दूल्हों का मेला’ वाला गांव, जानिए…क्या है परंपरा ?

ग्राम सेतु ब्यूरो. मधुबनी.

मिथिलांचल का मूल यानी मधुबनी। जिले में बिखरी हुई हैं कथाएं और गौरवशाली संस्कृति। जिला मुख्यालय से करीब छह किमी दूर एक गांव है सौराठ। यहां पर करीब 700 साल से लगता है दूल्हों का मेला। देखा जाए तो पूरी दुनिया में सौराठ सभा एकमात्र जगह है जहां पर अभिभावक अपनी बेटी के लिए उपयुक्त वर की तलाश पूरी करते रहे हैं। यह दीगर बात है कि आधुनिकता की आंधी में सौराठ सभा के अस्तित्व पर संकट है। अब यहां पर वर पक्ष का आना काफी कम हो गया है। एक वक्त था जब हर साल आषाढ़ के महीने में लाखों लोग यहां पर पहुंचते थे। बिना किसी आडंबर वधू पक्ष दूल्हा देखकर रिश्ते पक्के करते थे।

खास बात है कि विवाह तय होने पर बकायदा वर-वधू पक्ष का पंजीयन होता था। पंजीकार दोनों परिवारों की कई पीढ़ियों का लेखा रखते। इसका एकमात्र मकसद था एक गोत्र में विवाह न होना।
सौराठ सभा को निकट से देखने वाले रिडायर्ड प्रधानाचार्य मधुकांत झा बताते हैं,‘सभा स्थल में सभी गांव का अलग-अलग स्थान तय रहता था। वहां वर अभिभावक के साथ लाल पाग पहनकर बैठते थे। कुल और गोत्र के आधार पर विवाह तय होता था। कोई आडंबर नहीं। चट मंगनी, पट ब्याह वाली कहावत चरितार्थ होती थी। उस समय खानदान का महत्व था। पैसों का नहीं। लेकिन धीरे-धीरे दहेज का चलन शुरू हुआ। इस कारण उत्तम कुल की गरीब कन्या के विवाह में बाधा आने लगी। इससे एक गलत परंपरा की शुरुआत हुई। सभा से पसंदीदा लड़कों का जबरन विवाह कराया जाने लगा। इस कारण भी वर वाले यहां आने से कतराने लगे। पहले सभा में महिलाओं का आना वर्जित था। बाद में वे भी आने लगीं।’
पूर्व बैंक अधिकारी उमेश मिश्र बताते हैं, ‘योग्य वर की तलाश पूरी करने वाली सौराठ सभा अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। एक समय था जब गुरुकुल से गुरु और शिष्य यहां पर आते। शास्त्रार्थ होती। कन्या पक्ष शास्त्रार्थ करने वाले शिष्यों पर नजर रखते और अपनी बेटी के लिए योग्य वर का चयन करते। अब यह परंपरा खत्म होने लगी है।

ऐसे आते थे लोग
सौराठ सभा में गांवों के हिसाब से जगह निर्धारित होती। वर पक्ष के लोग धोती, कुरता और पाग धारण कर निर्धारित जगह बैठते। कन्या पक्ष के प्रतिनिधि वहां आकर बैठते। वर पक्ष का परिचय लेकर बातचीत शुरू करते। वर के बौद्धिक स्तर का आकलन किया जाता। संतुष्टि के बाद पंजीयक के पास जाते और दोनों परिवारों का बकायदा पंजीयन होता। बिना किसी तामझाम शादी तय कर दी जाती। किसी तरह लेन-देन की बात नहीं। सब कुछ स्वेच्छा से। गांव के नीरज झा कहते हैं कि करीब दो सौ साल पहले हमारे पूर्वज कितने दूरदर्शी थे, इस बात से पता चलता है। वे सौराठ सभा के हो रहे अवसान पर अफसोस जताते हैं। कहते हैं, ‘मिथिलांचल के प्रबुद्ध लोगों को इस तरफ ध्यान देना चाहिए।’

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