एमएल शर्मा.
21वीं सदी। विज्ञान एवं तकनीक के बूते मंगल ग्रह पर भी हमारी छाप। परन्तु, इस मशीनी युग में तर्कविहीन आस्था का ज्वार ऐसी तीव्रता से उफना कि 123 जिंदगियां लील गया। यूपी के हाथरस जनपद के फुलरई मुगलगढ़ी गांव में 2 जुलाई को भगदड़ रूपी मौत का जलजला काल बनकर आया। भोले बाबा उर्फ सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि के महासत्संग में बाबा की ‘चरणधूल’ पाने की चाहत में मासूम खुद धूलि धूसरित हो गए। लाशों पर लाशें गिरने लगी और परिजन बेबसी में खड़े आंसू बहाने के सिवाय करें भी तो क्या? बाबा की कथित चमत्कारी चरणरज उठाने की जद्दोजहद में मची भगदड़ से दम घुटने से शवो के अंबार लग गए। मृतकों में महिलाओं व बच्चों की संख्या अधिक रही। हैरानी है कि सत्संग करने वाले बाबा अभी तक फरार है। लंबे हाथों वाली खाकी भी बाबा के गिरेबान तक नहीं पहुंच पाई। पुलिस का कहना है कि बाबा के महल में देखा लेकिन बाबा नहीं मिले। बस हो गई इतिश्री। उधर, एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में एसडीएम, तहसीलदार, सीओ सहित 6 अधिकारियों को दोषी पाया। सरकार ने उन्हें तुरंत निलंबित करते हुए मामला शांत करने का प्रयास किया। पर हैरानी की बात है कि एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में आरोपी के तौर पर बाबा के नाम तक का जिक्र नहीं किया और बाबा जी को ‘क्लीनचिट’ दे दी।
सरकार ने भी ‘समरथ को नहीं दोष गुंसाई’ का फलसफा आगे कर बाबा को अभयदान देने में देर नहीं लगाई। मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई जिसे माननीय प्रधान न्यायाधीश ने सूचीबद्ध करने के आदेश दिए हैं। हाथरस जैसा कांड देश में पहली बार नहीं हुआ है। बीते दो दशक में वाई टाउन महाराष्ट्र, नैनादेवी मंदिर हिमाचल, चामुंडा मंदिर राजस्थान, रामजानकी मंदिर यूपी, कुंभ मेला प्रयागराज, रत्नागढ़ मंदिर मध्यप्रदेश, राजसुंदरी आंध्रप्रदेश, एलफिस्टन रोड मुंबई, वैष्णो देवी मंदिर जम्मू में भी बदइंतजामी के चलते भगदड़ से मौत के हादसे हुए है जिनमें हजारों लोग काल कलवित हो गए। लेकिन ऐसी भगदड़ से बचाव की कोई ठोस कार्ययोजना बनाना तो दूर बात करना भी सरकारों के लिए बेमानी हो गया है। सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर भोली भाली जनता की आस्था से खिलवाड़ कब तक होता रहेगा। दरअसल, सियासतदानों के साथ संबंधों के चलते बाबाओं का रसूख बढ़ जाता है। हुक्मरानों ने भी जनता का मिजाज भांप रखा है। राजनीति के माहिर इन स्वादु महाराजाओ के दम पर देश की अंधविश्वासी जनता को जरिया बनकर चुनावी वैतरणी पार कर जाते है। धर्म और राजनीति का यह गठजोड़ कई परिवार उजाड़ देता है। ऐसे स्वयंभू बाबाओ की चमत्कार करने की कला उन्हें भगवान बना रही है। श्रद्धा बेहतर है, हम धर्म के प्रति श्रद्धा रखें, उन्माद नहीं। कर्मशीलता के पथ को अपनाएं। आस्था इतनी भी ना हो कि फर्जी बाबाओ की लगातार बढ़ती जमात को ना पहचान पाए। सोचिए, धर्म के नाम पर बेवकूफ बनाने का गोरखधंधा परवान क्यों चढ़ रहा है। कारण सिर्फ एक। सत्य सनातन धर्म के सूत्रों पर जीवन जीने की बजाय तत्काल बिना विचारे ढोंगी बाबाओ के झांसे में चक्करघिन्नी बन रहे है। अब इन फर्जी बाबाओ के मकडज़ाल को काटना वक्त की जरूरत है ताकि धर्म के नाम पर लूट और छल बिंदास जारी ना रहे। सबको सन्मति दे भगवान।
-लेखक पेशे से अधिवक्ता व समसामयिक मसलों पर टिप्पणीकार हैं