आइए, मिलकर बनाते हैं ‘ग्राम सेतु’

गोपाल झा.

गांव। कहने को बेहद छोटा शब्द है। भाव व्यापक हैं इसके। हम सबकी जड़ें इसी गांव से हैं। अगर आप उम्र के लिहाज से 40 प्लस हैं तो यकीनन 80 फीसद ऐसे लोगों को याद होगा अपना गांव। माटी की सौंधी महक वाला। तालाब और जोहड़ वाला। जहां बसता था ठेठ और नेक इंसानों का समूह। सबको था अपनी संस्कृति से लगाव। अपनी भाषा और रिवाजों को सहेजने वाले लोग। कपड़े भले मलीन हों लेकिन मन पूरी तरह साफ। मकान भी मिट्टी के। अपार सुख मिलता था उसमें रहने से। हर वक्त कुदरत के पास होने का अहसास।

हम शहरों में आए। महानगरों में गए। एक अद्द रोटी की तलाश में। छूट गया अपना गांव। कट गए अपनी भाषा से। खत्म होने लगे लोकाचार। सिमटने लगी अपनी संस्कृति। हमारे संस्कारों पर मंडराने लगे खतरों के बादल। भौतिकवाद का ऐेसा नशा चढ़ा कि हमें गांव से घिन आने लगी। आज सब कुछ है लेकिन सुख नहीं। अच्छी सेहत नहीं। मानसिक, शारीरिक और सांस्कृतिक रूप से हम बीमार होने लगे हैं। हमारा मन हमारी काया की तरह कमजोर होने लगा है। हम छोटी-छोटी बातों पर टूटने लगे हैं। अब चौपाल भी नहीं। जहां बैठकर ‘हथाई’ हो जाया करती। हंसी-ठिठोली। सब कुछ खत्म।

याद आने लगा है अपना गांव। जिस मिट्टी में खेले। लिपटकर बड़े हुए। वह मिट्टी पुकार रही। बच्चों को लेकर आने की मनुहार कर रही। हमारी बेबसी है या फिर निष्ठुरता। बच्चों को गांव से दूर कर रहे हैं। गांव से दूर होने का अर्थ है, खुद को भारत से अलग करना। भारत एक देश मात्र नहीं, भावना भी है। महात्मा गांधी ने सही कहा था, ‘भारत की आत्मा गांवों में बसती है।’ सचमुच, हम गांवों से विमुख होने लगे। भारत की ‘आत्मा’ कचोटने लगी है।

शायद ही कोई ऐसा हो, जो अपने गांव को खुशी के साथ अलविदा कहना चाहता हो। गांव छोड़ना मजबूरी है। गर, गांव में शहरों की तरह सुविधाएं हों, रोजगार हों, तरक्की हो तो फिर कोई अपना गांव क्यों छोड़ना चाहेगा ? हर साल करोड़ों खर्च करने के बावजूद गांव बदलता क्यों नहीं ? सुविधाएं बढ़ने के साथ तरक्की दिखती क्यों नहीं ?

इस तरह के हैं अनगिनत सवाल। सुलझाने का प्रयास करेगा अपना ‘ग्राम सेतु’। गांव की बातें इतिहास न बन जाएं, बरकरार रखेगा ‘ग्राम सेतु’। गांवों की बात प्रशासन तक पहुंचाने का अथक प्रयास करेगा ‘ग्राम सेतु’। अपनी भाषा, संस्कृति, लोकाचार, लोकपर्व, परंपराएं व रीति-रिवाजों को सहेजने का प्रयास करेगा ‘ग्राम सेतु’। ग्रामीण प्रतिभाओं को दुनिया के सामने लाने के लिए प्रभावी मंच साबित होगा ‘ग्राम सेतु’।

भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप ने ‘ग्राम सेतु’ को तीन प्लेटफॉर्म पर लाने का प्रयास किया है। मासिक पत्रिका के साथ यह पाठकों के लिए न्यूज पोर्टल और वेब चैनल पर भी उपलब्ध रहेगा। हमारी कोशिश रहेगी कि इसमें ज्यादा से ज्यादा गांवों को शामिल किया जा सके। आप सबका सहयोग पहले की भांति अपेक्षित है। कहा भी जाता है, अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता। आप प्रबुद्ध पाठकों का संबल मिलेगा तभी हम सब मिलकर बना सकेंगे ‘ग्राम सेतु’। बेशक, ‘ग्राम सेतु’ पत्रकारिता के क्षेत्र में एक चुनौती है, आपके भरोसे हम इसे सहर्ष स्वीकार कर रहे हैं। बहरहाल, समर्पित है ‘ग्राम सेतु’ का यह प्रवेशांक।

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