एमएल शर्मा.
आप सच्ची श्रद्धा से मन्नत का धागा बांधिए, समझिए मनोकामना पूर्ण। सर्वप्रथम यहां धोक लगाकर कार्य करें, सफलता झक मारकर आएगी। जी हां, हम बात कर रहे हैं 431 साल का इतिहास समेटे हनुमानगढ़ जिले के रावतसर स्थित बाबा खेतरपाल मन्दिर की। यहां उमड़ता आस्था का सैलाब जनमानस को आल्हादित करता है। कस्बे के ‘धणी’ यानी मुखिया कहे जाने वाले बाबा खेतरपाल जी के चमत्कारों के कारण इनकी ख्याति पूरे देश में व्याप्त है। श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर प्रसाद, तेल, सिन्दूर आदि अर्पित करते है। वहीं उबले चने (बाकळे) व अमर बकरे भी बाबा के दरबार में भक्त भेंट करते है।
मुख्य पुजारी भंवरसिंह सुडा राठौड़ ने बताया कि इस मन्दिर की स्थापना वर्ष 1593 मे रावत राधोदास जी ने की थी। सन 1593 मे रावत राधोदास जी बीकानेर के राजा रायसिंह के साथ सेना लेकर दक्षिण भारत मे गये थे। वहां भयंकर अकाल पड़ा हुआ था। सेना सहित सभी दाने-दाने को मोहताज हो गये थे। राजा व सैनिक एक दूसरे से बिछुड़ गए। राजा रायसिंह व राधोदास को जगंल में टीले पर एक कुटिया नजर आई। दोनों उस कुटिया की ओर चले तो कुटिया के आगे एक श्वान बैठा दिखाई दिया। दोनों को देख कर उसने कान फड़फडाये तो कुटिया के अन्दर ध्यान मुद्रा मे बैठे महात्मा ने दोनों को कुटिया के अन्दर बुला लिया। महात्मा ने उनसे जंगल मे आने का कारण पूछा तो राजा रायसिंह ने सारी बात बताई। सब जानकर महात्मा जी ने अपने कमण्डल की तरफ इशारा कर कहा कि इस कमण्डल मे पानी है। दोनो पी लो। राजा रायसिंह ने सोचा कमण्डल के अल्प जल से प्यास कैसे बुझेगी। महात्मा जी ने फिर कहा कि कमण्डल से पानी पी लो। राजा व राधोदास जी ने उस कमण्डल से पानी पीकर अपनी प्यास बुझा ली। फिर देखा कमण्डल मे उतना ही पानी विद्यमान है। तभी महात्मा जी ने राजा से कहा कि बाहर जा कर आवाज लगाओ तुम्हारी सेना भी आ जाएगी। राजा ने बाहर जाकर सेना आवाज लगायी तो चारों तरफ से सैनिक आने लगे। महात्मा की सिद्धि जानकर राजा ने अपनी व सेना के भूखे होने की बात बताई तो महात्मा जी ने कहा कि कुटिया मे भोजन रखा है, सभी खा लो। राजा ने देखा कि एक थाली मे थोड़ा सा भोजन है, सभी कैसे खाएंगे? लेकिन चमत्कार के चलते पूरी सेना ने आराम से भूख मिटाई। उस दौरान इस इलाके में भूखमरी फैली हुई थी।
राजा व रावत ने महात्मा जी से साथ चलने का आग्रह किया। महात्मा जी बोले कि मेरे 52 रूप है। मैं सभी को खाना खिलाता हूं। राजा रायसिंह व रावत राधोदास के अधिक निवेदन करने पर महात्मा जी बोले अगर आप मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाओ तो ले चलो। ध्यान रहे, बीच रास्ते मे मुझे कहीं उतार दिया तो आगे एक कदम भी नहीं बढ़ाऊंगा। राजा व रावत ने उनकी शर्त मान कर उन्हे अपनी पीठ पर बैठा लिया। रावतसर क्षेत्र की सीमा के पास आकर राजा ने महात्मा जी को उतार दिया व उनके लिए उचित स्थान देखने के लिए चल पड़े। वापस आकर महात्मा जी ने को गढ ठिकाणे चलने का निवेदन किया तो महात्मा जी ने इंकार करते हुए कहा कि मैं यहां रहकर क्षेत्र की रक्षा करूंगा। तब राजा रायसिंह व रावत राधोदास जी ने महात्मा जी से कहा कि यहां भूखमरी बहुत अधिक है। दंतकथा के अनुसार महात्मा जी ने उन्हें मुट्ठीभर अनाज देते हुए कहा कि गढ के कड़ाहे मे इस अनाज को पका कर उपर कपड़ा डाल देना और कपड़े को सिर्फ इतना ही हटाना जितने से अनाज निकाला जा सके। फिर गढ ठिकाने पर चढ कर भूखों को खाने के लिए आवाज लगा देना। कहते है आजादी के बाद तक यह परंपरा कायम रही। बालरूप महात्माजी का नाम क्षेत्रपाल महाराज पड़ा जो कालांतर में खेतरपाल जी महाराज के नाम से मशहूर है। बाबा के चमत्कारों की ख्याति दूर दराज तक फैल गई।
आज इस क्षेत्र मे सालभर तीन बड़े मेले माघ, चैत्र व अश्विन मास में लगते है। बाबा के पुजारी राजेन्द्रसिंह, भूपेंद्रसिंह राठौड़ ने बताया कि उनके वंशज मन्दिर स्थापना के समय से ही बाबा खेतरपाल जी महाराज की पूजा अर्चना कर रहे है। जब इस मन्दिर की स्थापना हुई तब बियाबान इलाका था। बाबा का छोटा सा मन्दिर था जहां उनके वंशज प्रतिदिन दीपक जलाकर पूजा करते थे। तब से आज तक इस मन्दिर मे तेल का दीप 24 घण्टे नियमित जलता रहता है। वहीं मन्दिर परिसर में मालासिंह जी, भैरू जी, कोडमदेसर जी, तौलियासर भैरूजी, चलकोई जी, चोटिया जी व सात मावड़िया जी के छोटे मन्दिर बने है। परिसर में लगे ‘जाल वृक्ष’ पर लाल मोली का धागा बाधं कर मनोकामना पूरी होने के लिए खेतरपाल जी से विनती की जाती है तथा मनोकामना पूरी होने के बाद मोली के धागे को खोला जाता है। कहते तो है ही अनुभव भी किया है कि कलयुग में खेतरपाल दादोसा की कृपा का कोई सानी नहीं है।
–लेखक पेशे से अधिवक्ता हैं और यह आलेख दंतकथाओं और मान्यताओं पर आधारित है
इतनी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार