‘बात तो ही…!’ ‘कागद’ नै याद करतां थकां

‘हेत री हथाई’ में आज ओळयूं आरसी रै सामीं म्हूं ओम जी रो ‘आंख भर चितराम’ हियै लियां उभ्यो हूं. ‘अंतस री बळत’ मांय अमूझतां म्हारा ‘सबद गळगळा’ होय रया है पण म्हानै लखावै कै ओम जी आपरै सुभाव मुजब ‘कुचरणी’ करतां थकां थापी देय’र कैय रैया है यार, ‘बात तो ही’. दरद अर पीड नै ‘पंचलड़यां’ में पोवणिया ओम जी ‘कागद’ ही इस्सी ओपती बातां बगतसारू कैवण रो गुर राखता.
डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख.

बात करो बात
पाणी री भांत
ज्यूं पाणी चालतो रैवै
बात चालती रैवै
ज्यूं पाणी थम्यां कादो बणै
बात थम्यां मिनख दूजां रो प्यादो बणै
इण सारू बात करो बात
पाणी री भांत….

‘हां, सांचई बात तो ही. नीं पछै आज घड़ी कुण बात करै बित्योड़ै बगत री, गयोड़ै मिनख री, कुण खन्नै बेल्ह है ओळयूं री आरसी साम्ही उभ्यो रैवण री ? बात हुवै तद ई बातां रा पानां फरोळिजै नीं पछै गांगरथ मांय सार ई कांई. बात रै पाण ई मिनख रो मोल हुवै नीं पछै उणनै प्यादो बणतां जेज ई कांई लागै.

आज घड़ी चिंता री बात आ है कै बात करणियां अर बात परोटणियां मिनख आपणै बिच्चाळै सूं लगोलग घटता ई जा रैया है. इणी कड़ी मांय अेक चावो-ठावो नांव ओम पुरोहित ‘कागद’ रो ई जा रळ्यो जिका भासा, साहित अर राजस्थानी संस्कृति रै बिगसाव सारू तो काम करयो ई पण मिनख अर मिनखपणो किंया जींवतो रैवै, इण दिस मांय ई आखी जूण खेचळ खांवता रैया.

ओम पुरोहित ‘कागद’ नै याद करां तो अेक धीर, गंभीर, जाणीजाण, पारखी अर हताईगर मिनख रो चौरो साम्ही आवै. पोथ्यां सूं प्रीत पाळतै ओम जी रै मुळकतै चौरै मांय अेक उजास साहित रै बिगसाव रो दीसतो तो मायड़ भासा राजस्थानी री मानता सारू चिंतीजती लकीरां ई सावै निगै आंवती. विसै भलंई कोई हुवै, ओम जी री दीठ सूं कदेई छान्नो नीं रैय सक्यो. बै माइक पकड़ता तो सगळा सुुणनियां-गुणनियां आपरा कान माण्ड लेवता. कलेक्टर सूं लेय’र बाबू तांई बांरी बातां ध्यान लगा’र सुणता जिण रो फगत अेक ई कारण हो कै बात ओम जी कैय रैया है. अेक ठौड़ बै क्रिकेट री बारीकियां पर बंतळ करता लाधता तो दूजी ठौड़ मिनखामोल री फाटती हुण्डी माथै बड़ी चतराई सूं ‘कुचरणी’ करता दीसता. कदेई बै ब्लैकबोर्ड माथै टाबरां नै भणावण सारू भांत-भांत रा चितराम कोरता तो उणी बगत इस्कूल रै मोटोडै़ कमरै मांय बडोड़ा टाबरां सूं राजस्थानी री राजमानता सारू प्रधानमन्त्री जी नै पोस्टकार्ड लिखवांवता ई लाधता.


ओम जी री साहित सेवा अर मायड़ भासा रै बिगसाव सारू बांरो सरावण जोग काम तो किणी सूं छान्नो नीं है पण म्हूं बांरै भायलपणै नै याद करूं तद आंख्यां मतई भरीज जावै. ओमजी म्हांसू दस-बारा बरसा मोटा हा पण तोई म्हारै बेलीपणै मांय उमर कदई आडी नीं आई. बांरै थकां जे कदेई किणी तरियां री संका का ब्याधी हो जांवती तो ओम जी उणरा खेवणहार हा. घर-परिवार री अबखायां बिच्चाळै छेकड़ बै अेक मारग सोध ई लेंवता.

