




रूंख भायला.
मनवार होवती ही हेताळू हाथां सूं
अपणायत री सोरम फूटती बांरी बातां सूं
हाथ है बैई अर बातां है सागी
पण प्रीत बदळगी है
कांई ठाह क्यूं, कांई ठाह क्यूं, कांई ठाह क्यूं….!
राजी राखै रामजी ! आज बात जीमण री, मनवार री। भेळा बैठणो अर भेळा जीमणो आपणी जूनी परम्परा। कैबत ई है, ‘बांट-बाट नै खाणो, बैकूंठां नै जाणो।’ अेक थाळी बैठ भेळा जीमण रो आनन्द ई न्यारो ! मौको कोई होवै, आपणै घरां में जीमण अर गोठ मनवार बिना पूरी नीं हो सकै। आ मनवार ई तो है जिकी आपां नै अेक दूजै सूं बांधे राखै। मनवार में आपां सामलै भाई बेली, सग्गा परसंग्यां रै मूंडै फगत गासिया ई नीं देवां, आपरो नेह अर अपणायत ई उण कवै रै मिस पूगै। बिना नेह, बिना अपणायत क्यांरो मान अर क्यांरी मनवार !

हेत री हथाई में बात नै आगै बधावां। पंजाब में रैवास रै दिनां, बठै रो अेक भायलो म्हां सूं सिंझ्या पौ’र में मिलण सारू आयो। म्हारी जोड़ायत बां रा जीमण सारू न्हौरा काढ्या, पैली तो बै नटग्या पण घणो कैयो तो हामल भर दी। भागजोग सूं उण दिन भूंदवा लापसी बणायोड़ी, जोड़ायत आंगणै में चौकी लगाय’र थाळी परूस दी। म्है आ सोच’र मनवार रो गासियो नीं दियो, कै कांई ठाह ओ अरोड़ो भाई कांई सोचौ अर दोनूं चमच्यां सूं जीमणो सरू कर्याे।

भायलो बोल्यो, ‘‘अे मीठा दलिया तां बोत्या स्वाद बण्या है भरजाई जी !’’ बस भरजाई जी तो मोदीजग्या, ईं बात पर घी सूं तरबतर लापसी री अेक और बाटकी उंधा दी थाळी में…..। ‘अे की कित्ता…. अे की कित्ता….’ भायलो लाई म्हारै मूंडै सामीं तकावै। कीं कोनी भाईसाब, मनवार है, जीमल्यो। लापसी पछै साग रोटी आई। अेक तो ल्यो, अेक और, बस आ अेक मनवार री…..करते करते जीम तो लिया पण भायलै रो पेट आंवसिजग्यो। ‘‘अज बोत खादा यार, मैं कदे इन्ना खांदा ई नंई हां !’’ बण पेट पर हाथ फेरतै घर ई मसां लियो होसी। इण किस्सै रो तत ठाह लाग्यो, जद थोड़ा’क दिन पछै उण भायलै रै घरां जावणो होयो। भायलै आपरी जोड़ायत सूं म्हारी ओळखाण करवाई।

बा पड़तां ई बोली, ‘‘तुस्सी भ्राजी घरे खाना खवा के अेन्नां दी आदतां ई बगाड़ दित्ती, बोत नखरे करण लगपए ने !’‘ म्है भायलै सामीं झाक्यो। बो बोल्यो, ‘‘कुज नीं यार, अेंवे भखाई मारी जांदी है, मैं तां अेन्ना ई आख्या सी, खाण दी टैम अे सवाल ना पाया कर, रोटी होर लैणी है…जां किन्नी रोटी लवोंगे ?…….यार, घर है साड्डा, होटल तां नीं….तू तां हरिमो’ण दे घर वाकण प्यार नाळ कै, अेक ता होर लवो जी, अेक तां लैणी पवू….!’’ म्है भोत हांस्या, बां भाभीसा नै मनवार री महिमा बताई तो बातड़ी बां रै हियै ई ढुकगी।

