मिट्टी दी खुशबू: चोर की हामी भरे न कोइ

राजेश चड्ढ़ा
भारत दी पवित्र धरती ते बहोत सारे संत अते महापुरुख प्रगट होये हन, जिन्हाँ ने धर्म प्रति नफ़रत करण वाले मनुख विच अध्यात्मिक चेतना जगा के उस नूँ ब्रह्म मार्ग नाल जोड़ेया है। अजेहे ही इक अलौकिक अवतार गुरु नानकदेव जी हन।
1469 विच श्री गुरु नानकदेव जी इक ऐसे युग विच एस धरती ते आये जेड़ा इस देश दे इतिहास दे सबतों हनेरे दौराँ विचों इक सी। धर्म काफी लँबे वक्त तों थोथियाँ रस्माँ अते रीति-रिवाजाँ दे नाम तक सीमित हो गया सी। एह कुशासन अते अफरा-तफरी दा वेला सी। सामाजिक जीवन विच बहोत भ्रष्टाचार सन अते धार्मिक क्षेत्र विच नफ़रत अते टकराव दा दौर सी। कट्टरता अते दुश्मनी दी भावना पैदा हो गयी सी। उस वेले समाज दी हालत बहुत माड़ी सी।


इस वजहों श्री गुरुनानक साहिब हिंदू अते मुसलमानाँ विच इक सेतु दे समान हन। हिंदू उन्हाँ नूँ गुरु अते मुसलमान पीर दे रूप विच मनदे हन। हमेशा उच्चे-नींवे अते जात-पात दा विरोध करण वाले बाबा नानक कहँदे हन-‘नानक उत्तम-नीच न कोई’ यानी परमात्मा दी नज़र विच कोई छोटा-वड्डा नहीं। एह तद हो सकदा है जद मनुख रब्ब दा नाँ लैके अपणा अहंकार दूर कर लैंदा है। श्रीगुरुनानक देव जी इक अजेहे संत होये हन जिन्हाँ दी बाणी विचों हर वार प्रेम दा ही मंत्र निकलेया।
चोरु सलाहे चीतु न भीजै। जे बदी करे ता तसू न छीजै॥
चोर की हामी भरे न कोइ। चोरु कीआ चंगा किउ होइ॥


जेकर कोई चोर या खोटा बँदा किसे दी तारीफ़ वी करे ताँ उस नाल चँगे बँदे दा चित्त खुश नहीं हुँदा। जेकर चोर बुराई वी करदा है ताँ कोई घाटा वी नहीं हुँदा। चोर दी हामी कोई वी नहीं भरदा। चोर दा जमानती कोई वी नहीं हुँदा। जेड़ा कम चोर ने कीता है, ऊह कम सोहणा किंवे हो सकदा है?
सुणि मन अंधे कुते कूड़िआर। बिनु बोले बुझीऐ सचिआर॥ रहाउ॥
चोरु सुआलिउ चोरु सिआणा। खोटे का मुलु एकु दुगाणा॥
जे साथि रखीऐ दीजै रलाइ। जो परखीऐ खोटा होइ जाइ॥


हे अन्ने कुत्ते अते झूठे मन सुण- हरि दा सच्चा बँदा बिना कुज बोले ही सब कुज जाणदा है।
भाँवे कोई चोर किना वी सोहणा बण जाये या चालाक बण जाये, पर खोटा धोखेबाज़ ही रहेगा। नकली सिक्के दी कोई कीमत नहीं हुँदी। भाँवे खोटे सिक्के नूँ खरे सिक्केयाँ दे नाल रखिये या फेर उन्हाँ नूँ कट्ठेयाँ मिला देईये पर जद उसदी परख हुँदी है ताँ खोटा सिक्का खोटा अते खरा सिक्का खरा ही निकलदा है।
जैसा करे सु तैसा पावै। आपि बीजि आपे ही खावै॥
जे वडिआईआ आपे खाइ। जेही सुरति तेहै राहि जाइ॥


मनुख जिदाँ करदा है, ओदाँ ही उसदे नाल हुँदा है। मनुख आप ही बोंदा है अते आप ही उसदे फल खाँदा है। जेकर कोई खोटा मनुख आप ही अपनी वडेयायी करे ताँ वड्डा नहीं बण जाँदा। जिवें उसदी बुद्धि होवेगी, उसे तरहाँ उसदा रस्ता वी होवेगा। भाव एह है कि इस तरहाँ दा मनुुख अपणी बुद्धि दे अनुसार कम करेगा।
जे सउ कूड़ीआ कूड़ कबाड़ु। भावै सभु आखउ संसारु॥
तुधु भावै अधी परवाणु। नानक जाणै जाणु सुजाण॥


जेकर खोटा मनुख सौ झूठियाँ गलाँ करे अते बुरी वस्तुआँ नूँ चँगा बणा के दिखाये अते सारा संसार धोखा खाके उस नूँ चँगा कहे, पर ऐसा मनुख रहेगा ताँ खोटा ही। टूट्टियाँ फूट्टियाँ चीज़ाँ नूँ चँगियां बणा के बेचन दा कम करण वाले लोक कबाड़ी ही कहलाँदे हन। हे परमात्मा जेकर तैनूँ चँगा लगे ताँ अपूर्ण मनुख वी प्रामाणिक हो जाँदा है। हे नानक, परमात्मा त्रिकालदर्शी है अते सब कुज जाणदा है।
-लेखक जाने-माने शायर और आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक हैं

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