बिज्जी: लोकरंग रा पारखी चितेरा (विजयदान देथा रै जलमदिवस री मौकै)

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आज ‘बिज्जी’ रो जलमदिन है। ‘हेत री हथाई’ में आज आपां राजस्थानी रै लोक चितेरै विजयदान देथा री बात करस्यां जिका राजस्थानी लोक साहित में ‘बातां री फुलवारी’ जेड़ै आपरै लूंठै काम सारू नोबेल पुरस्कार सारू नामित होया अर मायड़ भासा री ठसक सात समदरां तंई पुगाई।


डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’.
नांव तो वां रो विजयदान देथा हो पण वै ‘बिज्जी’ री ओल़खाण राखता। वां रो जलम 1 सितम्बर 1926 नै जोधपुर जिले रै बोरुंदा गांव में होयो। बिज्जी राजस्थान रा लोक विद्वान कोमल कोठारी साथै मिल’र बोरुन्दा में रूपायन संस्थान री थरपना करी। अठै वां लोक साहित्य रो चावौ अध्ययन करयो अर ‘बातां री फुलवारी’ उण प्रयोग रौ फळ है। ‘ ए लोककथावां 14 खंडां में छपी है। राजस्थानी साहित में लोककथावां पेटै करीज्यो वां रो काम घणो सरावण जोग है। हिंदी संसार में बरस 1979 में वांरौ कथा-संग्रै ‘दुविधा और अन्य कहानियां’ अनुवाद हुय’र पाठकां साम्ही आयो।
विजयदान देथा रो रचना-संसार हरमेस सामंतवाद रै प्रतिरोध में ऊभौ लखावै। वांरी रचनावां में एक गडरियो ई राजा सूं खारी मसकरी कर सकै। वां आपरै लोक में रचियोड़ी-बसियोड़ी धारणावां नै तोड़ी अर समाज री विडरूपता नै आपरै रचना-करम में परगट कीन्ही। ‘रूंख’, ‘अलेखूं हिटलर’, ‘बातां री फुलवारी’, ‘तीडो राव’ आद वांरी राजस्थानी पोथियां प्रकासित है। ‘बातों की बगिया’ ( बातां री फुलवारी का अनुवाद), ‘बापू के तीन हत्यारे’ (आलोचना), ‘साहित्य और समाज (निबंध), ‘सपनप्रिया’, ‘अन्तराल’, चौधरायन की चतुराई’ (कहाणी संग्रै) ‘महामिलन’, त्रिवेणी (उपन्यास) आद वांरी टाळवी पोथियां हिंदी में उल्था व्हियोड़ी है।
वांनै अलेखूं सम्मान मिळिया, जिणमें केंद्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय भाषा पुरस्कार, बिहारी पुरस्कार जेड़ा सम्मान सामल है। बरस 2007 में पदम् श्री अर 2012 में राजस्थान रत्न सूं ई बिज्जी आदरीज्या। 10 नवम्बर 2013 नै विजयदान देथा हरसरण होग्या पण वां री कलम रै जस जुगां तंई अमर रैसी। निवण रै पेटै अबै बांचो वां री कहाणी ‘मा’ –
आठ दिनां रै उपरांत मा री बरसती आंख्यां नै आज नीठ झपकी आयी। झपकी कांईं ही-बेचेतौ, थाकेलौ अर लाचारी। मूरछागत नींद में ई मां रा विलखा-विलखा दुमना होठ घड़ी-घड़ी मुळक सूं सैंचन्नण व्है जाता। जागती जूंण गम्योड़ा गीगला नै मां नींद रै सपनै पाछौ खोळै रमावती ही।
अणथक फांफ अर बौछाड़ रै थड्डै बारी रा भिड़्योड़ा फड़का फटाक करता रा खुलग्या। बीजळी किड़की। मां रै कमरै अेकर सळावौ नाचनै अलोप व्हैगौ। मां रै होठां वळै मुळक नाची, अबोट अर पवीत। जकौ फगत मां रै होठां ई छाजै।
बीजळी वळै अेक लांबौ सळावौ भर्याै। मां रै कमरै वळै मधरौ-मधरौ उजास नाच्यौ। बायरा री फांफ रै फटकारै मां रै मुळकतै उणियारै बौछाड़ रौ छाबकौ लाग्यौ। बैरण नींद कित्ती दोरी आई अर छिण में विलायगी। हळफळाय भचकै बैठी व्ही। सपना में हाथै लाग्योड़ौ गीगलौ वळै गमग्यौ। जीवता गीगला री मौत सूं ई औ धांमलौ मोटौ हौ। अबै माथौ उछाळणा में कीं खांमी नीं। कदास कमरा रै अंधारै चापळ्योड़ौ व्है! हाबगाब धूजतै हाथ खटकौ दबायौ।
डरपती आंख्यां कमरा में च्यारूंमेर भाळ्यौ। मुन्नौ व्है तौ दीसै! सिळगतौ उजास खाऊं-खाऊं उणरै डील बटका भरण लागौ। बिछावणै मीट अटकी, लीली मेम ऊंधी पड़ी ही। मुन्नौ अेक छिण सारू ई जिणनै आगी नीं करतौ। सूवती वेळा ई खाख में चिप्योड़ी राखतौ।
आज वौ ई मुन्नौ मां अर मेम दोनां सूं आंतरै ई आंतरै ढळग्यौ।
