मिट्टी दी खुशबू: रमता जोगी

राजेश चड्ढ़ा.
भावनावां दा जल, संगीत दे झरने विचों वगदा है अते बहुत सारे खोजियाँ नू हड़ दे के शीतलता प्रदान करदा है। सँगीत किसे वी किस्म दा होवे उसदा उद्देश्य सिर्फ़ मनुखी भावनावाँ नूँ दूजे लोकाँ दे दिलाँ दियाँ ढुँगाइयाँ तक लै जाणा है। अजेहे ही सुरीले अते बहुमुखी पँजाबी लोक कलाकार सन हज़ारा सिंह रमता। जिन्हाँ नूँ उन्हाँ दे विनोदी गीताँ लयी याद कीता जाँदा है।
हज़ारा सिंह रमता दा जन्म 1 अगस्त 1926 नूँ पँजाब दे साहीवाल (हुण पाकिस्तान विच) विच इक ज़मींदार परिवार विच होया सी। उन्हाँ दा परिवार खेती-बाड़ी करके अपना गुज़ारा करदा सी। रमते नूँ शुरू तों ही गौण दा शौक सी। एह वेख के रमते दे बापू जी ने केहा- ऐस भिखारी ने की काम लित्ता है? जे गौणा ही है ताँ कीर्तन गाओ। बस फेर की सी, रमते ने इक समर्पित पुत्तर वाँग कीर्तन सिखना शुरू कर दिता अते इमाम ख़ान साहब दे शागिर्द बन गये, जो भक्त मरदाना दे परिवार नाल सँबधित सन।
उस पिंड दे मुस्लमान परिवार अपने पुत्तराँ नूँ स्कूल दे बाद अलीगढ़ भेजदे सन। वेखो-वेख दसवीं जमात पूरी करन तों बाद, नौजवान हज़ारा सिंह गिल ने अपने पिता नूँ भरोसा दिवाया कि अलीगढ़ विच उच्च शिक्षा प्राप्त करके, मैं डी.सी. दी डिग्री प्राप्त कराँगा। बापू ने तमाम मुश्किलाँ दे बावजूद अपने पुत्तर नूँ अलीगढ़ भेजेया।


रमता अलीगढ़ यूनिवर्सिटी नूँ पढाई लयी नहीं, सगों प्रेम- मोहब्बत दी जगह मनदे सन। एह ओ थाँ सी जित्थे उन्हाँ नूँ कविता दा शौक़ पैदा होया। एत्थे ही उन्हाँ ने बी.एससी. दी परीक्षा पास कीती। बाद विच उन्हाँ ने बनारस तों संगीत विच बी.ए. कीती अते प्रो. निहाल सिंह श्रासश् ज्ञानी कॉलेज, अमृतसर तों ज्ञानी दी परीक्षा पास कीती। इस तों बाद उन्हाँ ने कुज साल फौज विच वी बिताए। ड्यूटी दे दौरान कयी साल ईरान विच रहे। कॉलेज विच पढ़ी फ़ारसी भाषा एत्थे बहुत काम आयी। उन्हाँ दिनाँ विच हज़ारा सिंह गिल इक पगड़ीधारी सिख सन।
देश दी वँड तों बाद, 1947 विच उन्हाँ दे परिवार नूँ लुधियाना दे नेड़े जमालपुर पिंड विच ज़मीन अलाट कीती गयी पर हज़ारा सिंह गिल दिल्ली विच वस गये। दिल्ली औण तों बाद उन्हाँ ने अपनी रोज़ी-रोटी लयी वखरे-वखरे कयी काम कीते। एत्थे उन्हाँ दी मुलाक़ात ‘बरकत पँजाबी’ अते ‘तेजा सिंह सब्बर’ वरगे कवि मितराँ नाल होयी, जिन्हाँ तों उन्हाँ नूँ ‘रमता’ उपनाम मिलेया।
शुरू विच रमता सिर्फ़ कवि दरबाराँ विच ही कवितावाँ सुनौंदे सन। पंजाबी कविता लयी रमता भाई ईशर सिंह ईशर नूँ अपना गुरु कहँदे सन अते उर्दू कविता लयी कम्बक पन्ना लाल ‘दिलबर’ उन्हाँ दे उस्ताद सन। कवि ईशर सिंह ‘ईशर’ दे बाद, रमता ने स्टेज दे कवि वजहों हासे अते व्यंग्य राहीं श्रोतेयाँ नूँ जोड़े रखेया। रमता ख़ुद गीत लिखदे अते उस नूँ सरल अते सहज शैली विच जोड़दे सन।


उन्हाँ दे हास-गीत कहावताँ, सूक्तियाँ अते बिम्बाँ नाल सजे होंदे सन। उन्हाँ दी आवाज़ विच जट वरगी कठोरता अते तिखापन रमते नूँ कवियाँ विच विलखन बनौंदा सी। रमते नूँ एह दसन दा बहोत शौक सी कि उन्हाँ ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी तों बी.एस.सी. पास किती है। उन्हाँ दे कार्ड उत्ते वी एही लिखेया रहँदा सी। उन्हाँ दे प्रशंसक अक्सर उन्हाँ दे गीताँ दे किरदार अते उन्हाँ दे अपने स्टेज पहरावे नूँ वेख के हैरान हुँदे सन, कि इन्ना सादा जटट् किंवे पढे़या-लिखेया हो सकदा है?
उन्हाँ ने 1954 विच दिल्ली विच उस्ताद लोकगायक लाल चंद यमला नूँ गौंदे वेखेया। रमते नूँ उन्हाँ दी तूम्बी शैली बहोत पसंद आयी अते उन्हाँ ने वी अपनी गायकी विच तूम्बी नूँ शामिल कर लेया। हास कवितावाँ गौन दी उन्हाँ दी एह अनूठी कला एत्थों ही जन्मी। उन्हाँ ने पहली वार दिल्ली दे इक रेडियो स्टेशन ते श्जुगनीश् गायी।
हौली-हौली रमता लोकाँ विच, खासकर कॉलेज दे नौजवानाँ विच, प्रसिद्ध हो गये।


