‘विरह का सुल्तान’ बन गए शिव बटालवी

डॉ. एमपी शर्मा.
जब भी साहित्य प्रेम की बात करता है, वह अक्सर मिलने की मिठास में उलझ जाता है, लेकिन विरह की आग में तपी कविताएं किसी और ही लोक की रचना करती हैं। ऐसे ही एक लोक का जन्म पंजाबी कविता में हुआ, जहाँ प्रेम केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक गहराती टीस, एक अविराम प्रतीक्षा और आत्मा की चीख बनकर उभरा। इस लोक के अनकहे बादशाह थे, शिव कुमार बटालवी। वह सिर्फ कवि नहीं थे, एक यायावर आत्मा थे जो बिछड़न को गीत बनाकर दुनिया को सुनाते थे। जिनकी कविताएं किसी ठंडी छांव की तरह नहीं, बल्कि धधकती दोपहर, सूखे आँसू और अधूरे स्पर्शों की कथा थीं।
आज जब साहित्य में प्रेम अक्सर सतही हो चला है, शिव बटालवी की कविताएं हमें प्रेम के उस खोए हुए ताप की ओर ले जाती हैं, जो पाने से नहीं, खोने से जन्म लेता है, जहाँ प्रेम एक क्रांति है, विरह एक धर्म और कविता एक आत्मस्वर। यह आलेख, शिव की इसी विरह-यात्रा, उनकी कालजयी कविताओं और अद्वितीय काव्य-ध्वनि को समर्पित है, जो आज भी हर उस दिल में धड़कती है, जिसने सच्चा प्रेम किया… और खोया है।
शिव का जन्म 23 जुलाई 1936 को शकरगढ़ (पाकिस्तान के पंजाब) में हुआ था। विभाजन के समय जब लाखों लोग विस्थापित हो रहे थे, शिव का परिवार भी उनमें शामिल था। मात्र 10 वर्ष की आयु में, जब वह भारत आए, तो उन्होंने अपने ही देश में खुद को बेगाना पाया।
कहा जाता है कि जिस ट्रेन से वह आए, उसमें भीषण हिंसा हुई, और यह अनुभव उनके मन, आत्मा और लेखनी में गहराई से बस गया। यह बिछड़न और दर-ब-दरी ही उनके कवि-मन का बीज बना।


शिव बटालवी की कविताएं केवल पढ़ने या गुनगुनाने की चीज़ नहीं है, वे जीने, महसूस करने और बहने की चीज़ है। उन्होंने नाटकीयता नहीं रची, बल्कि सीधे दिल के भीतर उतरने वाले शब्दों से कविता को एक नया रूप दिया।
उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों की बानगी देखिए
इक कुड़ी जिदा नां मोहब्बत
इक कुड़ी जिदा नां मोहब्बत
गुम है, गुम है, गुम है
यह गीत अमर हो चुका है। इसमें उस लड़की की तलाश है जो प्रेम की प्रतीक है, जो समाज, भय, परंपराओं में खो गई।
माँ ए नी माँ मैं इक शिकरा यार बनाया
यहाँ एक प्रेमी की असहायता झलकती है, वह प्रेम करता है, पर प्रेम को बचा नहीं सकता।
भट्ठी वालिए चम्बे दी डालिए
भट्ठी वालिए चम्बे दी डालिए,
पीड़ा डा प्रागा भून दे
इस गीत में जमीनी लोकभाषा और जीवन का ताप है, जैसे किसान की भट्ठी में तपता प्रेम, जैसे किसी मासूम का जला हुआ मन।
की पूछ दे हो हाल फ़कीरा दा
साडा नदियों बिछड़े नीरा दा
जिन्हां दिलां दे जख्म नहीं सरदे,
की पूछदे हो हाल फ़कीरा दा
इस गीत में फकीरी, आंतरिक टूटन और उपेक्षा को अनूठे अंदाज में पिरोया गया है।
शिखर दोपहर सिर ते मेरा, ढल चलिया परछावा
यहाँ समय, उम्र, थकान और प्रेम के छूटते रंगों को गहरी प्रतीकात्मक भाषा में कहा गया है। यह व्यक्तिगत मृत्युबोध और थकान का गीत है।
कुछ रुख़ मेनू पुत्त लगदे ने
यह कविता एक विस्थापित आत्मा की पुकार है कृ जिसे पेड़ भी अपने पिता जैसे लगते हैं, जिनसे वह अलग हो गया है।
शिव बटालवी की सर्वश्रेष्ठ और सबसे प्रसिद्ध रचना “लूना” है। यह काव्यनाट्य पुराने लोककथा पर आधारित है जिसमें राजा, कन्या और समाज के बीच की जटिलता को आधुनिक दृष्टि से देखा गया है।


जहाँ परंपरागत कथा लूना को दोष देती है, वहीं शिव ने उसे पीड़ित, संवेदनशील और विद्रोही नारी के रूप में दिखाया। एक स्त्री जिसकी भावनाओं और इच्छाओं की हत्या कर दी गई। इसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला, और वे मात्र 28 वर्ष की उम्र में यह सम्मान पाने वाले सबसे युवा पंजाबी कवि बने। उन्होंने ही उन्हें “विरह का सुल्तान” कहा और यह उपाधि एक अमर पहचान बन गई। महान ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह उनके गीतों को बहुत पसंद करते थे तथा जब वे प्रसादी के शिखर पर थे तब उन्होंने शिव बटालवी के गीत गाने की इच्छा की थी.


सिर्फ 36 साल की उम्र में, 1973 में शिव बटालवी ने इस दुनिया को छोड़ दिया। लेकिन उनके गीत आज भी गाए जाते हैं, जैसे रूहों की पुकार, जैसे उस अधूरे प्रेम की गूंज जो कभी मरा ही नहीं। शिव की कविताएं प्रेम से अधिक विरह की कविताएं हैं। उन्होंने किसी खास शैली, परंपरा या बनावट को नहीं अपनाया कृ बल्कि अपनी अंतर्मन की पीड़ा को शब्द दिया। उनका साहित्य आज भी प्रेम करने वालों, टूटे दिलों और संवेदनशील आत्माओं के लिए मरहम है। हिंदी पाठक भी उनके गीतों में अपने जीवन का दर्पण देख सकते हैं।
शिव बटालवी केवल कवि नहीं थे, वे विरह की आवाज थे। उनकी कविताएं पढ़कर ऐसा लगता है जैसे हम किसी जख्मी आत्मा के कपंतल चंहमे पढ़ रहे हों। आज जब साहित्य में सतही प्रेम के गीत बहुतायत हैं, शिव की सच्ची, जली हुई, तप्त कविताएं हमें बताती हैं कि प्रेम सिर्फ पाने का नाम नहीं, बल्कि प्रेम में जलने और टूटने का नाम है।
-लेखक सीनियर सर्जन, सामाजिक चिंतक और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं

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