किड़किड़ाट करती बीजळी जोर सूं किड़की। वळै वायरा रै झपाटै फांफ आई। बिछावणै ऊंधी सूती मेम तरबतर व्हैगी। अर अठी मां री कुड़ती-कांचळी, हांचळां रिसतै दूध सूं तर-तर आली होवण लागी। उणरै माथा में जांणै ठौड़-ठौड़ अलेखूं कीडिय़ां री कुळबुळाट माची। आंगळियां कस्योड़ा बाळ वा जोर सूं तांण्या। वळै बीजळी किड़की। वळै सैचन्नण सळावौ भळक्यौ। पळ-पेंपरळां, पळ-पेंपरळां पांणी बरसण ढूकौ।
आखी कुदरत ई जांणै मां रा हेज माथै किड़किड़ाय धावौ बोल्यौ व्है। तड़ातड़ छांट-छांट रै समचौ मुन्नौ डुसक्यां भर-भर अरड़ावतौ व्है-‘मां, म्है भीजूं। म्हैं भीजूं।’
मां ताचकनै दोनूं हाथां मेम झांपी अर झरतै हांचळां चेपली। सूनै अडोळै बिछावणै वळै अेक बाछौड़ ताचकी।
मां बावळी उनमांन जागती वेली, ‘हित्यारा कंस, बरजतां-बरजतां म्हारा मुन्ना नै माडै खाडाबूच कर न्हाक्यौ अर म्हारौ कीं बस नीं पूगौ।’
लारलै सोमवार मां रै देखतां-देखतां मुन्नौ आंख्यां मीचली तौ ई उणरौ बस कठै पूगौ! बच्योड़ा चेता नै कोयां उतार वा टगमग-टगमग मुन्ना रै नैणां भाळती रीवी अर मुन्ना री आंख्यां अेकण ठौड़ पाथरगी। मां रौ हेज छाती फाड़-फाड़ कुरळायौ। दुनिया रै तमाम जीवधारियां रै अेकठ करार वा मुन्ना नै झिंझेड़-झिंझेड़ घणी ई कूकी, पण मुन्नौ नीं तौ अेकर ई पाछौ मुळक्यौ, नीं अेक पलक ई जोयौ अर नीं पाछौ अेक सांस ई लियौ। मां अरड़ा-अरड़ा बरकी अर मुन्नौ देखतां-देखतां अबोलौ व्हैगो।
तौ ई उणनै पतियारौ नीं व्हियौ के मुन्नौ समायगौ। पतियारौ करै जैड़ी बात ई नीं ही। मां रै खोळै मां रौ जायौ कीकर समावै! कांईं उणरै हेज रौ इत्तौ ई गाढ़ कोनी!
वा झांपळियां मारती रीवी अर लोग-बाग मुन्ना नै झेल वहीर होवण लागा तद वा कित्ता लालरिया लिया, कित्ता कळझळ कर्या के उणरै बेटा नै मत आंतरै ले जावौ। वा उणनै पाछौ जीवतौ कर देवैला। वा मां है। उणरै हांचळां रौ तूमार तौ जोवौ। मां रै सांम्ही मौत रौ कीं पसवाड़ौ नीं फिरै।
पण मौत रै सांम्ही मां रौ पसवाड़ौ नी फिर्याे। किण री जिनात के अंतस रौ धांमलौ अर आंख्यां रा आंसूं खोसनै आंतरै करै! बेटा रै समायां उपरांत ई वा उणरै सुख-दुख रौ वैड़ौ ई चेतौ राखती।
कड़-कड़ करती बीजळी वळै किड़की। जाणै मां रै अंतस री बळत बादळां घुळगी व्है। बिरखा री छांट-छांट सूं जांणै उणरौ झुरावौ गळ-गळनै झरै।
आखी दुनिया बोळी व्है तौ व्है, पण मां आपरै जाया री कुरळाट भलां कीकर सुणी-अणसुणी करै। बादळां री गाज, बीजळी री किड़किड़ाट, फांफ री फटकार, बायरा री सांय-सांय अर पांणी री तड़तड़ाट बिचाळै फगत मुन्ना रा डुस्किया सुणीजता-‘मां, म्हैं भीजूं। बचाव। बचाव।’ अरे! आ तौ साख्यात उणरै मुन्ना री बोली है।
मां रै हेज रौ जठै पसवाड़ौ नीं फुरै, उण सूं लांठी लाचारी दूजी कांईं व्है! रबड़ री मेम नै पाछी बिछावणै सूवाण वा झटौझट आडौ उघाड़्यौ। परनाळां पांणी ओसरतौ हौ।
बरसती आंख्यां वा बरसता मेह नै जोयौ। आ बैरण बिरखा तौ जुगानजुग नीं ढबणी। अणछक वा होठां ई होठां मुळमुळाई, ‘म्हारा लाडल, थनै भीजण सूं ढाबणौ म्हारै बस री बात कोनी। पण सूखी म्हैं ई नीं रैंवूला।’
अर दूजै ई छिण खुलै बाळां बारै आय वा खुली छात माथै ऊभगी। जांणै कोई पूतळी पगां हाली व्है। सळावा भरती बीजळी आवेस जोर सूं किड़की। पळ-पेंपरळां पांणी री सासती झड़ चालू ही। होडाहोड बादळा धावड़ता हा। वादौवाद बीजळियां कुरळावै ही। बिरखा री झड़ में छिण-छिण भीजती मां वळै मुळमुळाई-‘थूं भीजै तौ म्हैं ई भीजूं। दूजौ म्हारौ जोर ई कांईं!’
-लेखक राजस्थानी व हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक व जाने-माने पत्रकार हैं

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