वाचस्पति मिश्र: जिनका डीहक माटि पर भट्ठा धेने रहथि महाराजा कामेश्वर सिंह!

धीरेंद्र कुमार झा ‘धीरू’.
वाचस्पति मिश्र, जनिका वृद्ध-वाचस्पति वा वाचस्पति प्रथम सेहो कहल जाइत छन्हि, नौमी-दसवीं सदीक अद्वैत वेदांत परम्पराक भारतीय दार्शनिक छलाह। ओ ओहि समयक लगभग सभ हिंदू दर्शनक मुख्य ग्रंथ पर भाष्य लिखलन्हि आओर शंकराचार्यक विचारकेँ मंडन मिश्रक विचार संग सामंजस्य स्थापित केलन्हि। मीमांसा सिद्धांत पर केन्द्रित व्याकरण पर एकटा स्वतंत्र ग्रंथ ‘तत्वबिंदु’ सेहो लिखलन्हि।


वाचस्पति मिश्रक जन्म बिहार राज्यक मधुबनी जिलांतर्गत अन्हराठाढी‌ गाम में एकटा मैथिल ब्राह्मण परिवार मे भेल छलन्हि। हुनक पत्नीक नाम पर एखनहु ओतए पोखरि छैक जकर भीड़ पर हुनक डीह मानल जाइत छैन्ह। ओना कियो मकरंदा वा बडागाँव त’ कियो भामा सेहो हिनक जन्म स्थान मानैत छथि परंच सर गंगानाथ झा एवं डॉ. उमेश मिश्रक अनुसार हुनक जन्म स्थान अन्हराठाढी‌ये छन्हि। एखनहु हुनक डीह पर लोक अपन बच्चाकेँ अक्षरारम्भ करबैत अछि।


कहल जाइत छैक जे दरभंगाक महाराजा कामेश्वर सिंह सेहो ओहि माटि पर भट्ठा धेने रहथि। हुनक जन्मस्थान पर दूटा पोखरि ‘मिसराईन’ आ ‘बचाही’ मिसाएल अछि। गामक बूढ-पुरान लोकक अनुसार ओहि इलाका में लगभग 90 टा पोखरि छलैक जाहिमे सँ लगभग 40 टा पोखरि अखनहुँ अछि। किछु पोखरिक नाम देवाही, भुताही, हराही, बचाही आदि अछि।


अंधराठाढ़ी प्रखंड क्षेत्र विभिन्न कालमे विभिन्न राजाक राजधानी हेतु प्रसिद्ध रहल अछि। एकर प्रमाण एहि क्षेत्रमे भेटल पुरावशेष सामग्री छैक, जकरा एतुका वाचस्पति संग्रहालय में राखल गेल छैक। स्थानीय निवासी पं. सहदेव झा 1985 ई०मे वाचस्पतिक नाम पर एहि संग्रहालयक स्थापना केलन्हि। एहि संग्रहालयमे ईसापूर्व सँ ल’क’ मध्ययुग तकक अनेक दुर्लभ पाथर आओर धातुनिर्मित कलाकृति, शिलालेख तथा स्थापत्य शिल्प केर नमूना उपलब्ध अछि। एहिमे प्रमुख यक्षिणी, बोधित्सव, बालगोपाल, सहवाहिनी दुर्गा, अष्टदल कमलासीन भगवान बुद्ध, श्री विष्णु, श्री लक्ष्मी, श्रीमंत्र, जीवाष्म, सिक्का,पांडुलिपि, चौखटि आदि संग्रहित अछि ।


अनेक राजाक राजधानी रहल अंधराठाढ़ीक कमलादित्य स्थानमे प्राप्त सूर्य प्रतिमामे मिथिलाक राजा नान्यदेवक नाम अंकित अछि । ओ मंडन मिश्रक शिष्य छलाह जनिका सँ हुनका प्रेरणा भेटलन्हि। भारतीय दर्शनक विभिन्न शाखा पर ओ एतेक व्यापक रुपेँ लिखलन्हि जे तत्कालीन विद्वान लोकनि द्वारा हुनका ‘सर्व-तंत्र-स्वतंत्र’क उपाधि देल गेलन्हि।


वाचस्पति मिश्र शंकराचार्यक ब्रह्म सूत्र भाष्य पर आधारित अपन धर्म पत्नीक नाम पर भाष्य ‘भामती’ आओर मंडन मिश्रक ब्रह्म-सिद्धि पर आधारित भाष्य ब्रह्मतत्व- समीक्षा लिखलन्हि। कथाक अनुसार, जखन वाचस्पति मिश्र अपन ग्रंथ लीखि रहल छ्लाह, तखन ओ एतेक लीन छलथि जे हुनका अपन पत्नी भामतीक भाने नहि रहलन्हि। ग्रंथ पूरा भेला पर भामतीक व्यंग्यपुर्ण उलहनक बाद, वाचस्पति हुनका सन्तुष्ट करबा लेल अपन भाष्य टीकाक नाम ‘भामती’ राखि देलखिन्ह।


वाचस्पति मिश्रक अनुसार ‘भामती’ भाष्यक समापन मिथिलाक राजा नृगक शासन काल में और हुनकहि संरक्षण में भेल। जेनाकि भाष्यक उपसंहारमे लिखल अछि,
“तस्मिन महीये महनीय कीर्ताे श्रीमन्नृगेेकारिमया निबंधरू’।


राजा नृगक शासन काल नान्य देवक शासन कालसँ 113 बर्ख पहिने कहल गेल अछि। भामती भाष्यक व्याख्या, 1300 ई० मे अमलानंद स्वामी अपन उप-भाष्य कल्पतरु में केलन्हि आओर 1600 ई० मे कल्पतरुक व्याख्या महापंडित अप्पय दीक्षित अपन उप-भाष्य परिमल मे केलन्हि। वेदांत दर्शनक संदर्भ मे वाचस्पति मिश्रक मूल्यांकन डॉ. ईश्वर सिंह क शोध पुस्तक ‘भामती: एक अ‍ध्ययन’ क रूप मे सन 1983 मे भेल अछि। मिथिलाक आधुनिक लेखक एवं बनारस हिंदू विश्वविद्यालयक दर्शन शास्त्र विभागाध्यक्ष पं० लक्ष्मीनाथ झा सेहो भामती सूत्र पर आधारित दू टा टीका प्रकाश आ विकास प्रकाशित करौने छथि। वाचस्पति मिश्रक अन्य महान कीर्ति तत्वकौमुदी, न्यायसूचीनिबंध, न्यायकानिका, तत्वसमीक्षा, न्याय-वर्तिका-तात्पर्यटिका, तत्व-वैशारदी आदि अछि।
-लेखक मैथिली साहित्यक सशक्त हस्ताक्षर छथि

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