हिज़ मास्टर्स वॉयस कंपनी ने 1956 विच उन्हाँ दा पहला रिकॉर्ड ‘लंदन दी सैर’ रिलीज़ कीता। इसदे नाल ही रमते दी प्रसिद्धि होर वध गयी। रमते ने 1960 दे दहाके विच शुरू होयी अपनी गायकी कारण आजीवन प्रसिद्धि प्राप्त कीती।
कुज समय बाद ही रमते नूँ मशहूर पंजाबी गायिका प्रकाश कौर दा साथ मिलेया अते उन्हाँ ने स्टेज ते उन्हाँ दे नाल गौना शुरू कर दिता। कनाडा औन तक रमता ते प्रकाश कौर नाल-नाल परफॉर्म करदे रहे।
कई देशाँ विच सफलतापूर्वक स्टेज शो करन तों बाद, रमता कनाडा चले गए अते टोरँटो दे नेड़े ब्रैम्पटन विच वस गए। रमता ऊर्जा नाल भरपूर, हँसमुख, मेहमाननवाज़, सादा अते ज़मीन नाल जुड़े होये सन।
रमते दे सारेयाँ गीताँ विच रोज़मर्रा दी ज़िंदगी दियाँ सच्चाइयाँ समाइयाँ होइयाँ सन। रमता नूँ उन्हाँ दे अजेहे सोलो गीताँ लयी याद कीता जाँदा है, जिस विच शामिल हन-रमता एक्टर हो गया, रमता अफ्रीका विच, रमता भुलेखा खा गया, रमता बॉम्बे विच, रमता मेमाँ विच, रमता नवीं दिल्ली विच, रमता शहर विच, रमता टेशन ते। रमते ने जद श्रमते दा दूजा व्याहश् गीत गाया, उस वेले तक उन्हाँ दा व्याह वी नहीं होया सी।


इक सच्चे पँजाबी लोक कलाकार दी इस स्थायी विरासत दी सूची बहोत लँबी है।
1992 विच सिर विच खून का थक्का जम जान दी वजहों रमता बहोत ज़्यादा बीमार पै गये। कुज समय लयी उन्हाँ दी दिमागी हालत वी बिगड़ गयी सी। उस वेले उन्हाँ ने बाहर जाना तकरीबन बंद कर दिता सी।
दरअसल, कनाडा औण तों बाद,रमता ज़्यादा स्टेज प्रोग्राम नहीं कर पाये। टोरँटो दे इक पेट्रोल पंप ते काम करन दे बाद, उन्हाँ ने मैकेनिकल इँजीनियरिंग कीती। उन्हाँ ने 20 साल तों वी ज़्यादा समय तक टैक्सी चलायी। रमता कहँदे सन-मैनूँ टैक्सी चलौन विच मज़ा औंदा है। जद मन करदा है, मैं खड़े-खड़े सो जाँदा हाँ। जद गीत लिखन दा मन करदा है, ताँ मैं गीत लिख लैना हाँ। पर स्टेज ते पूरा मान अते सम्मान न मिलन वजहों रमता निराश हो जाँँदे सन अते उन्हाँ नूँ भारत विच मिलन वाली इज्जत याद आ जाँदी सी।


रमता अपनी गल-बात विच ‘फिट’ अते ‘ट्यूनफुल’ शब्दाँ दा खूब इस्तेमाल करदे सन। एह शब्द उन्हाँ दी गल-बात दा इक हिस्सा बन गये सन। जेकर दाल स्वाद हुँदी ताँ कहँदे- बाई दाल बहुत ट्यूनफुल है या फलाँ अते फलाँ दी कहानी फिट है।
रमता दा अखीरी गीत सी ‘रमता रब्ब कोले’। इस विच उन्हाँ ने अपनी मौत दे बारे लिखेया अते गाया सी। 53 साल कनाडा विच गुज़ारन दे बाद हजारा सिंह रमता 91 साल दी उम्र विच 6 सितंबर 2017 नूँ इस दुनिया तों सदा-सदा लयी विदा हो गये।
हज़ारा सिंह रमता पँजाबी सँगीत दी दुनिया विच रमे होये इक जोगी सन, इस वजहों उन्हाँ दी कला अते प्रतिभा दा वर्णन करना मुश्किल है, क्योंकि रमता कई शैलियाँ विच माहिर सन, जिन्हाँ विचों हर इक शैली नूँ उन्हाँ ने सरल अते उत्तमता नाल पेश कीता। बेशक, हज़ारा सिंह रमता सबतों पहले अते सबतों खास लोक गायक अते लोक कवि सन।
-लेखक जाने-माने शायर और आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक हैं

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