ओम जी शिक्षा विभाग मांय चित्रकला रा मास्टर लागणै सूं पैली पत्रकारिता करया करता. साहित अर पत्रकारिता रो जबरो मेळ ओमजी री कलम मांय दिसतो. पोथ्यां सूं बान्नै घणो लगाव हो. आपरै कमरै मांय बांरो अेक मोटो पोथीखानो हो जिण मांय अेक सूं अेक सांतरी पोथी निगै आंवती. आं पोथ्यां बिच्चाळै ओम जी घणा सोरा रैवता. बां आपरै कमरै मांय अेक फोटू माथै सांतरो शेर लिख’र टंगाय राख्यो हो-

यूं ही न अपने मिजाज को चिड़चिड़ा कर लीजिए
बात कोई छोटी करे तो दिल बड़ा कर लीजिए.

इणी बडै दिल आळै ओमजी खन्नै नेडै़-तेडै़ सूं ई नीं आखै राजस्थान अर दूजै राज्यां सूं ई पत्र-पत्रिकांवां अर पोथ्यां पूग्या करती. बै सारी-सारी रात बैठया बांरै माथै आपरी कूंत रा कागद माण्डे राखता. दुर्गा कॉलोनी, हनुमानगढ़ जठै ओम जी रो रैवास हो, बठै रो डाकियोे सदांई केंवतो ‘भाईजी, किणी ओर री डाक आवो भलंई ना आवो पण ‘कागद जी’ डाक तो रोज आयां ई सरै.’
अेक दिन म्हूं ओम जी नै कयो- ‘डाक विभाग री सांचाणी सेवा तो आप ई लेय रया हो.’
बै मुळकता थकां बोल्या – ‘ थे ओ क्यूं भूलो कै मेल अर एसएमएस रै जुग मांय म्हारलै कागदां ई आंरी नौकरी बचाय राखी है.’ ओर तो ओर इणी मिस बां डाकियै माथै ई अेक ‘कुचरणी’ लिख मारी.

अेक दिन घर आवणआळी दूजी डाक भेळै ओम जी रो लिख्योड़ो अेक पोस्टकार्ड ई आ पूग्यो. अेक सै’र मांय होंवता थकां ई कागद रै मिस बात करां, आ बात म्हानै थोड़ी अपरोगी लागी. दूजै दिन जद बजार मांय ओमजी सांम्पड़दै मिलग्या तो म्हूं बान्नै इण बाबत पूछ्यो. ओमजी मुळक्या अर बोल्या ‘कागद री बात कागद रै मिस ई हुया करै’

ओम जी रै सम्पादन मांय छप्योड़ी चावी-ठावी पोथ्यां ‘थार सप्तक’ म्हूं जद-जद देखूं तो म्हनै राजस्थानी रै पेटै बांरी ‘अंतस री बळत’ अर हूंस चेतै आवै. बै राजस्थानी रै नूवां लिखारां रो कित्तो अर किण ढाळै होंसलो बधाया करता इण रो ठाह ‘थार सप्तक’ बांच्या लागै. म्हानै अजै तांई याद है कै पोथी ‘गम्योड़ा सबद’ बां म्हारै लारै पड़’र लिखवाई. अठै-बठै जूनी डायरयां अर पानां पर लिख्योड़ी म्हारी बांकी बावळी ओळयां नै बै सारी-सारी रात बैठ’र सुधारी. इत्तै सूं ई बस कठै करी, आप ई इण री भूमिका लिख’र छापैखानै पूगती कर दी. इण संग्रै मांय म्हारी अेक छोटी सी कविता ‘रामभगत हां म्हे/राम निकळयोड़ो है पण’ नै बै पोथी री ताकत बतांवता.

