पत्थरों को थपथपाने पर आती है ‘डमरू’ की आवाज

राजकुमार सोनी.
हिमाचल प्रदेश यानी देवभूमि। पहाड़ों की गोद में बसे स्वामी कृष्णानंद परमहंस की तपोस्थली ‘जटोली’ स्थित सोलन भगवान शिव का भव्य मन्दिर। इस मन्दिर की नींव स्वामी श्री कृष्णानंद परमहंस ने 1974 में रखी थी। हरियाणा से आए कारीगरों ने नक्काशी के जरिए इसकी आभा पर चार चांद लगा दिए। नक्काशी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके निर्माण में करीब 39 साल लगे। करोड़ों रुपए की लागत से बने इस मंदिर की खास बात यह है कि यह देश-विदेश के भगवान शिव में अगाध श्रद्धा रखने वाले श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान के पैसों से बनवाया गया है। इसमें विभिन्न देवी देवताओं के मूर्तियों के अलावा मंदिर के गर्भ गृह में स्फटिक मणि शिवलिंग स्थापित है। स्फटिक मणि को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। यह पत्थर सबसे पहले भगवान सूर्य की किरणों को अपनी ओर आकर्षित करता है और आसपास सकारात्मक ऊर्जा बिखेरता है।


मंदिर के ऊपर छोर पर 11 फीट ऊंचा एक विशाल स्वर्ण कलश स्थापित किया गया है, जो इसे बेहद खास बना देता है। पुजारी ने बताया कि जटोली नाम भगवान शिव की लंबी जट्टा (बाल) के कारण पड़ा।
इस मंदिर का भवन निर्माण कला का एक बेजोड़ नमूना है, जो देखते ही बनता है। दक्षिण की द्रविड़ शैली में बना हुआ 122 फुट ऊंचा भव्य मंदिर वास्तुकला और लगातार तीन पिरामिड से बना है, पहले पिरामिड में भगवान गणेश की छवि देखी जा सकती है जबकि दूसरे पिरामिड पर शेषनाग की मूर्ति है। मंदिर के अंदर एक गुफा बनी हुई है। कहा जाता है जिसमें मंदिर की नींव रखने वाले स्वामी कृष्णानंद परमहंस रहते थे, अब वहां उनकी समाधि और उसी के ऊपर स्वामी जी की भव्य प्रतिमा लगी हुई है। उनकी मूर्ति के ऊपर हंस रूपी मंदिर बनाया गया है। मंदिर में लगे हुए पत्थरों को थपथपाने से डमरू की आवाज आती है। इसे एशिया का सबसे ऊंचा मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को लेकर मान्यता यह है की पुरातन काल में भगवान शिव यहां आए और कुछ समय यहां रुके भी थे।

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