ने इस नावल ते आधारित फिल्म ‘पवित्र पापी’ बनायी। जिस नूं काफी सफ़लता हासिल होयी। उन्हां ने नावल अते छोटियां कहानियाँ दे संग्रह समेत 50 तों वध किताबां लिखियां।
उन्हां ने वख वख साहित्यिक विधावां विच महत्वपूर्ण योगदान दिता। पंजाबी वृत्तांत विच उन्हां दा सब तों वड्डा योगदान उन्हां दी धर्मनिरपखता है। उन्हां ने रोमांटिक आदर्शवाद दे पर्दे नाल घिरी
समकालीन जीवन दियां घटनावां नूं दर्शाया।
नानक सिंह अपने नावल ‘चिट्टा लहू’ (व्हाइट ब्लड) विच लिखदे हन-
‘इयूं जापदा है कि साढे़ समाज दे जीवनकाल विच, लहू दे लाल कण आलोप हो गये हन।’
2011 विच नानक सिंह दे पोत्रे, दिलराज सिंह सूरी ने ‘चिट्टा लहु’ दा अंग्रेजी विच व्हाइट ब्लड सिरेलेख नाल अनुवाद कीता। इस किताब दा रुसी भाषा विच अनुवाद वी कीता गया सी, इह काम महान नावलकार लियो टॉलस्टॉय दी पोत्री नताशा टॉलस्टॉय ने अंजाम दिता सी। अनुवादित नावल दी पहली कापी भेंट करन लयी उस ने अमृतसर विच नानक सिंह दे घर दा दौरा कीता।
नानक सिंह दा साहित्य जित्थे इक पासे वंड वरगी पीड़ दे दर्दनाक जज़्बातां दा शबदां विच बयान है, उत्थे ही दूजे पासे पंजाबी कौम दी जिंदादिली दा दस्तावेज है।
-लेखक जाने-माने शायर और आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक हैं