यात्रा, जीवन, हथाई और लोक संबध!

आर्किटेक्ट ओम बिश्नोई.
दोपहर का वक्त। मन में आया कि खेत चला जाए। कुछ देर बाद जिंदगी सडक पर सरपट दौड़ रही थी। गाडी में संगीत मैं और मौज़। वैसे भी कोई अकेला सफर नहीं कर सकता। कभी साथ यादें चल पडती हैं। कभी राह के पेड, खेतों की फसलें साथ-साथ चलती हैं।
यूं कब सफर कटा पौने घंटे का, पता भी न चला। खेत पहुंचे और शुरू हो गई हथाई, भाई भजन शर्मा के साथ। फिर खेत में चूल्हे पर बनाई हुई गुड-चीनी मिक्स मीठी-मीठी स्वादिष्ट चाय।

बात चाय की है तो चूल्हे की चाय थोडी ‘स्मोगी’ हो जाती है। इसे सदियों से भारत का देहात, गांव, ढाणी खेत में पीता रहा है। वो अलग बात है, मेट्रो, शहरों के शानदार होटलों में आजकल ये ‘स्मोगी’ चाय बडी फैशन में है। बाजार कब चीजों को ‘बाजारवाद’ के सहारे अपनी पैकेजिंग से परोसता है, हमारी जेब ढीली करने को, हमें पता ही नहीं चलने देता।
खेत में सुबह की धुंध के बाद शानदार धूप खिली हुई थी। बोनस में हल्की सर्द हवायें थीं। फिज़ा में जो फसलों व माहौल को सहला रही थी। साथ लगे खेतों में सहजता से काम करते किसान, पीली हो आयी सरसों कितना कुछ था, समझने को लिखने को।

यही सब कुछ तो जीवन ऊर्जा का ‘फ्यूल’ है। वैसे भी सयाने लोग कहते हैं कि जीवन को जीने से मतलब है और अन्न ही ब्रह्म है। यूं भी इंसान का यही मूल मंत्र है और जीवन का मकसद भी कि उसका जीवन ख़ुशहाल रहे। पर ये सब इतना आसान भी कहां ? अंतहीन रेस भी तो है जीवन में जो बाजारवाद और पूंजीवाद के कॉकटेल से उपजी है या परोसी गई है, हमारी थाली में। इसके साथ ‘क्रॉनिक’ होता अवसाद बढ रहा इंसानी जमात के जीवन में। आप हम अपने आस-पास इसे देख सकते हैं। इस अवसाद का अंतिम इलाज लोगों के संघर्षों में यथोचित हाथ मिलना है, उनसे मिलना और मिलाना है।
खैर यूं ही हथाई समाज और परिवार की चर्चा में खिसकती रही। उधर सूरज अपनी यात्रा पूरी कर रहा था, धीरे-धीरे। हम भी पड़ोस की ढाणियों में कुछ रिश्तेदारों से हथाई करने में व्यस्त रहे। कब सूरज डूब गया ‘पच्छम’ में, पता ही ना चला और हम भी वापसी पर निकल लिए फिर मिलने का वादा देकर।
-लेखक पेशे से आर्किटेक्ट हैं, गांव-देहात इनके दिल में बसता है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *