तीन नए कानून: बातें हैं बातों का क्या!

भारत में ब्रिटिश काल से लागू तीन महत्वपूर्ण अधिनियम भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को निरस्त करते हुए 1 जुलाई से इनके स्थान पर क्रमशः भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता व भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो जाएंगे। फिलहाल, हम हम भारतीय न्याय संहिता के बारे में चर्चा करेंगे

शंकर सोनी.
भारतीय न्याय संहिता में कुल 358 धाराएं रखी गई है। पहले भारतीय दंड संहिता में 511 थी। आईपीसी की 175 पूर्व की धाराओं में संशोधन किया गया है। नई संहिता में केवल 8 नई धाराएं जोड़ी गई है और 12 धाराओं को हटाया गया है।
इस कानून में कुछ मुख्य परिवर्तन की बात करें तो पाएंगे।
(1) वर्तमान में संगठित अपराधी भारत में अशांति पैदा कर रहें है। इनसे निपटने के लिए भारतीय न्याय संहिता में एक महत्वपूर्ण धारा 111 जोड़ते हुए लॉरेंस ग्रुप की तरह सिंडिकेट बनाकर संगठित रूप से अपहरण, डकैती, लूट, वाहन चोरी, भूमि हड़पने, सुपारी लेकर हत्या या अपराध करने, आर्थिक अपराध, साइबर अपराध, नशा, हथियार और मानव तस्करी, वेश्यावृत्ति के लिए महिलाओं की तस्करी के रोकने के लिए इसे नियंत्रित करने और ऐसे अपराधियों को सजा देने के लिए प्रावधान किए गए। ऐसे अपराधों में हत्या के मामले में अपराधियों को मृत्युदंड या आजीवन कारावास और 10 लाख अर्थ दंड के प्रावधान है। अन्य मामलों में कम से कम 5 वर्ष और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा के प्रावधान रखे गए हैं। ऐसी सिंडिकेट का साथ देने , उन्हें शरण देने को भी अपराध माना है। धारा 112 में संगठित छोटे अपराध जैसे चोरी, चेन खींचने, ठगी करना, ब्लैक में टिकट बेचना, शर्तें लगवाना, जुआ, परीक्षा पेपर बेचना, एटीएम आदि को मानते हुए ऐसे अपराधों के लिए कम से कम 1 वर्ष और अधिकतम 7 वर्ष की सजा रखी गई है।


(2,) यह एक खुला सत्य है कि विदेशी सहयोग से भारत में कुछ लोग व संस्थान निरन्तर भारत के हितों के विपरीत गतिविधियां कर रहे हैं और इस संबंध में खुफिया एजेंसी द्वारा बार-बार रिपोर्ट भी की जा रही है। इन गतिविधियां को नियंत्रित करने के लिए धारा 113 में भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता, भारत की सुरक्षा को खतरा बनाने वाली गतिविधियों, भारत के लोगों या विदेशी लोगों को बम, विस्फोटक , हथियारों आदि से आतंक फैलने वाली गतिविधियों को अपराध माना गया है। इस अधिनियम की धारा 152 के अंतर्गत भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता को मौखिक रूप से या लिखित शब्दों द्वारा या संकेत द्वारा या चित्रण द्वारा या सोशल मीडिया पर संचार द्वारा, वित्तीय साधनों के उपयोग से सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करना या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहन करने के अपराध के लिए आजीवन कारावास या 7 वर्ष तक के कारावास से दंडित किए जाने का प्रावधान रखा गया।
इस धारा में यह स्पष्ट किया गया है यदि ऐसी अभिव्यक्ति वैध साधनों से और सरकार के उपाय या प्रशासनिक या अन्य कार्यवाही के प्रति असहमति व्यक्त करने वाली टिप्पणियां है तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।


(2) भीड़ में हत्याओं के बढ़ते मामलों को नियंत्रित करने के लिए संहिता की धारा 113(2 )में मॉब लीचिंग यानी 5 व्यक्तियों के व्यक्तियों के समूह द्वारा नस्ल, जाति, धर्म भाषा, जन्म स्थान, लिंग के आधार पर की भी हत्या के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा रखी गई।
(3) महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से 16से कम आयु की महिला के साथ किए गए बलात्कार के लिए कम से कम 20 वर्ष के कठोर कारावास या आजीवन कारावास का दंड रखा गया है वही 12 वर्ष से कम आयु की महिला के साथ किए गए बलात्कार के लिए मृत्युदंड या 20 वर्ष के कठोर कारावास या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है।


कुछ कमियां: संसदीय समिति की सिफारिश के बावजूद भारतीय न्याय संहिता में गुदा मैथुन और जीव जंतु के साथ इंद्रिय भोग को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है। अलबता महिला के साथ गुदामैथुन को बलात्कार की परिभाषा में ले लिया गया है।
अब होगा क्या ? दरअसल, लोकसभा में 10 वर्ष के बाद विपक्ष आया है और विपक्ष द्वारा इस अधिनियम को लेकर संसद में हंगामा करना निश्चित है। संसद का कीमती समय बहस में नष्ट होना है। पुरानी भारतीय दंड संहिता में धारा 124 (ए) राज द्रोह पर पहले से ही विवाद था अब भारतीय न्याय संहिता में धारा 152 भारतीय एकता ,अखंडता और संप्रभुता को खतरे की स्थिति गंभीर अपराध माना है। विपक्ष इस पर लोकसभा में आपत्तियां करेगा और अमित शाह नई संहिता के स्पष्टीकरण को पढ़ेंगे।
यह आरोप राजनीतिक दलों के विरुद्ध भी लगेंगे परंतु विपक्ष तो विपक्षी है। यह भी महत्वपूर्ण है कि पुराने अधिनियमों में कुछ संशोधन करके कानून व्यवस्था को अच्छी तरह से सुधारा जा सकता था। नए अधिनियम में धाराओं का क्रम बदलने से वकीलों और जजों और पुलिस के समक्ष भारी समस्या रहेगी। लंबित मामलो में पुरानी संहिता लागू रहेगी। सरकार ने केवल नाम परिवर्तन कर गुलामी के अवशेष खत्म करने के मिथ्या मिथक के कारण अधिनियमों के नाम में परिवर्तन किया है जबकि पहले भी इनके हिंदी में नाम भारतीय दंड संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम भी था।


जरूरत यह थी: सबसे पहले अंग्रेजों के जमाने के पुलिस अधिनियम 1861 को बदलकर नए अधिनियम बनाकर भारतीय पुलिस को जनता के प्रति जिम्मेवारी सौंपने की। पर यह न तो कांग्रेस ने किया और न हीं बीजेपी करेगी और ना ही कोई और सरकार करेगी क्योंकि सरकारों को संवैधानिक संस्थाओं को अपनी मुठ्ठी में रखना है। केवल कानून बनाने से अपराधों पर नियंत्रण नहीं होता, कानून को सही रूप से लागू करने होता है। आवश्यकता है आम जनता में नागरिक बोध और व्यवस्था प्रिय बनाए जाने की। अब तैयार रहें, इन पर संसदीय चर्चा के लिए।
-लेखक कानूनविद् एवं नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक हैं

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