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जानी-मानी लाइफ कोच, बिहेवियरल स्किल्स फैसिलिटेटर एवं साइकोमेट्रिक एसेसर दीप्ति जांडियाल ने श्री खुशाल दास विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में आज इमोशनल इंटेलिजेंस के विविध पहलुओं के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि पेरेंट्स को बहुत सजगता से ये देखने की जरूरत है कि कौनसी नई चीजें उनमें कौतूहल बढ़ा रही है। उन्होंने कम्पल्सिव डिसऑर्डर फोमो (फियर ऑफ़ मिसिंग ऑर्डर) के बारे में बताया कि जैसे मोबाइल अगर बच्चों के पास से छीन लिया जाये, तो वे अधीर हो जाते हैं। बच्चे छुप-छुप कर जो भी करने की कोशिश करते हैं, उसे समझने की जरूरत है। हाल ही में किये गए एक सर्वे का हवाला देते हुए बताया गया कि आमतौर पर एक दिन में लोग अनावश्यक रूप से 80 बार मोबाइल स्क्रीन को स्वाइप करते हैं जो उनकी कार्य क्षमता और सीखने की प्रवृत्ति को बुरी तरह प्रभावित करता है।
लाइफ कोच दीप्ति ने समझाया कि हार्माेनल चेंजेस के समय पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ डायलॉग करने की जरूरत है, लेकिन भारतीय समाज में बहुत-सी वर्जनाएं हैं। बच्चे माता-पिता को बहुत बारीकी से देखते है और कुछ समय के बाद उसे कॉपी भी करते हैं। वो सही और गलत के बारे में अपनी अलग धारणा रखते हैं। कोरोना की जेनेरशन ने बहुत-सी अलग स्थिति देखी। उन्होंने बताया कि 12 वर्ष की उम्र में एक स्टूडेंट उपनिषद का पठन करता है तो वहीं दूसरी तरफ 5 बरस का बच्चा सन्यास धारण करता है। ये स्थितियां कौन पैदा कर रहा है।उन्होंने उपस्थित शिक्षक गण को सलाह दी कि स्टूडेंट्स के बारे में बहुत करीब से समझना होगा जिससे वे उन्हें सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय सहभागी बन सके।
सुश्री जांडियाल ने वैल्यूज और एथिक्स सत्र में सक्सेस हासिल करने के लिए चार सूत्रीय मंत्र को भी साझा करते हुए कहा कि जॉब, भूमिका, कर्तव्य, जवाबदारी किसी के मूल्यांकन का आधार हो सकती है. उन्होंने संभागियों से प्रश्नोत्तरी के माध्यम से भी उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया। उन्होंने सवाल किया कि ऐसा क्यों है कि लोग केवल अधिकार चाहते हैं लेकिन कोई जिम्मेदारी लेना नहीं चाहता? यह आवश्यक है कि किसी संगठन के लक्ष्यों के साथ कार्मिक अपने आप को आत्मसात करे। कार्मिक सिर्फ पैसा कमाने के लिए काम नहीं करते।बल्कि वे खुद को किसी भी संगठन के मिशन, विजन और वैल्यूज के साथ कनेक्ट करें।
सुश्री जांडियाल ने कहा कि बुद्धिमान होने से किसी को भी नौकरी मिल जाएगी, लेकिन जो चीज़ उन्हें इंसान बनाती है वो है स्वयं से जुड़े रहने और रिश्तों के महत्वपूर्ण पहलुओं को सीखने का गुण। यह केवल भावनात्मक बुद्धिमत्ता की अवधारणा को सीखने से ही संभव है। स्वयं को जानें, स्वयं को प्रबंधित करें, दूसरों को जानें, दूसरों को प्रबंधित करें।डेनियल गोलमैन का एक सिद्धांत जो स्कूलों, कॉलेजों और कॉर्पाेरेट में बड़े पैमाने पर अनिवार्य है, समय की मांग है। हम सबसे पहले इंसान हैं और यह हमें खुद की और दूसरों की भावनाओं से जुड़ने में मदद करता है। ख़ुशी और गुस्सा प्राथमिक भावनाएँ हैं जिन पर दुनिया पनपती है लेकिन वे भी ट्रिगर पर निर्भर हैं सहानुभूति, सामाजिक जिम्मेदारी, मुखरता और खुशी और आशावाद के बीच अंतर जानने का विचार भावनात्मक बुद्धिमत्ता की कुंजी है। इस अवसर पर गुरु गोबिंद सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष बाबूलाल जुनेजा ने रिसोर्स स्पीकर को स्मृति चिन्ह भेंट किया।