ओम जी जद अकादमी री पत्रिका ‘जागती जोत’ रा सम्पादक बण्या वां दिनां वांरी तबीयत कीं खराब रया करती पण तोई बै इण पत्रिका रै सम्पादन नै राजस्थानी भासा री सेवा अेक सबळो सिगो मान्यो. वां दिनां ‘जागती जोत’ रै लगै-टगै हरेक अंक मांय राजस्थानी री राजमानता सारू सम्पादकीय, बंतळ अर लेख छप्या करता.

उणी दिनां सियाळै री रूत मांय अेक दिन रात नै ग्यारा बज्यां आ’र ओम जी बारणो खुड़कायो. म्हूं उठ’र दरवाजो खोल्यो तो इचरज हुयो. बा’रली बैठक मांय बड़तां ई बोल्या ‘अेक का’णी रो उल्थो करणो है, पण उल्थो करणियै रो नांव कोनी देवां’. बिनां उथळै नै अडीक्यां बै चार-पांच कागद म्हारै हाथ मांय झला’र आगै बध्या-‘ल्यो, जनक जी पारीक री भोत जोरदार का’णी है ‘विमला इस वक्त कहां होगी’. आगलै अंक मांय छपणी है. पढेसरयां नै राजस्थानी रै सबळैपणै रो ठाह लागणो चाइजै. दूजी बात, जनकजी आजकलै राजस्थानी मांय कीं कमतर सो ई लिख रैया है, इण सारू बान्नै ‘मोटीवेट’ करणो जरूरी है.’

म्हूं बांरो मूण्डो जोवण लाग्यो. सियाळै री रात मांय जठै लोग बेगा साक रजाई मांय बड़नै री करै पण ओ आदमी रजाई री ठौड़ अेकां साथै राजस्थानी, जनकजी अर का’णी री चिंता मांय दुबळो हो’र दौड़्यो आयोे है. खैर, म्हूं म्हारै डोळ सारू का’णी रो उल्थो करयो.जागती जोत रै आगलै अंक मांय बा का’णी छपी अर खूब सराइजी. जनक जी का’णी रो उल्थो बांच’र घणा राजी हुया अर ओम जी री इण खेचळ नै घणी सराई.

राजस्थानी री राजमानता सारू ओम जी री खेचळ अणमोली है. सरकारू नौकरी मांय होंवता थकां ई बे आखै राजस्थान मांय आन्दोलन रा आगीवाण बण’र सगळां रो होंसलो बधाया करता. उतराधै सिंवाड़ै रै दोनूं जिलां हनुमानगढ़ अर गंगानगर मांय मायड़ भासा मानता आन्दोलन नै आगै बधावणै मांय ओम जी री महताऊ दीठ अर वांरो करयोड़ो काम अजै तांई साम्ही आवै. बातां रा पानां फरोळूं तो 2002 मांय म्हारै खन्नै अेक मारूति कार होंवती. म्है अर ओम जी लगैटगै ढाई बरस दोनूं जिलां रा छोटा-मोटा सगळा गांवां मांय मायड़ भासा मानता री अलख जगावण सारू फिरया करता. बां दिनां म्हे थावर-अदीतवार कदेई घरै नीं लाध्या. लाध्या तो किणी गांव मांय का पछै ढाणी मांय जठै बस किंयाई राजस्थानी री बात पूगै, आ लगन ओम जी रै रैंवती. म्हूं भलंई कदे टाळा-माळा कर देवंतो पण बै नीं चूकता. ‘दिन री चिंता न रातबासै री फिकर’. कांई ठाह कित्ताई पोस्टर, कित्ताई स्टीकर, कित्ताई बैनर ओम जी आप’रै हाथां सूं बणा-बणा’र गांवां मांय पूगाया. नोहर रा भरत ओळा ई कई बार म्हारै साथै राजस्थानी री मानता सारू कई गांवां रा गोता खाया. गंगानगर जिलै मांय केसरीसिंहपुर, करणपुर, गजसिंहपुर, सादूलषहर अर पदमपुर रो इलाको पंजाबी गिणीजै. पण ओम जी राजस्थानी री बात नै इण सावचेती अर सिगै सूं परोसता कै पंजाबियां नै ई मायड़ भासा री मानता रो हंकारो दिरा’र छोड़ता.

