क्लास में थे मॉनिटर, गांव के हैं सरपंच

जिला परिषद व पंचायत समिति डायरेक्टर और सरपंच को पंचायतीराज का सशक्त प्रहरी माना जाता है। इनके सियासी सफर व जीवनक्रम को समझना जरूरी हो जाता है। लिहाजा, ‘ग्राम सेतु’ का नया कॉलम ‘पंचायतीराज के प्रहरी’ पाठकों के लिए मददगार साबित होगा। पहले एपिसोड में मिलिए….अमरपुरा थेहड़ी ग्राम पंचायत के सरपंच रोहित स्वामी से…..

ग्राम सेतु ब्यूरो. हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय के पास है ऐतिहासिक भद्रकाली मंदिर। मंदिर के सामने घग्घर पुल पार करते ही करीब 500 मीटर दूर गांव है जिसे अमरपुरा थेहड़ी कहते हैं। गांव की गली में प्रवेश करते ही एक युवक साइकिल पर घूमता नजर आता है। लोग उन्हें देखते ही ‘राम-राम सरपंच जी’ कहते हैं तो एक बारगी विश्वास नहीं होता। दरअसल, वे रोहित स्वामी हैं। गांव के सरपंच यानी अमरपुरा थेहड़ी ग्राम पंचायत के प्रहरी।
इसी गांव में महावीर प्रसाद स्वामी के घर जन्मे रोहित स्वामी पांच भाई-बहिन में चौथे नंबर पर हैं। साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले रोहित का बचपन बेहद संघर्षमय रहा है। सरपंच रोहित स्वामी ‘ग्राम सेतु’ से कहते हैं, ‘दसवीं की पढ़ाई के साथ-साथ कुल्फी की रेहड़ी भी लगाता था। भद्रकाली मंदिर गेट पर नारियल छिलने का भी काम किया। लेकिन सुकून है। मां भद्रकाली का आशीर्वाद मिला। आज जो कुछ मिला, मां का ही आशीर्वाद है।’

मॉनिटर से सरपंच तक का सफर
रोहित स्वामी में बाल्यकाल से ही नेतृत्व के लक्षण दिखाई देने लगे थे। जब वे आठवीं कक्षा में थे तो क्लास मॉनिटर की भूमिका निभाते। नेहरू मैमोरियल पीजी कॉलेज में दाखिला लिया तो छात्र संघ चुनाव आया। विद्यार्थियों ने अध्यक्ष पद के लिए इन्हें निर्दलीय मैदान में उतारा और रोहित स्वामी अच्छे वोटों से चुनाव जीतने में सफल रहे। कॉलेज में बतौर छात्र संघ अध्यक्ष रोहित का कार्यकाल यादगार माना जाता है। बाद में जब पंचायतीराज चुनाव आया तो ग्रामीणों ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए कहा। बकौल रोहित स्वामी, ‘मेरे पास चुनाव लड़ने के लिए कुछ न था। गांव वालों ने ही सारी व्यवस्था की। इतना समर्थन मिला जिसका बखान करना संभव नहीं।’
पढ़ाई से प्रेम
रोहित स्वामी को पढ़ाई से असीम प्रेम है। निजी कारणों से दो बार पढ़ाई छोड़नी पड़ी लेकिन पढ़ने के प्रति ललक ने उन्हें हर बार प्रोत्साहित किया और इस तरह रोहित स्वामी एमए करने के बाद अब लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं। वे इस वक्त एलएलबी फाइनल ईयर के स्टूडेंट भी हैं।
राजनीति में रुचि
राजनीति बचपन से भाती रही। रोहित स्वामी ‘ग्राम सेतु’ से कहते हैं, ‘छात्र संघ चुनाव जीतने के बाद सहयोगियों की उम्मीदें बढ़ गईं। एनएसयूआई में प्रदेश सचिव का दायित्व मिला। फिर सरपंच का आया। गांव के बुजुर्गों, युवाओं और माताओं-बहनों ने अपना आशीर्वाद दिया। सरपंच निर्वाचित हुआ। सरपंचों ने भी अपार समर्थन दिखाया और सरपंच एसोसिएशन में महासचिव की जिम्मेदारी दी। बहरहाल, सरपंच रोहित स्वामी क्रांतिकारी व जुझारू सोच के लिए युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं तो गांव के बुजुर्गों का लाडला बने हुए हैं। कहते हैं, ‘जन सेवा का कोई मोल नहीं। अगर हम किसी की समस्या के समाधान में काम आ जाएं तो इससे बड़ी बात और कुछ नहीं हो सकती।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *