एमएल शर्मा.
न्याय का मंदिर, न्यायपालिका। संविधान के रक्षण में सर्वाेच्च संस्था। जहां अन्याय से त्रस्त पीड़ित न्याय रूपी मरहम पाने की आशा में गुहार लगाते हैं। इसी न्यायपालिका पर पखवाड़े भर पूर्व लगे कथित आरोपों से समूचे सूबे ही नहीं देश भर में हड़कंप मच गया। मामला करौली जनपद के हिंडौन उपखंड में सामने आया जहां दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत बयान लेखबद्ध करवाने आई एक युवती ने मजिस्ट्रेट पर अशोभनीय भाषा का प्रयोग करते हुए लज्जा भंग करने के आरोप लगा दिए। सनसनी फैलना स्वाभाविक था और वह फैली भी। आरोप लगने के साथ ही पुलिस ने आनन-फानन न्यायिक मजिस्ट्रेट के खिलाफ भारतीय दंड संहिता व एससी एसटी एक्ट में अभियोग पंजीकृत कर लिया। विधिवेत्ताओं ने भी हरकत को शर्मनाक करार देते हुए प्रतिक्रियाएं दी। आरोपी जज का मीडिया ट्रायल आरंभ हो गया। टीवी चैनल पर, अखबारों में सनसनीखेज हैडलाइन आने लगी। उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार विजिलेंस ने हिंडौन जाकर आरोपी मजिस्ट्रेट से पूछताछ की तथा वकीलों से मजिस्ट्रेट के व्यवहार की जानकारी ली। उन्होंने पीड़िता से भी पूछताछ की। उधर पुलिस जांच जारी रहने के दौरान आरोपी जज का जयपुर स्थानांतरण कर दिया गया।
यकीनन, इस घटना से न्याय तंत्र की छवि धूमिल हुई, प्रतिष्ठा को आघात पहुंचा। आरोपी व न्यायिक सेवा से जुड़े लोग आहत हुए। तब हरकत में आई राजस्थान ज्यूडिशल ऑफिसर्स एसोसिएशन ने अध्यक्ष पवन गर्ग के जरिए ‘मी लॉर्ड’ का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय में आपराधिक रिट याचिका दायर की गई। याचिका के तथ्यों को देखें तो ‘खाकी’ एक बार फिर कटघरे में खड़ी दिखाई देती है। जिस मामले में पीड़िता बयान देने आई थी उसमें पुलिस ने जब कोई कार्रवाई नहीं की तो सामूहिक दुष्कर्म का मुकदमा अदालत के आदेश से ही दर्ज हुआ था। हैरानी की बात है कि गैंगरेप की प्राथमिकी दर्ज करने में जो पुलिस ढिलाई बरत रही थी उसी ने मजिस्ट्रेट के खिलाफ बिना किसी प्रारंभिक जांच के तत्काल प्रकरण दर्ज कर लिया।
गौर कीजिए, यौन उत्पीड़न के मामलों में जहां पीड़ित की पहचान उजागर नहीं करने के उपबंध है वहां पुलिस कप्तान पीड़िता के पुलिस बयानों का वीडियो व्हाट्सएप पर भेज रहे है। याचिका के अनुसार कथित घटना के दिन हिंडौन सिटी मुख्यालय पर एकमात्र यही मजिस्ट्रेट मौजूद थे। जिनके पास मुख्यालय के तीन अन्य न्यायालय व टोडाभीम के दो न्यायालय यानी 6 न्यायालयों का प्रभार था। सभी न्यायालय खुले थे जहां न्यायिककर्मी, पक्षकार व काफी संख्या में अधिवक्ता मौजूद थे। चेंबर भी न्यायालय कक्ष से स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे में एक प्रज्ञावान व्यक्ति ऐसी हरकत के बारे में सोच भी नहीं सकता। याचिका में बताया गया है कि 28 मार्च 2024 को हिंडौन वृताधिकारी व निरीक्षक गिरधर सिंह शाम के समय आए और केस डायरी रखते हुए आदेशात्मक लहजे में पीड़िता के बयान दर्ज करने को कहा। मजिस्ट्रेट ने तत्समय निर्णय की सवींक्षा करना व पत्रावली एवं प्रतिलिपियों पर हस्ताक्षर करना शेष बताते हुए आगामी कार्य दिवस को बयान लेने की बात कही। साथ ही समयाभाव के चलते पीड़िता को देने वाले निर्धारित ‘कूल डाउन’ का समय भी नहीं बचा था।
बस, पुलिस अधिकारी ने धमकी भरे लहजे में बडबडाते हुए देख लेने की बात कही। बेशक, इस मामले में ‘खाकी’ का जो रवैया रहा है उसे देखते हुए साजिश की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अपना ‘ईगो सेटिस्फाई’ करने के आशय से फ्रंट फुट पर खेली पुलिस लगातार उठ रहे सवालों से एकाएक बैकफुट पर आ गई है।
उधर, याचिका में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अनिल उपमन ने आपराधिक कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी। हालांकि याचिका में मीडिया को पक्षकार बनाया गया पर सूबे की शीर्ष अदालत ने प्रेस की स्वतंत्रता के मुद्दे पर कहा कि देश के संविधान ने प्रेस को अभिव्यक्ति व बोलने की आजादी का अधिकार दिया है। यद्धपि, इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया से याचिका के निस्तारण तक मामला सनसनीखेज तौर पर प्रकाशित व ना दिखाने की अपेक्षा की है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार, केंद्रीय सूचना व प्रसारण सचिव, सीएस, गृह सचिव, डीजीपी, करौली एसपी सहित पीड़िता को नोटिस जारी किए है।
देर सवेर सब हकीकत से रूबरू तो होंगे ही पर एक अधिकारी के चरित्र की हत्या तो हुई ही है, इसे नकारा नहीं जा सकता और नजरअंदाज करना सरासर गलत होगा। खैर, अनुसंधान में जो दोषी मिले उस पर कार्रवाई इतनी कड़ी हो जो भविष्य में नजीर बने।
-लेखक पेशे से अधिवक्ता हैं और समसामयिक मसलों के टिप्पणीकार भी।