वां ई दिनां अेकर केसरीसिंहपुर सूं आंवता थकां ओमजी कयो ‘अबै राजस्थानी री मानता सारू कोई जबरो काम करणो पड़सी अर राज नै चेताणो पड़सी.’
‘कांई करणो है ?’ म्हूं बूझ्यो.
‘सुणो, आपां मायड़ भासा सारू आखै देस मांय अेक रथजातरा काढां’ ओम जी आपरी बात बताई.

बात म्हारै हियै ढूकगी. म्हूं उण बात नै आगै बधावण सारू सूरतगढ़ मांय मायड़ भासा हेताळुआं रो अेक सम्मेलन तेवड़ लियो जिण मांय सगळै राजस्थान सूं मायड़ भासा रा हेताळू पूग्या. नवम्बर, 2004 मांय तेवड़िज्यै इणी सम्मेलन मांय अेतिहासिक ‘मायड़ भासा सनमान जातरा’ री रूपरेखा बणाइजी अर डंकै री चोट त्यारयां होवण लागी. ओम जी 8 फरवरी 2005 नै सरू होवण आळी इण जातरा मांय जावण सारू घणा लाडां-कोडां त्यारी करै हा पण बिधना तो आपरा न्यारा ई रंग दिखाया. जातरा सूं ठीक पैली ओम जी रो अेक ई लाडेसर जोध जवान बेटो, ‘गौरू’ सड़क दुर्घटना मांय हरिसरण हुग्यो. बैमाता रै लेखां रो इस्यो काळूंठो रंग देख’र ओम जी मांय कीं बाकी नीं रई. म्हे सगळा ई सैंतरा-बैंतरा होग्या कै अबै के करां. इन्नै ‘मायड़ भासा सनमान जातरा’ री त्यारयां अर बिन्नैे ओम जी रै घरै खरड़ो. पांच-सात दिनां पछै जद ओम जी रै कीं चेतो बापरयो तो बै म्हानै बूझयो ‘जातरा री त्यारयां किंया चालै है ?’ म्हारो उतरयोड़ो मूण्डो देख’र बै बोल्या – ‘जातरा नीं टळनी चाइजै, ओ काम किंयाई हुवै सिरै चढावणो है.’ म्ह़ं बान्नै बांथां भर लिया अर दोनूं कांई ठाह कद तांई रोंवता रया. ओमजी री मनसा दांई 8 फरवरी 2015 नै अेतिहासिक ‘मायड़ भासा सनमान जातरा’ श्रीगंगानगर सूं सरू होई अर उणी दिन हनुमानगढ़ पूगी. जातरा रो रथ अर पन्दरा जातरू ओम जी रै घरां पूग्या. उण घड़ी सगळां रा हिया भरीजग्या पण ओमजी आंख्या पाणी नीं ल्याया. म्हारै कान्धै हाथ मेलतां थकां बां रथ सारै उभा रैय’र हेलो दिरायो-‘जै राजस्थान, जै राजस्थानी’. अर सगळा गळगळा होय’र बांरी हूंस नै निवण करयो. इण ढाळै रथ जातरा ओम जी रो होंसलो ले’र मायड़ भासा नै मान दिरावण सारू आगै बधी.
इस्सी अलेखूं बातां है जिकी ‘ओम जी’ नै ‘व्योम जी’ बणायो. वां ‘कागद’ पर सबद आखर नीं हियै री पीड़ अर अंतस री बळत उतारी ही जिकी जुगां-जुगां तांई मायड़ भासा रै हेताळुआं अर लिखारां साम्ही च्यानणोे करती रैयसी.
बात घणी अर रातां थोड़ी, ओळयूं रा चितराम मण्डै
‘कागद’ उतरै हियै आगणै, मायड़ रो सनमान बधै.
गळगळै सबदां सूं हियै ताणी निवण.
-लेखक सुविख्यात लेखक, साहित्यकार, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं

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