मनवार है ई इसी चीज, आप करो तो सरी। अेक थाळी बैठ’र आप कित्तो ई जीमो, गट्टो बणा बणा’र आरोगोे, भलंई पेट अेकर तो तिड़’र ढब्बू सो होज्यै, पण जीमण रो परमानंद है बठै। सीरै अर लापसी रो तो कैवणो ई कांई ! हेताळू हाथां सूं सीरै री गोळी बणा बणा’र अेक दूजै रै मूंडै में देवण री रीत और कठै लाधै !! चमची रो काम ई कोनी, भगवान हाथ दिया है नीं जीमण सारू….। नवी पीढी रा घणकरा लोग तो अेक थाळी बैठता ई डरै पण भेळा बैठ्यां पछै डरणो क्यां रो, मनवार री पाण घड़ी दो घड़ी सूं बेस्सी नीं होवै भई।

पण आज घड़ी……! बिगसाव में पछमी बायरो इस्यो बाज्यो कै मनवार अर मिनखपणो दोनूं छूट रैया है। मॉर्डनटी रै भुळावै में आपां मनवार नै फॉरमल बणाय दियो। दिखावै रै चक्कर में आपां हेठै बैठ’र जीमणो तो भूल ई गया। आज ब्याव उच्छब में चौफेर देखां तो बुफे सिस्टम दिसै जठै मनवार तो कठै पड़ी खाणो ई खड़्यां-खड़्यां होवै ! ब्याव छोरै रो होवै भलंई छोरी रो, घरधणी भवन रै गेट पर उभ्यो धिंगाणती मुळक साथै आप रो स्वागत करै, बठैई आप साथ फोटू खिचावै अर पछै दोनूं हाथां सूं इसारो करतो कैवै, ‘‘लेवो भाईसाहब !’’ आप ई धिंगाणै मुळक’र ऊथळो देवो, ‘‘हां लेवां नीं…..!’’

पण लेवणो इत्तो सोरो कद होवै बुफे सिस्टम में। कोई-कोई सो प्रीतिभोज होवै जठै कीं छीड़ दीसै नीं पछै घणकरी जिग्यां तो बेजां भीड़ लाधै। बस पूगतां लाई घरधणी स्टालां तो घणी लगावै, पण बठै तो सगळां नै मंगतै दांई उभो रैवणो पड़ै। थाळी रा तो सुपनां ई ना लेवो, प्लेटां है बठै तो….। आप ई चको अर लागो लैण में, केटरिंग करणिया कारिया मजूरिया ई कांई करै, जद बां रै सामीं अेकै सागै दस-दस हाथ मंडै, पैली म्हानै….पैली म्हानै….पैली म्हानै…….सबर कीं रै ई नीं। जे भीड़ खासा है तो मनवार री बात छोडो, आपरै जीमण में ई टोटा पड़ सकै !

थाळी रो जीमण अर मान मनवारां के छूटी, बां रै लारै लारै पुरसगारा अर जीमणियां री जमात ई खूटगी। जोधाणै अर बीकाणै रा जीमण चेतै करो दिखाण, पुरसगारां अर जीमणियां री होड़ लाग जावती कदेई। लाडू हो भलंई नुगती, सीरो हो भलंई लापसी, चक्यां हो का पछै कतल्यां, धामा रा धामा ई उंधाइजता थाळ्यां में….। ‘‘बस….बस…व्हा करो…व्हा करो…!’’ पण मनवार करणिया सुणै कद !

