शादी के वर्षों बाद सहेलियों की आई याद तो बेटियों ने किया ये काम!

ग्राम सेतु ब्यूरो. जोधपुर.
विवाह के बाद ससुराल जाना बेटियों की नियति है। उस गांव को छोड़ना बेहद पीड़ादायी है जहां पर जन्म हुआ। खेले-कूदे। गांव की गलियां। सहेलियों की टोलियां। गांव के तालाब-जोहड़। झूले। मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे। उत्सवों की याद। सबसे अधिक सहेलियों से बिछड़ने का दर्द। यकीनन, सबसे अधिक पीड़ा इसी बिछोह और कभी न मिल पाने से मिलती है। ससुराल का परिवार न सिर्फ अपना हो जाता है बल्कि उस परिवार की समूची जिम्मेदारी कंधे पर आ जाती है। फिर बच्चे। उनका पालन-पोषण। शादी-ब्याह। लगता है, यही जीवन का हिस्सा है। लेकिन बेटियां बचपन के उस भूलते-भागते क्षण को अपने से दूर नहीं कर पातीं, जिन्हें उन्होंने अपनी सहेलियों के साथ व्यतीत किए हों। नागौर जिले के गांव सबलपुर से ब्याही बेटियों को भी यही पीड़ा कचोटती थी। कुछ के पास परस्पर संपर्क थे, सहेलियों से संपर्क किया गया। फिर गांव में एक साथ मिलने का कार्यक्रम बना। फिर जब ये बेटियां सबलपुर आईं तो गांव में उत्सवी माहौल बन गया। ऐसा स्नेह मिलन कार्यक्रम हुआ, कि हर कोई हैरान।

गांव की बेटी कल्पना राठौड़ बताती हैं, ‘प्रत्येक जाति की बेटियां अलग-अलग शहरों में ब्याही हैं। कुछ तो अलग राज्यों में रहती हैं। सबमें वर्षों से एक साथ न मिलने की टीस थी। ऐसे में एक-दूसरे के मोबाइल नंबर एकत्रित किए गए। बातचीत की गई। एक साथ गांव जाने का कार्यक्रम बना। इसके लिए एक ग्रुप बनाया जिसे सहेलियों की समिति नाम दिया।’ खुद कल्पना राठौड़ प्रतापगढ़ के धरियावद में रहती हैं।

सहेलियों की समिति सदस्य कमला कंवर इस कार्यक्रम से गदगद हैं। कहती हैं, ‘इस खुशी को व्यक्त करने के लिए कोई शब्द नहीं है। इसे सिर्फ महसूस कर सकते हैं। सभी सहेलियों से मिलकर नई जिंदगी मिली है। परमात्मा की कृपा रही तो हर साल हम इस तरह मिलते रहेंगे। किरण कंवर के मुताबिक, शादी के बाद गांव कम ही आना हुआ। परिवार के साथ अलग-अलग प्रदेशों में ही रहीं। इस आयोजन ने बचपन की सहेलियों से मिलने का अवसर दिया। हम सब दो दिन साथ रहे। बचपन की बातें साझा हुईं। शिव गौशाला में भजन संध्या हुईं। वही गीत गाए जो बचपन में गाते थे। इस आनंद का कोई मोल नहीं।’ सबसे बड़ी बात यह कि इन बेटियों ने विदा होते-होते गांव की गोशाला के लिए 46 लाख रुपए का दान भी दिया। वहीं, बेटियों के इस भव्य स्नेह मिलन कार्यक्रम में भाईयों ने भी उत्साह दिखाया और खर्च में भागीदारी दिखाई। गांव के बुजुर्ग श्रीराम सिंह बताते हैं कि यह स्नेह मिलन देख आंखें भर आईं। बचपन का प्रेम सच्चा होता है। बेटियों ने यह साबित कर दिखाया। हर गांव की बेटियों को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। गांव के पंच-सरपंच को भी माध्यम बनकर इस तरह के आयोजनों की रूपरेखा बनानी चाहिए। जीवन में बदलाव व खुशियां समेटने के लिए इस तरह के आयोजनों की जरूरत है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *