




धीरेंद्र कुमार झा ‘धीरू’
मिथिला अदौसँ विद्वानक गढ़ रहल अछि। एतय पठन-पाठन, तर्क-वितर्क, सामाजिक, धार्मिक विषमताक प्रति विद्वानक मध्य शास्त्रार्थ मुख्य विषय छल। प्रारंभिक मध्यकालमे मिथिला बौद्धधर्मक संक्रमण सँ अछूत छल। दार्शनिक लोकनि मीमांसा स्कूलक अधीन अनेक संप्रदायक स्थापना केलन्हि। कुमारिल भट्ट सेहो एहि परंपराक अंग रहल छथि आओर बौद्ध धर्म तथा जैन दर्शनक विरोधमे कार्य केलन्हि। कुमारिल भट्टक जन्म तिथि आओर जन्म स्थानकेँ ल’ क’ विभिन्न मत छैक। मिथिलाक लोक हिनक जन्म मिथिलाक भट्टपुरा गाममे सातम सदीमे मानि रहल छथि। कहल जाइत छैक जे प्राचीन नाम अनलपुर आइ भट्टपुरा अछि। ब्रह्मपुरा- भट्टपुरा पंचायत, बिहारक दरभंगा जिलामे मनीगाछी प्रखंड में स्थित एकटा छोट गाम भट्टपुरा छैक। एहि गाममे मैथिली, हिन्दी, अंग्रेजी जान’ वला एवं लिख’ पढ़’ वला लोक छथि आओर मैथिली एत’ केर मुख्य भाषा छैक।

भट्टपुरामे हिनक डीह आइयो अछि। बर्ष 1993 ई० मे हुनके नाम पर ग्राम-द्वार बनयबाक हेतु पूरी पीठक शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी द्वारा शिलान्यास कएल गेल छल,से आइ निर्मित भ’ चुकल अछि। ई बात, मिथिलाक लोकक ओहि विश्वासकेँ पुष्टि करैत अछि। हुनक प्रसंगमे किछु संक्षिप्त जनतब एतय देल जा रहल अछि।

कुमारिल भट्ट मीमांसा दर्शनक भट्ट सम्प्रदाय केर संस्थापक छलाह, जे पूर्व-मीमांसाक क्षेत्रमे बहुत महत्वपूर्ण अछि। ओ वेदकें सर्वाेच्च प्रमाण मानलन्हि आओर सिद्ध केलन्हि जे वेद अपौरुषेय अछि। बौद्ध धर्म केर उत्थानक समय वेदक महत्ता कम होइत देखि ओ बौद्ध-मतक खंडन करबाक निश्चय केलन्हि आओर बौद्ध धर्मक आलोचना केलन्हि। मोक्ष केर साधनक रूपमे ओ कर्म आओर ज्ञान दूनूके महत्व देलन्हि, जाहिमे कर्म प्रधान अछि आओर ज्ञान सहकारी अछि ।

ओ अनेकानेक ग्रंथ लिखलन्हि जाहिमे ‘मीमांसा श्लोकवार्त्तिक’ आओर ‘तन्त्रवार्तिक’ प्रमुख अछि, जाहि सँ हुनक असाधारण पांडित्य आओर प्रतिभाक जनतब भेटैत अछि।

हुनक जीवन सँ जुड़ल किछु आओर बात। पारंपरिक वृत्तांतक अनुसार, कुमारिल केँ युवावस्था में बौद्ध धर्म मे दीक्षा देल गेलन्हि, परंच ओ हिंदू धर्ममे वापसी लेलन्हि आओर वैदिक धर्मक पुनरुद्धारमे महत्वपूर्ण भूमिका निभौलन्हि। हुनका मंडन मिश्रक गुरु मानल जाइत छन्हि, जे बादमे आदि शंकराचार्यक संग शास्त्रार्थमे प्रसिद्ध भेलाह। ओ अपन सम्पुर्ण जीवन वैदिक धर्मक रक्षा आओर ओकर प्रचार-प्रसार लेल समर्पित केलन्हि।

कुमारिलक मतानुसार संसारक उत्पत्ति आओर प्रलय नहि होइछ। जीवक जन्म-मरण चलैत रहैत छैक। परंच समग्र संसारक उत्पत्ति होइछ, न कि विनाश। न्याय दर्शन जकाँ ओहो ईश्वर के जगतक कारण नहि मानैत छथि। हुनका विचार में आत्मा नित्य तथा कर्ता आओर कर्म-फल-भोक्ता दूनू होइछ। वेदान्तक अध्ययन आओर चिन्तन मोक्ष प्राप्तिमे सहायक होइछ। मोक्षक स्थिति मंे सुखक सेहो अनुभूति नहि रहैछ, आत्मा दुरूख सँ पूर्णतः मुक्त भ’ जाइछ।

कुमारिल भट्टक अनुयायी अनेक आचार्य भेल छथि, जाहिमे मण्डन मिश्र, पार्थसारथि मिश्र, माधवाचार्य, खण्डदेव मिश्र आदि लोकनि बेसी प्रसिद्ध छथि। ई आचार्य लोकनि कतेको ग्रंथक रचना कए भट्टमतक प्रचार,प्रसार एवं संरक्षण केलन्हि।

आदि शंकराचार्य आओर मंडन मिश्रक शास्त्रार्थ वैदिक धर्मकेँ एकटा नव आयाम देलकैक। कोनो प्रकारक समस्याक निदान हेतु सभकेँ ओकर समक्ष जाए पड़इत छलैक। कुमारिल भट्टक समक्ष दुविधा छलन्हि। ओ बौद्ध मत के खंडन करबाक निश्चय केलन्हि, परंच एहि लेल हुनका बौद्ध मत सँ सम्बंधित ग्रंथक अध्ययन करबाक छलन्हि परन्तु हुनका लग बौद्ध ग्रन्थ उपलब्ध नहि छलन्हि। तैं अपन निश्चयकेँ कार्यान्वित करबाक लेल ओ श्रीनिकेतन नामक एक बौद्ध धर्माचार्यक शिष्य बनि बौद्ध मतक अध्ययन करय लगलाह।

पाँच वर्ष शिक्षाक उपरान्त ओ, अपन गुरु सँ आज्ञा लए अपन कर्म भूमि लौटि गेलाह। राजकीय महता दिएबाक लेल ओ राजा सुधन्वाक राज्य में गेलाह आओर राजा सेहो कुमारिल भट्ट केर नामक चर्चा सुनि चुकल छलाह। आओर ओहो हुनका सँ भेंट होयबाक इच्छुक छलाह। आकि एक दिन अवसर पाबि कुमारिल भट्ट राजा के ओतय जा पहुंचलाह। ओतय एकटा विशाल सभाक आयोजन भेलैक, आओर धुरंधर बौद्ध विद्वान लोकनि केँ बजा क’ शास्त्रार्थक आयोजन कएल गेल। एक दिस बौद्ध धर्माचार्यक विशाल सेना आ दोसर दिस अपन दल सहित आचार्य कुमारिल।

दर्शक व श्रोता सँ राज भवन भरल छल। शास्त्रार्थ आरम्भ भेलैक, दूनू दिस सँ तर्कक अस्त्र चलय लागल। बौद्धक वेद विरुद्ध तर्ककेँ कुमारिल खंडन केलन्हि आओर अपन पांडित्यक प्रदर्शन करैत वेदक सभ्यता, सत्यता, न्याय प्रियता, सद्गुण, कर्मवाद, कर्मफल, उपासना, मुक्ति तथा व्यक्तित्व वाद आदि केँ ओहि उत्तमता सँ सिद्ध केलन्हि जे हरेक व्यक्तिकेँ वेदक विमल मूर्तिक दर्शन होमय लागल। राजा सहित सभ लोक कुमारिलक विद्वता पर मोहित भ’ गेलाह। वैदिक धर्मक सिद्धान्त केँ स्थापित कए आचार्य, स्वयं छद्म भेषमे शिक्षा प्राप्त करब, तथा बौद्ध गुरु सँ छल करबाक कारण, तुषाग्नि में प्रवेश क’ लेलन्हि।
-लेखक मैथिली साहित्य व संस्कृति प्रेमी हैं