सुणै तो जीमणियां ई कोनी जे आपरी पर आ जावै। नोखै अेक अेढै पर जावणो होयो। सग्गी सौ बरस ले लिया हा, छोरां लारै खूब दाणो खिंडायो। मेळ रै दिन सग्गा परसंग्या में चरचा चाली, बीकाणै सूं फत्तू महाराज आया है, तकड़ा जीमारा है। म्हारै ई कौतक जाग्यो, देखां दिखाण कित्ताक जीमै। फतजी बोल्या, ‘‘म्हूं तो अेकलो जीमसूं, अबार डील में कीं सुस्ताई है।‘’
‘‘अेकला ई सही, थाळी तो बैठो आप !’’ पुरसगारां अरज करी। फतजी जाजम पर पळाथी मार’र बैठग्या। अेक पुरसगारै थाळी में मोतीपाक राखण री करी पण फतजी उण रो हाथ झाल लियो, बोल्या, ‘‘मीठो नंई, साग पूड़ी लावो।’ पुरसगारां सणै म्हानै ई लाग्यो, जिको जीमण रै सरू में ई चरको मांगै बो क्यांरो जीमारो। पुरसगारै घणी मनवार करी पण फतजी बोल्या, ‘‘जीमसूं तो आपरै हिसाब सूं…!’’ थाळी में दो पूड़ी अर ग्वारपाठै रो साग घला लियो। सगळां रो कौतक मिटग्यो। पण फतजी तो पूड़ी जिम्यां पछै पुरसणियै नै हेलो दियो, ‘‘ल्या भाया, अबै ल्या थारो मोतीपाक…!’’ पुरसगारो चार चक्की मेलण लाग्यो, तो फतजी उण नै टोक्यो, ‘‘धामा उंधा लाडी, आपणै सग्गा रो घर है……डरै क्यूं !’’ उण रै पछै तो जाणै फतजी में साखात हड़मान बाबो आयग्या होवै, गुलाबजामुन भेळै चक्यां अर कतल्यां री गिणती ई कोनी…। फगत जीभ रै इसारै सूं बां रा कवा कंठां सूं हेठै उतर रैया हा। आधै घंटै तंई म्हूं बान्नै डोभा फाड़्यां देखतो ई रैयो, सांचाणी तकड़ा जिमारा है फतजी तो….। छेवट बै ठम्या, पोतियै सूं माथै रो पसेवो पूंछ्यो अर साग पूड़ी री फरमाइस करी। दो-तीन पूड़ी भळै जिम्या अर हरिओम कैवता-कैवता चळू कर ली। म्हारै इचरज होयो, पगां लाग’र बान्नै बूझ्यो, ‘‘मायतां नमो है थान्नै ! जीमारा तो थे हो ई, पण सरू में आप साग अर दो पूड़ी जीमी अर पछै मीठै नै भचीड़ दिया, अबै छेवट जावतै फेरूं पूड़ी साग…ओ कांई राज है ?’’

फतजी, म्हारै खूंवै पर हाथ मेल’र किणी दार्शनिक दांई बोल्या, ‘‘लाडेसर, जे घणो जीमल्यां तो पछै कांई होवै ?’’
‘‘म्हानै कांई ठाह ! जीमै जको ई जाणै।’’ म्हूं कैयो।
‘‘कीं थे भी तो जाणो ! भई सीधी सी बात है, घणो जिम्यां का तो उल्टी आवै का पछै आदमी नीचौ सूं तरड़ै। फरज करो, म्हारै ई दोवां में सूं कीं हो जावै तो पैली कांई निकळसी ?……. पूड़ी अर साग ई नीं…..मीठो तो को जावै नीं…..राज ओ है मीठो सेफ रैवणो चाइजै।’’ बै मुळक्या अर आगै बधग्या। कोई के करल्यै…। जीमारां री आ जमात अबै देखण नै ई नीं लाधै।

लाधै तो अपणायत अर मनवार ई कोनी, क्यूं कैै आपां सै चातर होग्या। भाई बेली होवै चायै रिस्तेदार, आपां तो आपरो काम काढण सारू मुळकां, लल्लाचप्पी करां, जे अड़ी होवै तो पगचंपी ई करल्यां। पण मनवार तो हियै सूं उपजै, बठै चातरपणै रो काम ई कोनी। रूंख भायलै रै अेक गीत में इण बदळाव रो सांगोपांग चितराम निगै आवै-
कै मतलब री मनवारां करता पूं’चो झालै पकड़ आंगळी
मूंडै सामीं बाथां भेटां, पोत उघड़तां प्रीत पांगळी
बात-बात पर फुरता माथा, सिर पर पागां सजै कियां
थे थारै में म्है म्हारै में रीत प्रीत री बधै कियां…..
पण सांस है तो आस है, जीवां जित्तै निसांसा क्यूं पड़ां ! आज री हथाई रो सार ओ है, कै मिनख नै मौकै टोकै भाई बेल्यां साथै बैठ’र अेक थाळी जीमणो चाहीजै, मनवार करणी चाहीजै। हरख रा कवा लियां-दियां आपरी अपणायत तो बध ई सी, जियाजूण में हांसी खुसी ई बापरसी। इण सारू जीमता रैवो, मनवार रा कवा लेवता-देवता रैवो, बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बस्सो….।
-लेखक राजस्थानी और हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं
